आज भी सजती हैं सेनाएं
6 00 साल पूर्व हुए झगड़े के बाद आज भी पावटा में दो सेनाएं तैयार होती हैं, जिनके हाथ में चमड़े की डोलची और रंग की बाल्टी होती है जिनमें में एक सेना पीलवाड़ पट्टी और दूसरी जिंद पार्टी की ओर से आती है। इस दौरान एक दूसरे की पीठ पर डोलची से बौछार मार कर शहीद बल्लू सिंह के नारे लगाए जाते हैं, फिर पंच पटेलों की समझाइश के बाद इस खेल को समाप्त किया जाता है। इसके फिर देवर भाभी की होली और ढोला मारू की सवारी निकाली जाती है।
मकानों की छत पर चढ़ देखते हैं लोग
ढोलची होली को देखने के लिए यहां न केवल पावटा बल्कि आसपास के गांवों से भी बड़ी सख्यां में ग्रामीण आते हंै। भीड़ इतनी हो जाती है कि लोग मकानों की छतों पर चढ़ कर डोलची होली का दृश्य देखते हैं।
ढोलची होली को देखने के लिए यहां न केवल पावटा बल्कि आसपास के गांवों से भी बड़ी सख्यां में ग्रामीण आते हंै। भीड़ इतनी हो जाती है कि लोग मकानों की छतों पर चढ़ कर डोलची होली का दृश्य देखते हैं।
मंगल गीतों के साथ होता है होली दहन होली के त्योहार पर होली दहन पर महिलाएं मंगल गीत गाती हैं। ग्रामीण इलाकों में गेहूं व जौ की बालियां सेकी जाती है। लोग होली दहन के बाद गेहूं व जौ की बालियों को दानों को चबाया जाता है। लोगों का मानना है कि इससे दंत रोग से मुक्ति मिलती है।