ब्रिटीशकालीन समय में विकसित किया गया बांदीकुई रेलवे जंक्शन भी भूजल स्तर गिर जाने से पानी की मार झेल रहा है। हाइडेंट सिस्टम के बंद होने से यात्रियों के लिए परेशानी बनी हुई है। क्योंकि ट्रेनों में स्थित शौचालयों मं पानी खत्म हो जाए तो यात्रियों को पानी की बोतल खरीदकर ही शौच जाना पड़ता है। ट्रेनों में रेवाड़ी या फिर जयपुर में ही पानी भरा जाता है। इसके बीच पानी की कोई सुविधा नहीं है।
ट्रेक की धुलाई के आ रहा है काम : रेलवे की ओर से हाइडेंट सिस्टम को बंद कर देने के बाद अब स्थित पाइप लाइन को वाशिंग हब के रूप में ही काम लिया जाता है। इस पानी को अब रेलवे ट्रेक की धुलाई एवं सफाई के काम लिया जाता है। बताया जा रहा है कि हाइडेंट के लिए रेलवे कॉलोनी में पानी की टंकी का भी निर्माण किया गया था। जहां से पाइप लाइन के जरिए स्टेशन पर पानी पहुंचाया जाता है, लेकिन पानी का प्रेशर नहीं होने से ट्रेनों में पानी भराव मुश्किल होता है।
रेलवे स्टेशन से बांदीकुई स्टेशन से अलवर-जयपुर एवं जयपुर-भरतपुर रेल मार्ग पर अप-डाउन करीब 70 से अधिक ट्रेन गुजरती हैं। जबकि प्रतिदिन औसतन करीब 10 से 12 मालगाडिय़ों का भी संचालन होता है। जबकि रेलवे स्टेशन का यात्री भार भी प्रतिदिन करीब 8 से 10 हजार के बीच है और राजस्व आय भी करीब 5 लाख रुपए से अधिक है, लेकिन यहां हाइडेंट सिस्टम नहीं होने से खासी परेशानी होती है। यदि रेल प्रशासन जलस्रोत का निर्माण कर इस सुविधा को चालू कर दे तो काफी हद तक राहत मिल
सकती है।
अनदेखी से पिछड़ती रेल नगरी
ब्रिटीशकालीन समय में विकसित किया गया रेलवे जंक्शन की पहचान रेल नगरी के रूप में है। यहां मण्डल रेल प्रबंधक, लोको शैड़, मेंटीनेंस कार्यालय, डीजल शैड़, पार्सल कार्यालय सहित अन्य बडे कारखाने भी स्थापित थे, लेकिन रेल प्रशासन की अनदेखी के चलते अधिकांश कार्यालय अन्यत्र शिफ्ट कर दिए गए। रेलवे कॉलोनी स्थित आवासों को कण्डम घोषित कर तोड़ दिया गया। ऐसे में अब रेल नगरी विकास में पिछड़ती जा रही है।