गोपालसिंह ने बताया कि सत्रहवीं शताब्दी में नरूखंड निर्माण के लिए जयपुर रियासत से अलवर रियासत का संघर्ष हुआ था। तब जयुपर की सेना ने उक्त रियासत के सिकन्दरा से गढ़ी तक के गांवों पर कब्जा कर लिया था, लेकिन सेना अभयदुर्ग के अंदर नहीं घुस पाई थी। इसके बाद अंग्रेजो द्वारा दोनों रियासतों में राजीनामा कराया गया था। इसके चलते किले के बाहर का इलाका जयपुर रियासत के अधीन माना जाता है, जबकि किला आज भी अलवर रियासत के अधीन है।
यह किला चारों तरफ से जयपुर रियासत से घिरा होने के कारण ग्रामीण इसे टापू बोलते हैं। इसका नतीजा यह रहा कि जब भी इस किले में कोई सामान मंडावर होते हुए आता था या जाता था तो जयपुर रियासत को चुंगी देकर निकलना पड़ता था। यह परम्परा वर्ष 1950 तक चली। गोपालसिंह स्वयं पर्यटन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। अमरीका की बोस्टन शहर की ओएटी के लिए इंडिया में नियुक्त है।
उन्होंने बताया कि अलवर रियासत से जुड़ा होने के कारण ही सायपुर पाखर गांव व इसके अधीन आने वाले करणबांस, जैतपुर, सायपुर और पाखर, अलवर जिले की राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ विधानसभा में जुड़े हुए हैं और लोकसभा क्षेत्र भी अलवर है। जहां उक्त किला अब आधुनिकता की दौड़ में शामिल होकर हैरिटेज होटल का रूप ले चुका है। होटल अभयदुर्ग के नाम से अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाए हुए हैं, जहां सालभर में सैकड़ों विदेशी पर्यटक यहां आकर लुत्फ उठाते हैं।