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शुक्रवार भूलकर भी न करें ये काम, नाराज हो सकती है धन की देवी

माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए करें यह काम

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भोपाल

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Shyam Kishor

Mar 19, 2020

शुक्रवार भूलकर भी न करें ये काम, नाराज हो सकती है धन की देवी

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शुक्रवार का दिन माँ लक्ष्मी को प्रसन्न कर उनकी कृपा पाने का दिन माना जाता है। कहते हैं जिसके ऊपर माता प्रसन्न हो जाती है उनके सारे कष्टों का नाश हो जाता है। लेकिन जिससे नाराज हो जाती है, उनके जीवन में एक के बाद एक परेशानी आना शुरू हो जाती है। भविष्य पुराण में कहा कि धन की देवी माता लक्ष्मी की कृपा पाना चाहते हैं तो शुक्रवार के दिन भूलकर भी ये काम नहीं करना चाहिए।

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भविष्य पुराण के अनुसार, अगर शुक्रवार ये अन्य किसी भी दिन कोई पुरुष अपने घर की गृहलक्ष्मी (स्त्री) को दुख देता है, उसका अपमान या अन्य किसी तरह से परेशान करते हैं तो ऐसा देखकर घर में विराजमान धन की देवी माता लक्ष्मी उस घर से नाराज होकर हमेशा के लिए चली जाती है। अगर ऐसी गलती हो रही हो तो माता से क्षमा की याचना करते हुए नीचे दी गई स्तुति का पाठ करें। माता की कृपा से कुछ ही दिनों में सब ठीक होने लगेगा।

कमल के समान मुख वाली! कमलदल पर अपने चरणकमल रखने वाली! कमल में प्रीती रखने वाली! कमलदल के समान विशाल नेत्रों वाली! सारे संसार के लिए प्रिय! भगवान विष्णु के मन के अनुकूल आचरण करने वाली! आप अपने चरणकमल को मेरे हृदय में स्थापित करें।

।। श्री-सूक्त मंत्र पाठ ।।

1- ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह।।

2- तां म आ वह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।

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3- अश्वपूर्वां रथमध्यां, हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।

4- कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्।।

5- चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।।

6- आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।

7- उपैतु मां दैवसखः, कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिमृद्धिं ददातु मे।।

8- क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद मे गृहात्।।

9- गन्धद्वारां दुराधर्षां, नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां, तामिहोप ह्वये श्रियम्।।

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10- मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।

11- कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्।।

12- आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले।।

13- आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह।।

14- आर्द्रां य करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।

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15- तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।।

16- य: शुचि: प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकाम: सततं जपेत्।।

।। इति समाप्ति ।।
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