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आत्मा तक है संयम की पहुंच

चातुर्मास: धर्मसभा में उमड़ रहे श्रद्धालु

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आत्मा तक है संयम की पहुंच

बेंगलूरु. वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ चिकपेट शाखा के तत्त्वावधान में गोड़वाड़ भवन में रमणीक मुनि ने कहा कि पाप और अपराध के महीन अंतर को समझ लेना धर्म को समझ लेना है। उन्होंने कहा कि धर्म शब्द हमारे बहुत सुना हुआ है, परंतु केवल रटा हुआ है समझा हुआ नहीं, क्योंकि धर्म की समझ हमें मुक्त करती है वहीं धर्म की रटन केवल और केवल बांधती है। जब हम किसी क्रिया को करते हैं तो उसकी पहुंच शरीर तक ही है, परंतु संयम की पहुंच आत्मा तक है। इसलिए क्रिया में धर्म नहीं बल्कि संयम में धर्म है।

मुनि ने कहा कि पाप कोई भी कर सकता है, पर अपराध कोई कोई ही कर सकता है क्योंकि पाप के लिए मन चाहिए और अपराध के लिए तन चाहिए। तन को रोकना आसान है, इसलिए अपराधी कम होते हैं पर मन को रोकना कठिन है इसलिए पापी ज्यादा हैं। संवेदनशील व्यक्ति धार्मिक है क्योंकि आखिरकार वही तो है जो सबको साथ लेकर चलने का साहस पैदा करता है।

अगर हममें इतनी भी हिम्मत न हो तो सब धर्म कर्म ही बेकार। उन्होंने कहा कि अपनी संवेदनाओं के द्वार खोलें ताकि मित्रता की स्वच्छ हवा आत्मा की गहराइयों तक पहुंच सके और अहसास हो सके सच्चे धर्म का। धर्मसभा में चिकपेट शाखा की ओर से श्रावक रमेश खाबिया को संघ गौरव उपाधि से सम्मानित किया गया। महामंत्री गौतम चंद धारीवाल ने बताया कि रविवार को रमणीक मुनि के प्रवचन दोपहर 2.30 बजे से होंगे।

अज्ञानता है टकराव
बेंगलूरु. वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गुंडलपेट में साध्वी साक्षी ज्योति ने कहा कि टकराव हमारी जिंदगी की सबसे बड़ी अज्ञानता है। उन्होंने कहा कि बिना बात के आज हर इंसान एक-दूसरे से उलझता जा रहा है। अज्ञानपन के कारण ही इंसान एक दूसरे से झगड़ता है। जब इंसान के जीवन में ज्ञान आना शुरू हो जाता है तब उसे पता लगने लग जाता है कि गुस्सा करने से नुकसान दूसरों को नहीं बल्कि उनका खुद का है। सभा में पहुंचे जुन्नर, महाराष्ट्र के श्रावकों ने साध्वी के दर्शन किए।