
Ganesh Chaturthi 2023 : डूंगरपुर। बेजोड़ स्थापत्य कला एवं वास्तुकला के लिए विश्व विख्यात डूंगरपुर नगर धर्म नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यूं तो पहाड़ों की इस नगरी के कण-कण में पार्वतीपति का राज है और हर थोड़ी दूरी पर शिवमंदिरों का सहज दिग्दर्शन होता है। पर, गिरीपुर में गौरीपुत्र के आराध्य स्थलों की भी कमी नहीं है। यह वहीं नगरी है, जहां कभी भगवान गजानन जरूरतमंद लोगों को बिना ब्याज के आर्थिक सहयोग देते थे और ऐसे एक दो नहीं कई मंदिर हैं। प्रथम आराध्य भगवान श्रीगणेश का पावन पर्व गणेश चतुर्थी भगवान शिव के ही परमदिवस मंगलवार को हैं। गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर शहर सहित जिले के ख्यातनाम गणेश मंदिरों और उनसे जुड़ी कई अनछुए से तथ्यों को लेकर पत्रिका की खास पेशकश...
जसवंतसिंह ने की थी विराजित प्रतिमा
दर्जीवाड़ा चौक में विराजित जसवंत गणपति मंदिर की स्थापना महारावल जसवंतसिंह ने करवाई थी। बताया जाता है कि राजपरिवार में कन्या का विवाह होने पर यहां पूजन के लिए सवारी आया करती थी। गणेश चतुर्थी पर दर्जीवाड़ा चौक में ही भक्तों की ओर से गणपति प्रतिमा विराजित की जाती है।
भक्तों को देते थे उधार रुपए
उदय विलास मार्ग पर सूरजपोल दरवाजे के निकट वनेश्वर शिवालय है। ठीक इसके पास ही रोकड़िया गणपति मंदिर है। यहां से जुड़ी किवदंति है कि कुछ वर्षों पूर्व तक भ्गवान गणपति बिना ब्याज के भक्तों को रुपए दिया करते थे। भक्त अपनी जरूरत के अनुसार रुपए निर्धारित समय मेें देने की बात चिट्ठी पर लिखकर रख आया करते थे। अगले दिन भक्तों को यह राशि मिल जाया करती थी। इस कारण मंदिर का नाम रोकड़िया गणपति पड़ा।
गोवाड़िया गणेश मंदिर
सागवाड़ा. गौरेश्वर मार्ग पर नगर से करीब छह किमी दूर लिमड़ी गांव से पहले तालाब के किनारे स्थित प्राचीन गणेश मंदिर जीर्णोद्धार के बाद गणेश भक्तों के श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है। मंदिर के आगे बडा चौक, यज्ञ के लिए स्थान, बैठक व्यवस्था, बगीचा, मंदिर के पीछे आवास, भोजन निर्माण व्यवस्था तथा सुविधाघर भी बना हुआ है। मंदिर के प्राकृतिक वातावरण में तालाब के किनारे स्थित होने से हर बुधवार को बडी संख्या में लोग यहां पहुंचकर मन्नत मांगते हैं।
गण्डेरी गणपति मंदिर
सागवाड़ा. नगर के माण्डवी चौक और पार्श्वनाथ चौक के बीच स्थित प्राचीन रोकडिया सिद्धी विनायक गणेश गण्डेरी गणपति मंदिर है। यह अगाध श्रद्धा और आस्था का केन्द्र बना हुआ है। करीब छह सौ वर्ष पुराना मंदिर है। बारी बारी से कई पुजारी परिवार मंदिर में सेवा कार्य करते हैं। यहां प्रतिदिन सांय कालीन आरती में बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होते है। किवदंति है कि मंदिर स्थापना के बाद से नगर को कभी अकाल, सुखा, पानी की कमी, बाढ़ तथा महामारी का सामना नहीं करना पड़ा है।
मोरला से हो गए मुरला गणेश
मुरला गणेश मंदिर पूर्व में मोरला (आगे आने वाले) गणपति के नाम से भी जाना जाता था। इतिहासकार महेश पुरोहित के अनुसार महारावल शिवसिंह के प्रधान दयारामजी खवासजी ने विक्रम संवत 1826 ज्येष्ठ कृष्णा दशम के दिन मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई थी। शहरवासियों की रक्षा की भावना से इन्हें शहर के अग्रभाग में स्थापित किया गया। कुछ वर्षों पूर्व ही मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य हुआ है। इससे मंदिर की सुंदरता में अभिवृद्धि हुई है। गणेश चतुर्थी सहित यहां बुधवार सहित कई तीज-त्योहारों पर होने वाला शृंगार मनमोह लेता है। खासकर रजत आंगी में शृंगार देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं।
नगर के रक्षक देव
भगवान गणपति को नगर के रक्षक देव के रुप में भी जाना जाता है। नगर द्वार के पास गणपति मंदिर है। महारावल स्कूल के पास पूर्व में त्रिपोलिया दरवाजा था। इसके ठीक बाहर गणपति की डेयरी थी। नगर के अन्य छोर से प्रवेश पर मुरला गणेश, तो सूरजपोल के पास रोकडिया गणपति है। वहीं, शहर में अन्य भी गणेश मंदिर है। माणक चौक पाताल गणपति, ब्रह्मस्थली कॉलोनी में सिद्धि विनायक मंदिर, इंजीनियर की गली में पीपलिया गणपति, सोनिया चौक स्थित गुंदीवाले गणपति, सर्राफा बाजार में बावड़ी वाले गणपति, सुथारवाड़ा में गमीरा गणपति, घाटी स्थित लक्ष्मीनारायण मंदिर, माणक चौक में धनेश्वर महादेव मंदिर में, फौज का बड़ला स्थित पंच परमेश्वर गणपति, राजपुरा स्थित आकड़िया गणपति, नवाडेरा स्थित गणपति मंदिर, विजयगंज में गणपति मंदिर हैं।
यहां पाताल में विराजे हैं गजानन
माणक चौक में आदिनाथ जैन मंदिर के ठीक सामने उण्डा गणपति का मंदिर है। मंदिर काफी गहराई में होने की वजह से इन्हें पाताल गणपति भी कहा जाता है। गणेशोत्सव के दौरान यहां नियमित आरती एवं शृंगार के आयोजन होते हैं।
गोवाडिया गणेश मंदिर
सागवाड़ा. नगर से करीब चार किमी दूर डूंगरपुर राजमार्ग पर स्थित गोवाडी गांव का प्राचीन गोवाडिया गणपति मंदिर है। गांव के मुख्य चौक पर स्थापित मंदिर में वर्ष पर्यन्त कई धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं। कहा जाता है कि शादी ब्याह के आयोजन भी यहां दर्शनों के बाद ही शुरू होते हैं। दुल्हा दुल्हन का वरघोड़ा भी यहां पहुंच दर्शनलाभ लेते हैं। मंदिर का जिर्णोद्धार मार्च 1989 में किया गया था।
Published on:
19 Sept 2023 03:43 pm
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