
इस सब इंस्पेेक्टर ने अपनी सोच से बदल दी 96 देवार बच्चों की जिंदगी, वर्दी देख खिल जाते हैं इनके चेहरे
दुर्ग. गली कूचों में घूमकर समय बीताने वाले गौरिया और देवार जाति के 96 बच्चे अब पढऩे के लिए स्कूल जाएंगे। उन्हें स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया है शहर से 8 किलोमीटर दूर जेवरा चौकी प्रभारी एसआइ सरजू प्रसाद धृतलहरे ने।
आमतौर पर बच्चे पुलिस की वर्दी देखकर सहम जाते हैं। धृतलहरे की बात कुछ अलग है। बच्चे उससे बेझिझक मिलने आते हैं। पुलिस की व्यस्त नौकरी करते हुए भी एसआइ बच्चों से नियमित इसलिए मिलते है कि वे समाज की मुख्य धारा से जुड़े रहे। बच्चे भटक कर अपराध की दुनिया में कदम न रखे।
वे ग्राम भटगांव के गौरिया व देवार जाति के 96 बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाएंगे। उन्होंने रविवार को दोपहर १२ बजे बस्ती की बैठक बुलाई और 120 में से 96 बच्चों को स्कूल में दाखिला कराने का संकल्प दिलाया। ग्राम भटगांव व सिरसा खुर्द के सरकारी स्कूल में बच्चों को दाखिला कराने वे खुद जाएंगे।
जाति से जुडऩे सीखी देवारों की भाषा
उन्होंने बताया कि जब वे नेवरा थाना में थे तो थाना के पीछे देवार बस्ती थी। उसकी छत्तीसगढ़ी में बात करने पर वे समझते तो थे, लेकिन महत्व नहीं देते थे। देवारों की बोली सीखकर बात की तब देवारों को समझ आया कि वे क्यों रोज आते हैं।
बच्चों को स्कूल में करा रहे हंै एडमिशन
धृतलहरे ने बताया कि आम तौर पर वे देवार व गौरिया जाति के बच्चों को पे्ररित करते हैं। दोनों ही जाति घूमंतु जाति है। अब शासन की योजना के तहत इन परिवारों को आश्रय मिल चुका है। इनके पास स्वयं के मकान है, फिर भी अधिकांश लोग मेहनत न कर मांग कर जीनव गुजारते हैं। अभावों को चलते व अपराध करते हैं।
बच्चे भी एक जगह बैठ कर नहीं रहते। इसलिए वे बच्चों को पहले एक जगह बैठाने का अभ्यास कराने अस्थाइ स्कूल चलाते हैं। जहां वे स्वयं के खर्च पर शिक्षक भी रखते हैं। यहां भी वे बच्चों के लिए दो कमरे का अस्थाई स्कूल खोलने की तैयारी कर कर चुके थे इसी बीच उनका तबादला कंट्रोल रूम भिलाई हो गया। इसलिए सीधे बच्चों को स्कूल में दाखिला करा रहे हैं।
अब तक नहीं भूले पैदल जाते थे स्कूल
धृतलहरे ने बताया कि वे नेवरा(तिल्दा) व कसडोल में भी रहे हैं। दोनों जगह लगभग 400 बच्चों को स्कूल जाने के लिए एडमिशन कराया था। सरजू प्रसाद आरक्षक से पदोन्नत होकर सब इंस्पेक्टर बने है। 38 साल नौकरी करने के बाद भी वे पैदल स्कूल जाने की बात को नहीं भूले हैं। गारम पहंदा (बलौदाबाजर) उनका जन्म स्थान है। तब वहां स्कूल नहीं था। पैदल खेत के मेड़ पर चलकर दूसरे गांव के स्कूल जाते थे।
Published on:
02 Jul 2018 11:47 am
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