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नगर देवता गणेशजी का मंदिर बना धार्मिक परंपरा का प्रतीक, हर ईंट का हुआ विशेष मुहूर्त…

Ganesh Chaturthi 2025: दुर्ग जिले में मुहुर्त देखकर आमतौर पर भूमिपूजन और प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, लेकिन दुर्ग शहर के ह्रदय स्थल इंदिरा मार्केट में स्थित श्रीसिद्धी विनायक मंदिर का पूरा निर्माण विशेष मुहुर्त में किया गया है।

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नगर देवता गणेशजी का मंदिर बना धार्मिक परंपरा का प्रतीक, हर ईंट का हुआ विशेष मुहूर्त...(photo-patrika)

नगर देवता गणेशजी का मंदिर बना धार्मिक परंपरा का प्रतीक, हर ईंट का हुआ विशेष मुहूर्त...(photo-patrika)

Ganesh Chaturthi 2025: छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में मुहुर्त देखकर आमतौर पर भूमिपूजन और प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, लेकिन दुर्ग शहर के ह्रदय स्थल इंदिरा मार्केट में स्थित श्रीसिद्धी विनायक मंदिर का पूरा निर्माण विशेष मुहुर्त में किया गया है।

दक्षिण भारतीय शैली में इसका निर्माण दक्षिण भारत के कारीगरों ने किया है। वे मुहुर्त देखकर ही काम करते थे। जिस दिन मुहुर्त नहीं होता, उस दिन काम बंद रहता। कभी आधे दिन तो कभी आधी रात को भी काम होता। मंदिर में एक-एक पत्थर और एक-एक ईंट विशेष मुहुर्त में रखा गया है। जिसके कारण इस मंदिर के निर्माण में 12 साल लगे।

Ganesh Chaturthi 2025: सभी प्रमुख नदियों के जल से अभिषेक

मंदिर निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने वालों में शामिल रहे तत्कालीन छात्र नेता व युवा शक्ति के तत्कालीन अध्यक्ष रत्नाकर राव ने बताया कि दक्षिण भारत के विद्वान पंडितों से शुभ मुहूर्त में मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा वर्ष 2006 में कराई गई। मूर्ति के अभिषेक के लिए भारत की सभी प्रमुख नदियों का जल, ज्योतिर्लिंगों एवं शक्तिपीठों की पवित्र मिट्टी बड़ी कर्मठता से एकत्रित की गई थी। प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम अद्वितीय था। मंदिर में भगवान शिवव हनुमानजी की भी प्रतिमा है।

नगर देवता के नाम से प्रसिद्ध

इस मंदिर की एक और खास बात है कि इसका निर्माण शहर के युवाओं ने करवाया है। यह मंदिर नगर देवता के नाम से प्रसिद्ध हैं। मंदिर निर्माण से जुड़े सभी सदस्य युवा शुक्ति नामक संस्था से जुड़े हुए थे। जिसमें बड़ी संया में छात्र व छात्र नेता थे

जयपुर से लाए ग्रेनाइडट की सुंदर मूर्ति

रत्नाकर राव ने बताया कि मंदिर निर्माण पर सहमति बनते ही कई छात्र नेता जयपुर चले गए और गणेशजी मूर्ति बनाने का आर्डर देकर आ गए। पहले सफेद पत्थर से निर्माण की बात हुई फिर प्लान बदला और काले पत्थर से मूर्ति निर्माण का निर्णय लिया गया।

एक माह बाद काले ग्रेनाइट पत्थर से तराशी गई साढ़े तीन फीट की सुंदर मूर्ति बन कर आ गई। मूर्ति बनकर तो आई गई पर मंदिर निर्माण की रूपरेखा नहीं बनी थी। इस तरह करीब तीन साल बीत गए। उसके बाद दक्षिण भारतीय शैली में मंदिर निर्माण का निर्णय लिया गया। अब हर साल मंदिर का वार्षिकोत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।