scriptIndependence Day Special: तस्वीर नहीं, यादें हैं गवाह: आजादी की अनकही कहानी, ऐसी वीरांगना जिसने खुद को मिटा दिया | this Independence Day read story of freedom fighter Urmila Devi Shastri who wrote book karagar in her prison days | Patrika News
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Independence Day Special: तस्वीर नहीं, यादें हैं गवाह: आजादी की अनकही कहानी, ऐसी वीरांगना जिसने खुद को मिटा दिया

Independence Day Special 2024: जब बात आजादी की आती है तो महिला स्वतंत्रता सेनानी के योगदान का जिक्र किए बिना नहीं रहा जा सकता। आजादी के इस महोत्सव के बीच आज बात ऐसी ही एक वीरांगना की। उर्मिला देवी शास्त्री जिन्हें देश आजादी में लड़ाई में दिए गए योगदान के लिए जानता है। उन्होंने जेल में रहते हुए किताब लिखी थी ‘कारागार’

नई दिल्लीAug 14, 2024 / 04:08 pm

Shambhavi Shivani

जहरखाना अच्छा, जेलखाना नहीं…

Independence Day Special 2024: जब बात आजादी की आती है तो महिला स्वतंत्रता सेनानी के योगदान का जिक्र किए बिना नहीं रहा जा सकता क्योंकि चाहे खेत-खलिहान हो, मेहनत-मजदूरी हो या फिर देश की आजादी की लड़ाई, महिलाओं ने पुरुषों के कदम से कदम और कंधे से कंधे मिलाकर हर क्षेत्र में काम किया है। आजादी के इस महोत्सव के बीच आज बात ऐसी ही एक वीरांगना की। उर्मिला देवी शास्त्री (Urmila Devi Shastri) जिन्हें देश भूल भी चुका या यूं कहें कि कम ही जानता है। लेकिन अगर आप उनके बारे में जानना चाहते हैं तो आपको ‘कारागार’ किताब जरूरी पढ़नी चाहिए। 
उर्मिला देवी ने देश के लिए अपनी सारी ख्वाहिशों का गला घोट दिया। वे जेल गईं, जहां से उन्होंने महिलाओं के जीवन पर आधारित एक किताब लिखी ‘कारागार’। इस किताब में एक तरफ आप इतिहास का वर्णन देखेंगे तो वहीं दूसरी तरफ जेल में आधारभूत सुविधाओं और प्रबंधन के तौर पर कमियों का जिक्र। कौन हैं उर्मीला देवी? आइए, जानते हैं-

इस स्वतंत्रता दिवस जरूर पढ़ें ‘कारागार’ किताब (Independence Day) 

उर्मिला देवी द्वारा लिखी ये किताब काफी महत्वपूर्ण है। इसे हर भारतीय को पढ़ना चाहिए। इस पुस्तक में ब्रिटिशकाल के दौरान महिलाओं के जेल जीवन का वर्णन है। वहीं किताब में महिलाओं की राजनीति (उस समय) में हिस्सेदारी, सार्वजनिक क्षेत्रों में उनके योगदान, स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका और जेल में महिलाओं के जीवन आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है। साथ ही ये दिखाया गया है कि किस तरह जेल में श्रेणी भेद है। कैदियों को ए, बी और सी श्रेणी में बांटा जाता है। किताब के एक हिस्से में लेखिका लिखती हैं, “ए क्लास में होने का एकमात्र लाभ जो मुझे पता लगा, सिर्फ यह था कि मैं महीने में दो बार पत्र लिख सकती थी और दो बार मेरी मिलाई (मिलना) होती थी।” 
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स्वतंत्रता वीरांगना ने क्यों कहा जेल को ‘जहरखाना’? (Freedom Fighter)

उर्मिला देवी (Urmila Devi Shastri) ने अपनी किताब में लिखा, “जहरखाना अच्छा, जेलखाना नहीं। उन्होंने कहा कि जेल को करीब से देखने पर मालूम हुआ कि जेलखानों के कानून कुछ हैं और व्यवहार कुछ और। जेल मैनुअल तमाशा है। सरकार की वार्षिक रिपोर्ट मजाक है और इंस्पेक्टर जनरल का वर्ष में एक या दो बार जेल-निरीक्षण, एक प्रकार का नियमित खिलवाड़। जेल का असली रूप कोई नहीं जानता। वो सिर्फ अभागे कैदी जानते हैं। 
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कौन थीं उर्मिला देवी शास्त्री? (Urmila Devi Shastri)

स्वतंत्रता संग्राम में देश भर के कई राज्यों और वहां के स्थानीय लोगों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। आजादी की लड़ाई में मेरठ के योगदान का जिक्र न आए, ऐसा हो नहीं सकता। मेरठ के कई स्त्री-पुरुषों ने आजादी की लड़ाई के आगे अपनी खुशियों की कुर्बानी दे दी। ऐसी ही एक वीरांगना थीं, उर्मिला देवी शास्त्री, जिन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने विवाह के 10 माह बाद ही छह महीने के कारावास की सजा सुनाई थी। बहुत कम उम्र से ही उर्मिला देवी ने खुद को आजादी की लड़ाई में झोंक दिया। जेल में उनके स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ा। अंतत: छह जुलाई को 33 वर्ष की उम्र में उन्होंने देश को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।

उर्मिला देवी शास्त्री के लिए कस्तूरबा गांधी ने लिखी थी ये बातें 

कस्तूरबा गांधी ने सन 1931 में साबरमती के सत्याग्रह आश्रम में उर्मिला देवी की पुस्तक ‘कारागार’ की भूमिका में लिखा था कि उर्मिला ने विवाह के बाद पति के साथ रहने के सुख को देश के लिए कुर्बान कर दिया। घर-परिवार के सुख को छोड़र उन्होंने जेल के सुख को तत्परता से स्वीकार किया। साथ ही उन्होंने उर्मिला देवी द्वारा लिखी गई किताब ‘कारागार’ को लेकर कहा था कि यह किताब सरल और सरस हिंदी में है।

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