
असदुद्दीन ओवैसी
पत्रिका न्यूज नेटवर्क, लखनऊ. Asaduddin Owaisi: बंगाल चुनाव के बाद एआईएमआईएम के अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी की नजर 2022 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव पर है। जय भीम-जय मीम का नारा देने वाले ओवैसी की मंशा यूपी में बसपा से गठबंधन कर दलित मुस्लिम गठजोड़ की थी, लेकिन बात नहीं बनी। अब यूपी चुनाव में वो बिहार की तर्ज पर छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन को तरजीह दे रहे हैं। उनकी पार्टी ओम प्रकाश राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चा का हिस्सा बनी है। उनकी नजर यूपी की मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर है। बिहार की तरह यहां भी कुछ सीटें अपनी झोली में डालकर यूपी विधानसभा में एआईएमाईएम की मौजूदगी दर्ज कराना चाहते हैं।
पिता की सियासत को आगे बढ़ाया
ओवैसी का परिवार हमेशा से मुस्लिम पाॅलिटिक्स करता आया है। दादा अब्दुल वहाद ओवैसी ने मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन को 1957 में दोबारा जिंदा कर इसका नाम ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन किया। पिता सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी ने इसे सींचा, जो सालार ए मिल्लत के नाम से मशहूर हुए। बेटे असदुद्दीन ओवैसी ने इसे हैदराबाद के बाहर महाराष्ट्र और बिहार में पहुंचाया। इस दौरान सबकुछ बदला पर सियसी एजेंडा वही रहा और है। असदुद्दीन ओवैसी ने राजनीति का ककहरा अपने पिता से ही सीखा। उनकी पार्टी पर साम्प्रदायिक होने के आरोप भी लगे, लेकिन इससे पार्टी की विचारधारा पर कोई असर नहीं हुआ। ट्रिपल तलाक कानून, सीएए-एनआरसी का विरोध और माॅब लिंचिंग के मुद्दे संसद में जोर शोर से उठाकर मुसलमानों के दिलों में जगह बनाने की कोशिश की।
शहर की पार्टी का ठप्पा हटाया
असदुद्दीन ओवैसी की कोशिशों का ही नतीजा रहा कि एआईएमआईएम पर से शहर की पार्टी होने का ठप्पा मिटा। पार्टी की कमान संभाली तो अपने गढ़ हैदराबाद को बचाए रखते हुए उन्होंने महाराष्ट्र, और बिहार तक पांव पसार लिये। हालांकि बंगाल में जमानत जब्त हो गई, लेकिन यूपी में बिहार दोहराने की कोशिश में जुटे हैं। 1986 से पिता सलाहुद्दीन ओवैसी हैदराबाद के सांसद रहे तो 2004 से अब तक असदुद्दीन ओवैसी एमपी हैं। 2019 में महाराष्ट्र में एक और सांसद इम्तियाज जलील महाराष्ट्र से जीते हैं। 2014 और 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में दो-दो सीटें जीतीं। ओवैसी का क्रेज महाराष्ट्र में बढ़ा तो 2019 में इम्तियाज जलील सांसद बने। बिहार विधानसभा चुनाव में सबको चौंकाते हुए एआईएमआईएम ने पांच सीटें झटक लीं। हैदराबाद के बाद बिहार में ओवैसी की पार्टी के सबसे अधिक विधायक हैं।
मुसलमानों का बड़ा नेता बनने की चाहत
असदुद्दीन ओवैसी की महत्वकांक्षा देश भर के मुसलमानों का नेता बनने की दिखाई देती है। उनके भाषणों का लब्बो लुआब यही होता है कि मुसलमानों की अपनी पार्टी और अपना नेता होना चाहिये। मुस्लिम पार्टियों की बात करें तो केरल की मुस्लिम लीग और आसाम के मौलाना बदरुद्दीन की एआईयूडीएफ भी है, लेकिन वो सिर्फ अपने राज्य तक सिमटी हैं। दूसरी तरफ ओवैसी अपनी पार्टी को राष्ट्रीय फलक तक ले जाने में जुटे हैं। मुस्लिमों की बात वो संविधान के हवाले से और संविधान में मिले अधिकारों के हवाले से करते हैं। ये समझाने की पूरी कोशिश करते हैं कि 70 साल से सेक्युलर पार्टियों ने मुसलमानों का इस्तेमाल किया, इसलिये अब मुसलमानों को एक बैनर तले आ जाना चाहिये।
लंदन से पढ़ी बैरिस्टरी
असदुद्दीन ओवैसी शुरुआती पढ़ाई हैदराबाद पब्लिक स्कूल से हुई। सेंट मेरी जूनियर काॅलेज के बाद वो ग्रेजुएशन की डिग्री उन्होंने उस्मानिय युनिवर्सिटी के हैदराबाद के निजाम काॅलेज से ली। उन्होंने लंदन के लिंकन इन से बैरिस्टरी (बैरिस्टर एट लाॅ) की पढ़ाई की।
परिवार में कौन कौन है
असदुद्दीन ओवैसी का जन्म 13 मई 1969 को आंध्र प्रदेश के हैदराबाद शहर (अब तेलंगाना का हिस्सा है) में हुआ। पिता का नाम सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी और मां का नाम नजमुन्निसा ओवैसी था। तीन भाइयों में असदुद्रदीन सबसे बडे हैं। उनसे छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी तेलंगाना विधानसभा में पार्टी के नेता हैं। सबसे छोटे भाई बुरहानुद्दीन ओवैसी हैं। ओवैसी की पत्नी का नाम फरहीन ओवैसी। एक बेटा और पांच बेटियां हैं।
राजनीतिक सफर
Published on:
07 Aug 2021 01:27 pm
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