कांग्रेस में वापसी के बाद भी टिकट न मिलने पर अनुभवी राजनेता हरक सिंह रावत ने कहा, “मुझे इस बार चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं थी, पार्टी कहती तो मैं विचार करता। मैंने कई चुनाव लड़े हैं और एक राजनेता के रूप में, अभी हासिल करने के लिए बहुत कुछ नहीं बचा है। मैं विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में प्रचार करूंगा और लोगों को भाजपा सरकार के फ्लॉप शो के बारे में बताऊंगा।”
आगे अपने बयान में हरक सिंह ने कहा, “लोगों ने मेरा काम देखा है और इस राज्य के विकास के प्रति मेरे समर्पण से अच्छी तरह वाकिफ हैं। मैं विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में जाऊंगा और पार्टी के लिए प्रचार करूंगा। पहले मैं सिर्फ अपने लिए प्रचार कर रहा था। इस बार मेरी भूमिका बढ़ गई है।”
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भले ही हरक सिंह ये दावा कर रहे हैं कि इस बार चुनाव लड़ने की उनकी इच्छा नहीं है परंतु वो अपनी बहु अनुकृति गुसाईं को लैंसडौन से टिकट दिलवाने में अवश्य कामयाब हो गए। अपनी बहु के लिए वो प्रचार भी करेंगे।
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दरअसल, कांग्रेस ने यहाँ एक तीर से दो निशाने साधे हैं।
पहला, कांग्रेस ने टिकट न देकर हरक सिंह रावत को उनकी बगावत का सबक दिया है। ये तभी देखने को मिला था जब कांग्रेस ने हरक सिंह रावत से वापसी के लिए मौखिक और लिखित माफी मांगने की शर्त रखी जिसे उन्होंने माना भी।
दूसरा, कांग्रेस ने हरक सिंह की लोकप्रियता और उनके चुनावी अनुभव का इस्तेमाल अपने चुनावी प्रचार में जमकर करने वाली है। कांग्रेस गढ़वाल क्षेत्र में प्रचार के लिए रावत का व्यापक रूप से इस्तेमाल करने वाली है। हरक सिंह रावत चुनावों में जीत सुनिश्चित करने में माहिर मानें जाते हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री हरक सिंह रावत के जीत के रिकार्ड को देखें तो 2002 और 2007 में लैंसडौन से, 2012 में रुद्रप्रयाग से और 2017 में कोटद्वार से जीत हासिल कर चुके हैं।
इन सीटों के अलावा उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, टिहरी, पौड़ी और देहरादून जिलों के निर्वाचन क्षेत्रों में भी हरक सिंह रावत का समर्थन आधार मजबूत माना जाता है।
कांग्रेस हरक सिंह रावत का इस्तेमाल पार्टी उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के लिए कर सकती है।
बता दें कि भाजपा ने दूसरी संभावनाएं टटोलने के कारण उन्हें पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया था जिसके बाद वो फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए।