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हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ गईं किशोरी अमोनकर, जयपुर घराने के संगीत को दी अंतरराष्ट्रीय पहचान

10 अप्रैल 1931 को जन्मी किशोरी अमोनकर जयपुर घराने की गायिका थीं। उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई ख्याति प्राप्त हुई।

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Nakul Devarshi

Apr 04, 2017

हिंदुस्‍तानी शास्‍त्रीय परंपरा की प्रमुख गायिकाओं में से एक किशोरी अमोनकर का सोमवार देर रात निधन हो गया। वे 84 वर्ष की थीं। उन्होंने मुम्बई स्थित अपने आवास में अंतिम सांस ली। बताया जा रहा है कि वे पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहीं थीं।

10 अप्रैल 1931 को जन्मी किशोरी अमोनकर जयपुर घराने की गायिका थीं। उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई ख्याति प्राप्त हुई। कोकिलकंठी किशोरी अमोनकर की सुरीली आवाज़ से देश विदेश के लाखों संगीत रसिक मंत्रमुग्ध हुए।

ख़्याल, मीरा के भजन, मांड, राग भैरवी की बंदिश 'बाबुल मोरा नैहर छूटल जाए' पर उनका गायन ने तो संगीत रसिकों के दिल में उनकी एक अलग ही जगह बना ली। उनकी गायकी के चहेते देश-विदेश में हैं। गायन के अलावा वे एक श्रेष्ठ गुरु भी थीं। उनके शिष्यों में मानिक भिड़े, अश्विनी देशपांडे भिड़े, आरती अंकलेकर जैसी जानी मानी गायिकाएं शामिल हैं।

किशोरी अमोनकर जयपुर घराने के वरिष्‍ठ गायन सम्राट उस्‍ताद अल्‍लादिया ख़ाँ साहब से शिक्षा प्राप्‍त जानी-मानी गायिका मोघूबाई कुर्दीकर की बेटी थीं। वो शुरू से ही संगीत से ओतप्रोत वातावरण में पली-बढ़ीं।

मोगूबाई कुर्डीकर की पुत्री और गंडा-बंध शिष्या किशोरी अमोनकर ने एक ओर अपनी मां से विरासत में और तालीम से पायी घराने की विशुद्ध शास्त्रीय परम्परा को अक्षुण्ण रखा, वहीं दूसरी ओर अपनी मौलिका सृजनशीलता का परिचय देकर घराने की गायिकी को और भी निपुण किया है।

मां मोगूबाई कुर्डीकर, उनकी गुरु बहन केसरीबाई केरकर और उनके दिग्गज उस्ताद उल्लादिया खां की तालीम को आगे बढ़ाते किशोरी ने आगरा घराने के उस्ताद अनवर हुसैन खाँ से लगभग तीन महीने तक 'बहादुरी तोड़ी' की बंदिश सीखी।

पं. बालकृष्ण बुआ, पर्वतकार, मोहन रावजी पालेकर, शरतचंद्र आरोलकर से भी प्रारम्भिक मार्गदर्शन प्राप्त किया। फिर अंजनीबाई मालफेकर जैसी प्रवीण गायिका से मींड के सौंदर्य-सम्मोहन का गुर सीखा। उनकी ममतामयी माँ गुरु के रूप में अनुशासनपालन वा कड़े रियाज़ के मामले में उतनी ही कठोर रहीं, जितनी कि उनके समय में उनके अपने गुरु कठोर थे।

किशोरी अमोनकर ने न केवल जयपुर घराने की गायकी की बारीकियों और तकनीकों पर अधिकार प्राप्‍त किया, बल्‍कि कालांतर में अपने कौशल और कल्‍पना से एक नवीन शैली भी विकसित की। इस प्रकार उनकी शैली में अन्‍य घरानों की बारीकियां भी झलकती रहीं। उन्‍होंने प्राचीन संगीत ग्रंथों पर विस्‍तृत शोध भी किया।

पद्म विभूषण से सम्मानित किशोरी ने योगराज सिद्धनाथ की सारेगामा द्वारा निकाली गई एलबम 'ऋषि गायत्री' के लोकार्पण के अवसर पर कहा था, "मैं शब्दों और धुनों के साथ प्रयोग करना चाहती थी और देखना चाहती थी कि वे मेरे स्वरों के साथ कैसे लगते हैं। बाद में मैंने यह सिलसिला तोड़ दिया क्योंकि मैं स्वरों की दुनिया में ज़्यादा काम करना चाहती थी। मैं अपनी गायकी को स्वरों की एक भाषा कहती हूं।"

उन्होंने कहा था, "मुझे नहीं लगता कि मैं फ़िल्मों में दोबारा गाऊंगी। मेरे लिए स्वरों की भाषा बहुत कुछ कहती हैं। यह आपको अद्भुत शांति में ले जा सकती है और आपको जीवन का बहुत सा ज्ञान दे सकती है। इसमें शब्दों और धुनों को जोड़ने से स्वरों की शक्ति कम हो जाती है।"

वह कहती थीं, "संगीत का मतलब स्वरों की अभिव्यक्ति है। इसलिए यदि सही भारतीय ढंग से इसे अभिव्यक्त किया जाए तो यह आपको असीम शांति देता है। ''

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