
— दिनेश ठाकुर
पचास का दशक था। बचपन से सुरों की घुट्टी पीने वाली सोलह साल की एक लड़की गायिका बनने का सपना लेकर ग्वालियर से मुम्बई पहुंची। उस दौर के एक दिग्गज संगीतकार ने पूछा- क्या तुम लता मंगेशकर और आशा भौसले की तरह गा सकती हो? लड़की बोली- जी नहीं, उनकी तरह तो नहीं गा सकती। संगीतकार ने कहा- तो फिल्मों में गाने का इरादा छोड़ दो। लड़की आज्ञाकारी थी। उसने गाने का इरादा छोड़ दिया। कुछ समय बाद इस लड़की का नाम ताजा हवा के झोंके जैसी धुनें रचने वाली संगीतकार के तौर पर उभरा। उसके निर्देशन में लता मंगेशकर और आशा भौसले ने ही नहीं, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मुकेश, मन्ना डे, सुमन कल्याणपुर, येसुदास से लेकर हेमलता, अनुराधा पौडवाल आदि ने कई सदाबहार गाने गाए। उस लड़की का नाम उषा खन्ना ( Usha Khanna ) था, जिन्हें हिन्दी सिनेमा की सबसे कामयाब महिला संगीतकार माना जाता है। यूं उनसे पहले जद्दन बाई (नर्गिस की मां) और सरस्वती देवी संगीतकार के तौर पर सक्रिय थीं, लेकिन उषा खन्ना अकेली महिला संगीतकार हैं, जिन्होंने सबसे लम्बी पारी खेली।
श्रीदेवी 'चालबाज' में एक जगह कहती हैं- 'मैं मर्दों की बनाई इस दुनिया में अपनी शर्तों पर जीती हूं।' उसी तरह उषा खन्ना ने हुनर के दम पर अपनी शर्तों के हिसाब से पुरुष संगीतकारों की भीड़ में अलग मुकाम बनाया। मुमकिन है, नई पीढ़ी उषा खन्ना के नाम से अनजान हो, लेकिन उनकी धुनों वाले गाने यह पीढ़ी भी गुनगुनाती है। चाहे वह धीमे सुरों वाला रूमानी 'तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है' (आप तो ऐसे न थे) हो या दर्द में भीगा 'तेरी गलियों में न रखेंगे कदम' (हवस) या बारिश के बाद महकती मिट्टी-सा सोंधा-सोंधा 'बरखा रानी जरा जमके बरसो' (सबक) या फिर चुलबुला 'शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है' (सौतन)। यह उषा खन्ना की ही खूबी थी कि येसुदास की आवाज में उन्होंने एक तरफ 'मधुबन खुशबू देता है' (साजन बिना सुहागन) जैसा पुनीत पावन गीत रचा, तो उन्हीं की आवाज में छेड़छाड़ वाले 'दिल के टुकड़े-टुकड़े करके मुस्कुरा कर चल दिए' (दादा) को ऐसी शीतल धुन दी, जो इस किस्म के दूसरे गीतों में कम ही महसूस होती है।
अपनी पहली फिल्म 'दिल देके देखो' (1959) में नौ बेहद लोकप्रिय गीच रचकर उन्होंने जैसे मुनादी कर दी थी कि फिल्म संगीत में उनकी धुनों का जादू काफी दूर और देर तक चलने वाला है। उन्होंने कई गीत भी गाए। संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी के लिए उन्होंने 'पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले' (जॉनी मेरा नाम) में किशोर कुमार के साथ कुछ पंक्तियां गुनगुनाई थीं। मोहम्मद रफी के साथ उनकी आवाज वाला 'शाम देखो ढल रही है' (अनजान है कोई) खासा लोकप्रिय रहा। उनके गैर-फिल्मी एलबम 'मौसम' की एक गजल 'दूर रहकर तो हरेक शख्स भला लगता है/ कोई नजदीक से देखे तो पता लगता है' भी काफी पसंद की गई।
अपने फिल्मकार पति सावन कुमार की ज्यादातर फिल्मों का संगीत उषा खन्ना ने दिया। यह जुगलबंदी बाद में तलाक के साथ टूट गई। उषा खन्ना के संगीत के सफर को याद करते हुए 'निशान' (1965) का गीत बरबस याद आ जाता है- 'धूप खिल गई रात में/ या बिजली गिरी बरसात में/ हाय तबस्सुम तेरा।' उनकी धुनें भी कभी मन में नरम धूप की तरह खिलती हैं, तो कभी बारिश की ठंडी फुहारों की तरह बरसती हैं।
उनकी धुनों में विविधता के साथ ऐसी सहजता है कि जब आप 'हम तुमसे जुदा होके' (एक लुटेरा), 'छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी' (हम हिन्दुस्तानी), 'अपने लिए जिए तो क्या जिए' (बादल),'मैंने रखा है मोहब्बत अपने अफसाने का नाम' (शबनम), 'चांद को क्या मालूम' (लाल बंगला), 'अजनबी कौन हो तुम' (स्वीकार किया मैंने), 'तू जो कहे तो राधा बनूं मैं' (लैला) या 'जिंदगी प्यार का गीत है' (सौतन) सुनते हैं तो साथ-साथ गुनगुनाने लगते हैं। दुनिया को बेहिसाब सुरीला बनाने वालीं उषा खन्ना 7 अक्टूबर को 79 साल की हो जाएंगी। वे कई साल से फिल्मों से दूर हैं, लेकिन उनके सैकड़ों गाने संगीतप्रेमियों के दिलों के आस-पास हैं।
Updated on:
07 Oct 2020 02:51 am
Published on:
06 Oct 2020 10:01 pm
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