26 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

छठ पर्व में हर दिन है खास, जानिए एक-एक दिन का महत्व

छठ महापर्व कार्त‍िक मास के शुक्‍लपक्ष की चतुर्थी को शुरू होता है और यह सप्‍तमी तक चलता है।

2 min read
Google source verification
importance_of_chhath_puja.jpg

बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में मनाए जाने वाले छठ महापर्व की शुरुआत 31 अक्टूबर से होने वाली है। लोक आस्था का महापर्व छठ पर विशेष रूप से सूर्य देव की उपासना होती है। इसमें शाम को डूबते सूर्य और अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।


हिन्‍दू पंचांग के अनुसार, छठ महापर्व कार्त‍िक मास के शुक्‍लपक्ष की चतुर्थी को शुरू होता है और यह सप्‍तमी तक चलता है। छठ व्रत का त्‍योहार चार दिनों का होता है। पर्व के पहले दिन यानी कि चतुर्थी के दिन नहाय खाय का नियम होता है। दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्‍य दिया जाता है और व्रत के आखिरी और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्‍य दिया जाता है


31 अक्टूबर को नहाय-खाय: छठ पर्व के पहले दिन नहाय खाय की विधि होती है। नहाय खाय के दिन घर की साफ-सफाई करने के पश्चात स्नान किया जाता है। इस दिन चने की दाल, लौकी की सब्जी, अरवा चावल, घी और सेंधा नमक अहम होता है। इन सब चीजों से बने हुए प्रसाद व्रती ग्रहण करते हैं। व्रती के भोजन करने के बाद ही घर के अन्य सदस्य भोजन करते हैं और इस तरह छठ महापर्व की शुरुआत होती है।


01 नवंबर को खरना: महापर्व के दूसरे दिन खरना की विधि होती है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को गन्ने का जूस या गुड़ की खीर का प्रसाद बनता है और यही प्रसाद व्रती ग्रहण भी करते हैं। इसके बाद से 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।


02 नवंबर को डूबते सूर्य अर्घ्य: छठ के तीसरे दिन व्रती नदी या तालाब में उतरकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसे संध्या अर्घ्य भी कहा जाता है।

03 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य: छठ पूजा के चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सूर्य निकलने से पहले ही लोग नदी या तालाब के घाट पर पहुंच जाते हैं और पानी में उतरकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं और प्रसाद खाकर व्रत खोलते हैं। इस तरह महापर्व का समापन हो जाता है।