दरअसल शास्त्रों में माना गया है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। वहीं इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो, महापराक्रमी सम्राट विक्रमादित्य ने अपने नाम से संवत्सर का प्रारंभ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन से किया। इसलिए इस संवत्सर को विक्रम संवत्सर कहा जाता है। तब से आज तक विक्रम संवत के नाम से जाने जाना वाला हिन्दु नव वर्ष नव संवत्सर 2079 वर्ष पूरे कर चुका है। कल से यानी बुधवार 22 मार्च 2023 से विक्रम संवत 2080 की बेहद शुभ और दुर्लभ संयोगों में शुरुआत होने जा रही है।
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यहां जानें चैत्र माह के नवरात्रि से ही क्यों की जाती है शुरुआत
लोगों के मन में अक्सर इस प्रश्न को उठते हुए सुना है कि सालभर में नवरात्रि तो वर्ष में चार बार मनाए जाते हैं। इनमें से दो गुप्त होते हैं और एक चैत्र तथा एक शारदीय नवरात्रि होते हैं। लेकिन हिन्दु नव वर्ष की शुरुआत चैत्र मास के नवरात्र से ही क्यों की जाती है? दरअसल इसका सबसे बड़ा और प्रमुख कारण यह है कि चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जब प्रकृति में वृक्ष और लताएं पल्लवित और पुष्पित होती हैं। इसी माह में भौंरों को मधुरस पर्याप्त मात्रा में मिलता है। प्रकृति पूरी तरह से अपने नव निर्माण में होती है। इसीलिए चैत्र माह के नवरात्रि से हिन्दु नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है।
वहीं सनातन धर्म की बात करें तो प्रत्येक धार्मिक कार्य में सूर्य का प्रमुख स्थान माना गया है तो, वहीं चंद्रमा का स्थान भी उतना ही महत्वपूर्ण माना गया है। जीवन के मुख्य आधार वनस्पतियों को चंद्रमा से ही सोमरस की प्राप्ति होती है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के लिए चंद्र की कला का प्रथम (परेवा) दिन होता है, इसीलिए हमारे ऋषियों ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन को नव वर्ष के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त समय माना है। भगवान श्रीराम ने चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन ही जन्म लिया था। ऐसे में इस माह का महत्व और भी बढ़ जाता है।