
holi holastak starts from 23 february
होलाष्टक में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण एवं विद्यारंभ आदि सभी मांगलिक कार्य या कोई नवीन कार्य प्रारम्भ करना शास्त्रों के अनुसार वर्जित माना गया है। होलाष्टक के दिनों में किए गए दान से जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है और ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है। धार्मिक ग्रंथ और शास्त्रों के अनुसार होलाष्टकों को व्रत, पूजन और हवन की दृष्टि से अच्छा समय माना गया है।
शास्त्रों में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होलिका दहन तक के समय को होलाष्टक कहा गया है। इस वर्ष 23 फरवरी (शुक्रवार) से होलाष्टक प्रारम्भ हो रहे हैं। होलिका पूजन करने के लिए होली से आठ दिन पूर्व होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखी लकड़ी, उपले व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है। इसी दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन माना जाता है। होलाष्टक के दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, मांगलिक कार्य करना वर्जित माना गया है।
प्रभु स्मरण है श्रेष्ठ
ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार अष्टमी से पूर्णिमा तक नवग्रह भी उग्र रूप लिए रहते हैं, यही वजह है कि इस अवधि में किए जाने वाले शुभ कार्यों में अमंगल होने की आशंका बनी रहती है। इन दिनों में व्यक्ति के निर्णय लेने की शक्ति भी कमजोर हो जाती है। होलाष्टकों को व्रत, पूजन और हवन की दृष्टि से अच्छा समय माना गया है। इन दिनों में किए गए दान से जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
भक्त प्रह्लाद और कामदेव से है सम्बन्ध
शिव पुराण के अनुसार देवताओं के अनुरोध पर कामदेव ने अपना प्रेम बाण चलाकर शिवजी की तपस्या भंग कर दी। इससे महादेव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया। कामदेव के भस्म होते ही सृष्टि में शोक व्याप्त हो गया। अपने पति को पुन: जीवित करने के लिए रति ने अन्य देवी-देवताओं सहित महादेव से प्रार्थना की। प्रसन्न होकर भोलनाथ ने कामदेव को पुनर्जीवन का आशीर्वाद दिया। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को कामदेव भस्म हुए और आठ दिन बाद उनके पुनर्जीवन का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। यह भी मान्यता है कि भक्त प्रह्लाद की अनन्य नारायण भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकश्यप ने होली से पहले के आठ दिनों में प्रह्लाद को अनेकों प्रकार के जघन्य कष्ट दिए थे। तभी से भक्ति पर प्रहार के इन आठ दिनों को हिन्दू धर्म में अशुभ माना गया है।
Published on:
19 Feb 2018 01:38 pm
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