
जगन्नाथ पुरी रथयात्रा 2024
ओडिशा में जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Puri Rath Yatra) निकालने की परंपरा हजारों साल पुरानी है। इससे जुड़ी कई कथाएं आम लोगों में प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक के अनुसार एकबार गोपियों ने माता रोहिणी से कान्हा की रास लीला के बारे में बताने की जिद कर दी। उस समय सुभद्रा भी वहां मौजूद थीं। इससे मां रोहिणी ने सुभद्रा के सामने भगवान कृष्ण की गोपियों के साथ रास लीला का बखान करना ठीक नहीं समझा। इसलिए सुभद्रा को बाहर भेज दिया और कहा कि ध्यान रखना कि भीतर कोई न आ पाए।
इसी दौरान कृष्ण जी और बलराम सुभद्रा के पास आ गए और दाएं-बाएं खड़े होकर माता रोहिणी की बातें सुनने लगे, तभी देव ऋषि नारद भी वहीं आ धमके, उन्होंने भाई-बहनों को एक साथ देख लिया। इस पर नारद जी ने तीनों से उनके उसी रूप में उन्हें दैवीय दर्शन देने का आग्रह किया। तीनों ने नारद की मनोकामना पूरी कर दी। तभी से जगन्नाथ पुरी के मंदिर में बलभद्र, सुभद्रा और कृष्ण जी उसी रूप में दर्शन देने लगे।
एक अन्य कथा के अनुसार पुरी जगन्नाथ मंदिर का निर्माण राजा इंद्रद्युम्न ने कराया था और राजा इंद्रद्युम्न की धर्मपत्नी रानी गुंडिचा ने भगवान जगन्नाथ के लिए गुंडिचा माता मंदिर का निर्माण किया था। इसीलिए राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी रानी गुंडिचा की भक्ति का सम्मान करने के लिए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा अपना मुख्य मन्दिर छोड़कर कुछ दिनों तक रानी गुंडिचा के बनवाए गुंडिचा माता मंदिर में निवास करते हैं।
पहांडी: पहांडी जगन्नाथ रथ यात्रा की धार्मिक परंपरा है, जिसमें भक्त बलभद्र, सुभद्रा और भगवान श्रीकृष्ण को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक की रथ यात्रा कराते हैं। मान्यता है कि गुंडिचा, भगवान श्रीकृष्ण की सच्ची भक्त थीं, और इसी का सम्मान करते हुए ये इन तीनों हर वर्ष उनसे मिलने जाते हैं।
छेरा पहरा: रथ यात्रा के पहले दिन छेरा पहरा की रस्म निभाई जाती है, जिसके अनुसार पुरी के गजपति महाराज यात्रा मार्ग और रथों को सोने की झाड़ू से स्वच्छ करते हैं।
सनातन परंपरा के अनुसार ईश्वर के सामने हर व्यक्ति समान है। इसलिए रथ यात्रा में राजा साफ-सफाई का कार्य करते हैं। यह रस्म यात्रा के दौरान दो बार होती है। एकबार जब यात्रा को गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है तब और दूसरी बार जब यात्रा के तहत भगवान को जगन्नाथ मंदिर में लाया जाता है।
इसके बाद जब जगन्नाथ यात्रा गुंडिचा मंदिर में पहुंचती है तब भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र को स्नान कराया जाता है और उन्हें पवित्र वस्त्र पहनाएं जाते हैं। यात्रा के पांचवें दिन हेरा पंचमी मनाई जाती है। इस दिन मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को खोजने आती हैं, जो अपना मंदिर छोड़कर यात्रा में आ जाते हैं। हेरा पंचमी रथ यात्रा के चौथे दिन मनाई जाती है। सामन्यतः इस दिन षष्ठी होती है।
रथ यात्रा से एक दिन पहले गुंडिचा मंदिर की भगवान जगन्नाथ के भक्त साफ-सफाई करते हैं और उसे आकर्षक ढंग से सजाते हैं। गुंडिचा मंदिर को स्वच्छ और सुसज्जित करने की प्रथा को गुंडिचा मार्जन के रूप में जानी जाती है।
गुंडिचा मन्दिर में आठ दिन विश्राम के बाद भगवान जगन्नाथ देवशयनी एकादशी (चातुर्मास शुरू होने से पहले) से पहले फिर अपने मुख्य निवास पर लौट आते हैं। इस दिन को बहुदा यात्रा अथवा वापसी यात्रा के रूप में जाना जाता है। बहुदा यात्रा, रथ यात्रा के आठ दिन बाद दशमी तिथि पर आयोजित की जाती है। हालांकि रथ यात्रा से लेकर गुंडिचा मंदिर में ठहरने की समयावधि के मध्य यदि कोई तिथि घटती-बढ़ती है, तो बहुदा यात्रा दशमी तिथि पर न होकर किसी अन्य तिथि पर हो सकती है। बहुदा यात्रा के समय एक छोटा पड़ाव आता है, जहां भगवान जगन्नाथ कुछ समय के लिए रूकते हैं। इस स्थान को मौसी मां मंदिर के रूप में जाना जाता है, जो कि, देवी अर्धाशिनी को समर्पित एक दिव्य स्थल है।
जगन्नाथ रथ यात्रा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ के वार्षिक गुंडिचा माता मंदिर के भ्रमण का प्रतीक है। मान्यता है कि जो कोई भक्त सच्चे मन और श्रद्धा के साथ इस यात्रा में शामिल होते हैं तो उन्हें मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है और वो जीवन-मृत्यु के चक्र से बाहर निकल जाते हैं। इस यात्रा को पुरी कार फेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि हर हिंदू को अपने जीवनकाल में कम से कम जगन्नाथ मंदिर के दर्शन भी जरूर करने चाहिए।
Updated on:
11 Jun 2024 06:07 pm
Published on:
11 Jun 2024 06:06 pm
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