
जानें क्या केरल का खास त्यौहार, कैसे होती भगवान अय्यपा की पूजा
मकर संक्राति का पर्व देश के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता हैं और सभी जगह इस दिन भगवान सूर्य नारायण की ही पूजा की जाती है। मकर संक्रांति को केरल राज्य में भी 'मकरविलक्कू' त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान अय्यपा की विशेष पूजा अर्चना भी सबरीमला में एक वार्षिक उत्सव के रूप में की जाती है। इसी दिन से मलयालम पंचांग के पहले दिन की शुरूआत भी मकर की होती है।
मकरविलक्कू पर्व के दिन भगवान श्री अय्यप्पा की केरल सहित पूरे दक्षिण भारत में विशेष पूजा अर्चना की जाती हैं । ऐसा माना जाता हैं कि भगवान अय्यप्पा भगवान शिवजी और भगवान विष्णु के पुत्र हैं, जो ब्रह्मचारी है। जन्म से ही गले में स्वर्ण घंटी होने के कारण इनका नाम मणिकंदन पड़ गया । जन्म से ही गले में स्वर्ण घंटी होने के कारण इनका नाम मणिकंदन पड़ गया। आज भी भगवान अय्यप्पा के दर्शन दस वर्ष से अधिक और 60 वर्ष से कम आयु की महिलाएं ही कर सकती है।
ऐसे होती है मुख्य पूजा
मकरविलक्कू के दिन थिरुवाभरणं भव्य पर्व के रूप में आभूषणों की शोभायात्रा निकाली जाती है। इस य़ात्रा में पंडलम महल से शाही आभूषणों को मुख्य मंदिर लाया जाता है जिसे बड़ी ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मुख्य मंदिर तक लाया जाता है। हजारों श्रद्धालु इस शोभायात्रा में शामिल होते हैं। मकरविल्लकू के दिन मुख्य पूजा में 'सांध्य दीपाराधना' होती है। इस दिन पूरे राज्य में शाम के समय अनेक दीपकों जो जलाया जाता है जिसे धरती और आकाश भी जगमगाने लगते हैं।
माना जाता हैं कि दीपाराधना से पूर्व दिशा आकाश में मकर तारा उदय होता है और उसके बाद सबरीमला मंदिर के ठीक विपरीत दिशा में पोन्नमबालमेडु नामक पहाड़ी पर महाआरती होती है। कहा जाता है कि महाआरती की दिव्य ज्योति के दर्शन मात्र से जन्म जन्मांतरों के पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन में खुशियों का आगमन होने लगता है।
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Published on:
13 Jan 2020 01:30 pm
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