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Krishna Janmashtami : भगवान कृष्ण की यह सुमधुर स्तुति हर काम में दिलाती है विजयश्री, करती है हर कामना पूरी

Krishna Janmashtami : इस स्तुति का पाठ करने से हर क्षेत्र में विजयश्री मिलती है, साथ ही अनेक मनोकामनाओं की पूर्ति भी होने लगती है।

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भोपाल

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Shyam Kishor

Aug 17, 2019

Krishna Janmashtami

Krishna Janmashtami : भगवान कृष्ण की यह सुमधुर स्तुति हर काम में दिलाती है विजयश्री, करती है हर कामना पूरी

इस साल 24 अगस्त 2019 को पूरे देश में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव का महा पर्व बहुत ही धुम-धाम से मनाया जायेगा। कहा जाता है कि इस शुभ दिन श्रीमद्भागवतपुराण में बताई गई, देवी कुंती द्वारा रचित इस स्तुति का पाठ करने से हर क्षेत्र में विजयश्री मिलती है, साथ ही अनेक मनोकामनाओं की पूर्ति भी होने लगती है।

हर मनोकामना होगी पूरी, इस जन्माष्टमी जप लें इनमें से कोई भी एक मंत्र

।। अथ श्रीमद्भागवतपुराण कुंती कृत श्रीकृष्ण स्तुति ।।

1- नमस्ये पुरुषं त्वद्यमीश्वरं प्रकृते: परम्।
अलक्ष्यं सर्वभूतानामन्तर्बहिरवास्थितम्।।
मायाजवनिकाच्छन्नमज्ञाधोक्षमव्ययम्।
न लक्ष्यसे मूढदृशा नटो नाटयधरो यथा।।

2- तथा परमहंसानां मुनीनाममलात्मनाम्।
भक्तियोगविधानार्थं कथं पश्येम हि स्त्रिय:।।
कृष्णाय वासुदेवाय देवकीनन्दनाय च।
नन्दगोपकुमाराय गोविन्दाय नमो नम:॥

3- नम: पङ्कजनाभाय नम: पङ्कजमालिने।
नम: पङ्कजनेत्राय नमस्ते पङ्कजाङ्घ्रये॥
यथा हृषीकेश खलेन देवकी कंसेने रुद्धातिचिरं शुचार्पिता।
विमोचिताहं च सहात्मजा विभो त्वयैव नाथेन मुहुर्विपद्गणात्॥

4- विषान्महाग्ने: पुरुषाददर्शनादसत्सभाया वनवासकृच्छ्रत ।
मृधे मृधे sनेकमहारथास्त्रतो द्रौण्यस्त्रतश्चास्म हरे sभिसक्षिता:॥
विपद: सन्तु ता: शश्वत्तत्र तत्र जगद्गुरो।
भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम्॥

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5- जन्मैश्वर्यश्रितश्रीभिरेधमानमद: पुमान्।
नैवार्हत्यभिधातुं वै त्वामकिञ्चनगोचरम्॥
नमो sकिञ्चनवित्ताय निवृत्तगुणवृत्तये।
आत्मारामाय शान्ताय कैवल्यपतये नम:॥

6- मन्ये त्वां कालमीशानमनादिनिधनं विभुम् ।
समं चरन्तं सर्वत्र भूतानां यन्मिथ: कलि:॥
न वदे कश्चद्भगवंश्चिकीर्षितं तवेहमानस्य नृणां विडम्बनम्।
न यस्य कश्चिद्दयितो sस्ति कहिर्चिद् द्वष्यश्च यस्मिन्विषमा मतिर्नृणाम्॥

7- जन्म कर्म च विश्वात्मन्नकस्याकर्तुरात्मन:।
तिर्यङ्नृषिषु याद: स तदत्यन्तविडम्बनम्॥
गोप्याददे त्वयि कृतागसि दाम तावद्या ते दशाश्रुकलिलाञ्जनासम्भ्रमाक्षम्।
वक्रं निनीय भयभावनया स्थितस्य सा मां विमोहयति भीरपि यद्बभेति॥

8- केचिदाहुरजं जातं पुण्यश्लोकस्य कीर्तये।
यदो: प्रियस्यान्ववाये मलयस्येव चन्दनम्॥
अपरे वसुदेवस्य देवक्यां याचितो sभ्यगात्।
अजस्त्वमस्य क्षेमाय वधाय च सुरद्विषाम्॥

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9- भारावतारणायान्ये भुवो नाव इवोदधौ।
सीदन्त्या भूरिभारेण जातो ह्यात्मभुवार्थित:।।
भवेष्मिन्‌ क्लिष्यमानानामविद्याकामकर्मभिः।
श्रवण स्मरणार्हाणि करिष्यन्निति केच॥

10- शृण्वन्ति गायन्ति गृणन्त्यभीक्ष्णश: स्मरन्ति नन्दन्ति तवेहितं जना:।
त एव पश्यन्त्यचिरेण तावकं भवप्रवाहोपरमं पदाम्बुजम्॥
अप्यद्य नस्त्वं स्वकृतेहित प्रभो जिहाससि स्वित्सुहृदो sनुजीविन:।
येषां न चान्यद्भवत: पदाम्बुजात्परायणं राजसु योजितांहसाम्॥

11- के वयं नामरूपाभ्यां यदुभि: सह पाण्डवा:।
भवतो sदर्शनं यर्हि हृषीकाणामिवेशितु:।।
नेयं शोभिष्यते तत्र यथेदानीं गदाधर।
त्वत्पदैरङ्किता भाति स्वलक्षणविलक्षितै:॥

12- इमे जनपदा: स्वृद्धा: सुपक्वौषधिवीरुध:।
वनाद्रिनद्युदन्वन्तो ह्येधन्ते तव वीक्षितै:॥
अथ विश्वेश विश्वात्मन्विश्वमूर्ते स्वकेषु मे।
स्नेहपाशमिमं छिन्धि दृढं पाण्डुषु वृष्णषु॥

13- त्वयि मे sनन्यविष्या मतिर्मधुपतेsसकृत्।
रतिमुद्वहतादद्धा गङ्गेवौघमुदन्वति॥
श्रीकृष्ण कृष्णसख वृष्ण्यृषभावनिध्रुग्राजन्यवंशदहनानपवर्गवीर्य।
गोविन्द गोद्विजसुरार्तिहरावतार योगेश्वराखिलगुरो भगवन्नमस्ते।।

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