स्टेशन रोड पर जुलूस के दौरान जाम लग गया। इंस्पेक्टर बीडी पांडे ने जाम खुलवाते हुए जुलूस को निकलवाया। इस दौरान एक ओर के रास्ते का बंद कर जुलूस निकालने के लिए रास्ता बनाया। इस दौरान मुस्लिम समाज के लोगों ने उनके कार्य की सराहना की।
समीउज्ज्मा कुरैशी ने बताया कि ईदमिलादुन्नबी (बारावफात) अन्य त्योहारों से अफजल (खास) माना जाता है। इसका कारण यह है कि इस माह की चाँद की 12 तारीख को इस्लाम मजहब के बानी हजरत मोहम्मद साहब की पैदायश हुई और इसी रबी उल अव्वल को आप इस दुनिया से रुखसत भी हुए। बारावफात के दिन खुदा ने भेजा मोहम्मद साहब कोहजरत रसूल उल्लाह मोहम्मद सल्लाह औह-आलै वसल्लम को खुदा ने पैदा करके इंसानों की हिदायत के वास्ते जमीं पर भेजा, ताकि वह लोगों को उम्दा तालीम देकर उन्हें नेक इंसान बनाये।
यह सिलसिला हजरते आदम से शुरू हुआ और लगभग 124000 नबी और रसूल तशरीफ लाये। उनमें सबसे आखिर में आज से साढ़े चौदह सौ साल पहले 20 अप्रैल 571 ईसवी मुताबिक आज के दिन (12 रबी-ए-उल-अव्वल) पीर (सोमवार) के दिन सुबह अरब के मक्का शहर में हजरते आमना खातून के मुबारिक शिकम (पेट) से मोहम्मद साहब पैदा हुये।व्यापार करते थे मोहम्मद साहब आपका नाम मोहम्मद रखा गया क्योंकि पैदायश से पहले ही आपके वालिद (पिता) का इंतकाल हो गया था। आपकी परवरिश आपके दादा अब्दुल मुन्तलिब ने की। आपके दादा काबा शरीफ के मुतवल्ली थे। अरब के लोग उनको बहुत इज्जत देते थे। मोहम्मद सल्लाह-औ-आलै बसल्लम की शादी 25 साल की उम्र में मक्के की एक बेवा (विधवा) औरत खदीजा से हुई। खदीजा की उम्र उस वक्त 40 साल की थी।
उन्होंने बताया कि 40 साल की उम्र में किया नबी होने का ऐलानशादी के 15 साल बाद यानी 40 साल की उम्र में आपने अल्लाह के हुक्म से अपने नवी होने का ऐलान किया। यह वह दौर था कि अरब के लोग ज़हालत के अंधेरे में डूबे हुये थे। वह खुदा को तो भूले ही हुये थे। इंसानियत नाम की भी कोई चीज उनमें नहीं थी। अपने हाथों से अपनी ही बेटियों को जिन्दा दफ़ना दिया करते थे। जरा-जरा सी बात पर झगड़ा करते हुये तलवारों का इस्तेमाल करना आम बात थी।
कुरआन शरीफ नाजिलमोहम्मद साहब ने उन्हें उन तमाम बुरी रस्मों और बुरी बातों से रोका और अच्छे काम करने का हुक्म दिया। अल्लाह की तरफ से उनपर कुरआन शरीफ नाज़िल हुआ जो इंसानों की हिदायत के लिये है। उसमें हर अच्छी बात का हुक्म दिया गया और बुरी बातों से रोका गया।अमन और शांति की बातआपने हमेशा अमन और शान्ति कायम करने की बात की। कभी भी आपने किसी पर जुलमन तलवार नहीं उठायी। आपने हमेशा कमजोरों, गरीबों और मजलूमों की मदद की, भूखों को खाना खिलाया और नंगों को कपड़ा पहनाया। आपकी कुल उम्र 63 साल की हुई, अल्लाह ने आपको जिस मक़सद के तहत दुनिया में भेजा था, वह आपने बहुत ही खूबसूरती के साथ अंजाम तक पहुँचाया।