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श्रावण मास पर विशेष- इस स्‍वयंभू शिवलिंग पर रावण ने चढ़ाया था अपना पहला सिर

रावण काल से जुड़ा हुआ है गाजियाबाद स्थित दूधेश्‍वरनाथ मंदिर का इतिहास

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dudheshwar nath mandir

श्रावण मास पर विशेष- इस स्‍वयंभू शिवलिंग पर रावण ने चढ़ाया था अपना पहला सिर

गाजियाबाद। भगवान शिव का प्रिय श्रावण मास 28 जुलाई से शुरू हो चुका है। 9 अगस्‍त को शिवरात्रि का त्‍योहार है। ऐसे में हम आपको पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के उन मंदिरों के बारे में बताएंगे, जिनकी काफी मान्‍यता है। शिवरात्रि का जल चढ़ाने के लिए इन मंदिरों में हजारों शिवभक्‍त पहुंचते हैं। गाजियाबाद के दूधेश्‍वरनाथ मंदिर की भी कुछ्र ऐसी ही मान्‍यता है।

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रावण काल से जुड़ा है इतिहास

गाजियाबाद शहर में स्थित दूधेश्‍वरनाथ मठ के इतिहास को रावण काल से जोड़ा जाता है। इसे स्‍वयंभू मंदिर माना जाता है। दूधेश्वर महादेव मठ मंदिर में जमीन से साढ़े तीन फीट नीचे स्थापित स्वयंभू दिव्य शिवलिंग है। मान्‍यता है क‍ि यहां भगवान शिव को जल चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सावन के पहले साेमवार को भी यहां भक्‍तों की लंबी-लंबी लाइनें लग गई थीं। भक्‍त देर रात को ही लाइन लगाकर खड़े हो गए थे।

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रावण के पिता ने की थी तपस्‍या

कहा जाता है कि लंकापति रावण के पिता विश्रवा ने यहां कठोर तप किया था। रावण ने भी यहां पूजा-अर्चना की थी। इसकी गिनती देश के आठ प्रमुख मठों में होती है। पुराणों के अनुसार, रावण ने भगवान शिव को प्रसन्‍न करने के लिए यहां अपना पहला सिर चढ़ाया था।

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पुराणों में मिलता है वर्णन

पुराणों के अनुसार, हरनंदी (हिरण्यदा) नदी के किनारे हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग का वर्णन मिलता है। यहां पुलस्त्य के पुत्र एवं रावण के पिता विश्रवा ने घोर तपस्या की थी। कालांतर में हरनंदी नदी का नाम हिंडन हो गया। साथ ही हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग ही दूधेश्वर महादेव मठ के नाम से जाना गया।

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एक और कथा

इस मठ की एक और प्रचलित कथा भी है। कहा जाता है क‍ि गांव कैला की गायें यहां चरने के लिए आती थीं। बताया जाता है कि टीले के ऊपर पहुंचने पर गायों के थन से अपने आप दूध गिरने लगता था। जब यह बात ग्रामीणों को पता चली तो उन्‍होंने यहां खुदाई कराई, जिसमें उन्‍हें यह शिवलिंग मिला। इस वजह से इसका नाम दूधेश्‍वर या दुग्धेश्वर मठ पड़ा।

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समय के साथ खत्‍म हो गई सुरंग

दूधेश्वरनाथ मंदिर के महंत नारायण गिरी के मुताबिक, यहां से रावण की ननिहाल बिसरख और हिंडन नदी के किनारे एक सुरंग निकलती थी। समय के साथ उसका अस्तित्‍व खत्‍म हो गया। मंदिर का मेन गेट एक ही पत्थर को तराश कर बनाया गया है। दरवाजे के बीच में भगवान गणेश विद्यमान हैं।

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