
फोटो सोर्स: पत्रिका, नामांकन करते पंकज चौधरी
उत्तर प्रदेश में काफी इंतजार के बाद आखिर भाजपा को नया प्रदेश अध्यक्ष लगभग़ मिल ही गया। शनिवार को पंकज चौधरी के नाम से इकलौता नामांकन पत्र खरीदा और भरा गया। नामांकन के दौरान सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य प्रस्तावक के तौर पर मौजूद रहे। सारी कवायद हो चुकी है, रविवार को यूपी बीजेपी अध्यक्ष के रूप में पंकज चौधरी के नाम का औपचारिक ऐलान किया जाएगा।
जब जब लगभग प्रदेश अध्यक्ष तय ही हैं तो अब जानते है कि क्यों इतना नाप तौल कर कैबिनेट मंत्री पंकज चौधरी को ही इस रेस के लिए समझा गया। इनको यूपी जैसे बड़े प्रदेश की जिम्मेदारी क्या देख कर दी गई है, भाजपा किस रणनीति के तहत काम की है। बता दें कि यूपी में 2027 वर्ष में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं इसकी तैयारियां शुरू हो गई हैं।
सपा, बसपा आदि दल सभी यूपी की सत्ता पाने के लिए जातीय समीकरण की गोटियां बिछाने में लग चुके हैं। यूपी में एक ओर समाजवादी PDA के समीकरण से लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा के होश उड़ा चुकी है वहीं बसपा सुप्रीमों मायावती भी अरसे बाद पुनः सक्रिय होकर रैलियां कर रही हैं।
2014 से चल रहा मोदी का विजय रथ 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी के जातीय समीकरण के गणित में उलझ गई और उसका फायदा उठाते हुए समाजवादी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए भाजपा क्षत्रपों की नींद उड़ा चुकी है। यूपी में 2027 में भाजपा किसी तरह की गलती करने के मूड में नहीं है। सूत्रों के मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में भी यही गणित चलती रही जिस कारण चुनाव में देरी हुई।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी इस बार सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरणों को साधते हुए ऐसे नेता को पार्टी की कमान देना चाहती थी जो अखिलेश यादव के ‘पीडीए’ फार्मूले का तोड़ बन जाए। क्योंकि इस फार्मूले के तहत अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ मिलकर 2024 आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सूबे में शिकस्त दे दी थी। इस लिहाज से देखें तो पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान मिलने के पीछे की सबसे अहम वजह अखिलेश यादव हैं।
राजनैतिक गलियारे में जोरों की चर्चा है कि पिछड़ा समाज से आने वाले केंद्रीय राज्य मंत्री पंकज चौधरी के हाथों में कमान सौंपने के पीछे सबसे बड़ा कारण उनकी जाति है। वह कुर्मी समाज से आते हैं। पूर्वांचल के 20 जिलों में कुर्मी वोटरों का दबदबा है। यहीं 2024 में भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था। गठबंधन में शामिल अपना दल की कुर्मी नेता अनुप्रिया पटेल का प्रभाव काम नहीं आया था।
लोकसभा चुनाव 2024 में सपा ने कुर्मी समीकरण पर खुलकर बैटिंग की, और कुर्मी प्रत्याशियों को टिकट दिया। यही भाजपा के लिए डेमेज हो गया। यही कुर्मी बिरादरी 2022 तक भाजपा के साथ थी भाजपा दुबारा कुर्मी बिरादरी को छिटकाने की भूल नहीं कर रही। बीजेपी चाहती है कि यह वोटबैंक फिर से पार्टी के साथ आ जाए। पूर्वांचल के 20 जिलों में इनकी आबादी करीब 9 फीसदी बताई जाती है। जो कि यादवों के बाद सबसे ज्यादा है।
Published on:
13 Dec 2025 09:06 pm
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