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आक्सीजन कांड के आरोपी डाॅ.कफिल जेल से लिखी चिट्ठी, बताया उस दिन क्या-क्या हुआ था

locationगोरखपुरPublished: Apr 24, 2018 12:40:03 pm

10 अगस्त की वह काली रात आज भी जेहन में कौंधता रहता है

dr kafil letter
गोरखपुर। बीआरडी मेडिकल काॅलेज में हुए आक्सीजन कांड के मामले में जेल काट रहे डाॅ.कफिल खान की एक चिट्ठी ने पूरे प्रशासनिक व्यवस्था और यूपी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। गिरफ्तारी के बाद पहली बार डाॅ.कफिल खान इस मामले में अपनी सफाई दिए हैं। परिजनों द्वारा डाॅ.कफिल की चिट्ठी को जारी किया गया है।
चिट्ठी का मजमून साफ तौर पर यह इंगित कर रहा है कि आक्सीजन कांड में प्रशासनिक लापरवाही को छुपाने के लिए उनको सलाखों के पीछे धकेला गया है। उन्होंने आठ माह से जेल में होने पर न्याय व्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट कहता है कि बेल अधिकार होता है और जेल अपवाद। लेकिन मेरा मामला न्याय प्रक्रिया के हनन का क्लासिकल उदाहरण है।
यही नहीं डाॅ.कफिल की टूटी चुप्पी से यूपी सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे। पत्र में डाॅ.कफिल ने कहा है कि मैं किसी भी रूप में लिक्विड ऑक्सीजन/जम्बो सिलिंडर के खरीद-फरोख्त/ ऑर्डर देने/ सप्लाई/ देखरेख/ भुगतान आदि से जुड़ा हुआ नहीं था। अगर पुष्पा सेल्स ने अचानक लिक्विड आक्सीजन की सप्लाई रोक दी तो उसके लिए मैं जिम्मेदार कैसे हो गया? उन्होंने पत्र में बताया है कि पुष्पा सेल्स द्वारा अपनी 68 लाख की बकाया राशि के लिए लगातार 14 बार रिमाइंडर भेजे गए। इसके बावजूद अगर इस सन्दर्भ में कोई लापरवाही बरती गई और कोई कार्यवाही नहीं की गयी तो इसके लिए गोरखपुर के डीएम, डीजी मेडिकल एजुकेशन, स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव दोषी हैं। यह पूरी तरह से एक उच्च स्तरीय प्रशासकीय फेल्योर है कि जिन्होंने स्थिति की गंभीरता को नहीं समझा। उन्होंने कहा है कि हमें जेल में डालकर बलि के बकरे की तरह इस्तेमाल किया ताकि सच हमेशा-हमेशा के लिए गोरखपुर जेल की सलाखों के पीछे दफन रहें।

मैंने वही किया जो एक डाॅक्टर को करना चाहिए

डाॅ.कफिल ने सिलसिलेवार आक्सीजन कांड की घटना बयां की है। अपने पत्र में उन्होंने बताया है कि मेरे भाग्य में लिखे उस 10 अगस्त की रात को जैसे ही मेरे मोबाइल पर व्हाट्सएप संदेश मिला मैं खुद को रोक न सका। मैंने वही किया जो एक डॉक्टर को, एक पिता को, एक जिम्मेदार नागरिक को करना चाहिए था। मैंने हर उस जिन्दगी को बचाने की कोशिश की जो अचानक लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित होने के बाद खतरे में पड़ गई थी। उन मासूमों की जिंदगियों को बचानेके लिए हर संभव प्रयास किया। मरते मासूमों को बचाने के लिए मैं सबको फोन करने लगा, गुजारिश करता रहा, यहां-वहां हर संभावित जगह गया। खुद गाड़ी चलाई। जहां संभव हुआ खुद ही आदेश भी दिया। खुद खर्च किया। मैंने वह हर कोशिश की जो एक संवेदनदनशील इंसान को करनी चाहिए। जेल से लिखे पत्र में डाॅ.कफिल बताते हैं कि मैंने अपने संस्थान के विभागाध्यक्ष को फोन किया। सहकर्मियों, बीआरडी मेडिकल काॅलेज के प्राचार्य, एक्टिंग प्राचार्य, गोरखपुर के डीएम, गोरखपुर के स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल डायरेक्टर, गोरखपुर के सीएमएस/एसआईसी, बीआरडी मेडिकल कालेज के सीएमएस/एसआईसी को फोन किया। सबको अचानक लिक्विड ऑक्सीजन सप्लाई रुक जाने के कारण पैदा हुई गंभीर स्थिति के बारे में सबको अवगत करवाया और यह भी बताया की किस तरह से ऑक्सीजन की सप्लाई रुकने से नन्हें बच्चों की जिंदगियां खतरे में हैं। डाॅ.कफिल ने बताया है कि सबूत के तौर पर फोन काॅल के सारे रिकार्ड उनके पास है।
पत्र में उन्होंने बताया है कि कैसे सैकड़ों मासूम बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए मोदी गैस, बालाजी, इम्पीरियल गैस, मयूर गैस एजेंसी से जम्बो आक्सीजन सिलिंडर्स मांगे। अस्पतालों के फोन नम्बर इकठ्ठे किये और उनसे जम्बो आक्सीजन सिलिंडर्स के लिए बात किया। मैंने उन्हें नकद भुगतान भी किया। कुछ को बाद में धनराशि देने के लिए मनाया।
अपनी गाड़ी से मैं आसपास के अस्पतालों से सिलेंडरों को लेने गया। जब मुझे अहसास हुआ कि यह प्रयास भी अपर्याप्त है तब मैं एसएसबी (सशस्त्र सीमा बल) गया। एसएसबी डीआईजी से मिला और सिलेंडरों की कमी से विकट हुए हालात के बारे में अवगत कराया। एसएसबी के लोग तुरंत मदद को तैयार हो गए। उन्होंने जल्द ही सैनिकों के एक समूह और एक बड़े ट्रक की व्यवस्था की ताकि बीआरडी मेडिकल कालेज में खाली पड़े सिलेंडरों को गैस एजेंसी तक जल्द से जल्द लाया जा सके और फिर उन्हें भरवाकर वापस मेडिकल काॅलेज पहुंचाया जा सके। उन्होंने 48 घंटों तक यह काम किया। पत्र में उन्होंने एसएसबी के जज्बे और मदद को सलाम करते हुए आभार जताया है।
सबको ढ़ांढ़स बंधाता रहा लेकिन आंसू न रोक सका

डाॅ.कफिल ने आगे लिखा है कि मैंने अपने साथी जूनियर और सीनियर डाक्टरों से बात की। हिम्मत से एक टीम की तरह काम करने का हम सबने निर्णय लिया। सबसे कहा कि परेशान बेबस माता-पिताओं पर गुस्सा न करें। कहा कि कोई छुट्टी न लें। मैंने उन बेहाल माता-पिताओं को ढांढस बंधाया जो अपने बच्चों को खो चुके थे। कई मां-बाप गुस्से में भी थे उनके गुस्से को सहते हुए समझाया। वहां स्थिति बेहत तनावपूर्ण थी। स्थितियां लगातार बिगड़ रही थीं। मरते बच्चों को देख हम अपने आंसू रोक नहीं पा रहे थे लेकिन हम सबको तो बच्चों की जिंदगियों को किसी तरह बचाना था। मेरी टीम के कई लोग उस स्थिति में यह देखकर रो दिए कि किस तरह से प्रशासन की लापरवाही से गैस सप्लायर्स को पैसे न मिलने के कारण यह हालात पैदा हो गए हैं जिससे ढेर सारी मासूम जिंदगियां दांव पर लगी हुई हैं। हम लोगों ने अपनी इन कोशिशों को तब तक जारी रखा जब तक 13 अगस्त 2017 की सुबह लिक्विड ऑक्सीजन टैंक अस्पताल में पहुंच नहीं गया।
मैं हीरो से जीरो तब बना जब सीएम ने हस्तक्षेप किया
पत्र में डाॅ.कफिल ने लिखा है कि मेरी जिन्दगी में उथल-पुथल उस वक्त शुरू हुई जब 13 अगस्त की सुबह मुख्यमंत्री योगी महाराज अस्पताल पहुंचे। बकौल कफिल, उन्होंने कहा तुम हो डॉक्टर कफील जिसने सिलेंडरों की व्यवस्था की। मैंने कहा, हां सर। फिर वह नाराज हो गए और कहने लगे कि तुम्हें लगता है कि सिलेंडरों की व्यवस्था कर देने से तुम हीरो बन गए। फिर बोले कि मैं देखता हूं इसे।
डाॅ.कफिल ने पत्र में लिखा है कि योगी जी नाराज थे क्योंकि यह खबर किसी तरह मीडिया तक पहुंच गयी थी। लेकिन मैं अपने अल्लाह की कसम खाकर कहता हूं कि मैंने उस रात तक इस सम्बन्ध में किसी मीडिया कर्मी से कोई बात नहीं की थी। उन्होंने पत्र के माध्यम से बताया है कि इसके बाद पुलिस ने हमारे घरों पर आना शुरू कर दिया। धमकी देना, मेरे परिवार को डराना शुरू हो गया। हमें यह चेतावनी भी दी गई कि मुझे एनकाउंटर में मार दिया जायेगा। मेरा परिवार, मेरी मां, मेरी बीबी-बच्चे सब किस कदर डरे हुए थे इसे बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। फिर मैंने सरेंडर कर दिया। मुझे यह विश्वास था कि मुझे न्याय जरूर मिलेगा।
न्याय प्रक्रिया भी दबाव में काम कर रही

डाॅ.कफिल आगे लिखते हैं…पर कई दिन, हफ्ते और महीने बीत चुके हैं। अगस्त 2017 से अप्रैल 2018 आ गया। दिवाली आई, दशहरा आया, क्रिसमस भी बीत गया। नए साल का जश्न हुआ। होली आई। हर तारीख पर मुझे लगता था कि शायद मुझे जमानत मिल जाए। पर तब मुझे अहसास हुआ कि न्याय प्रक्रिया भी दबाव में काम कर रही है।
यातना से भरा है जेल का जीवन

जेल में काफी यातना से गुजरना पड़ रहा। एक बैरक में डेढ़ सौ से अधिक कैदी हैं। फर्श पर सोना पड़ता है। मच्छर और मक्ख्यिां भिनभिनाते रहते। किसी तरह इस स्थिति में हलक से खाना उतारना पड़ता है। नहाने, शौचालय तक की व्यवस्था बेहद खराब। बस रविवार, मंगलवा, बृहस्पतिवार का इंतजार रहता जब परिवार के लोग मिलने आते हैं। जिन्दगी नर्क बन गयी है। मेरे लिए ही नहीं बल्कि मेरे पूरे परिवार की। सबको न्याय की तलाश में इधर-उधर भटकना पड़ रहा।
छुट्टी पर होने के बावजूद आकर फर्ज निभाना गुनाह नहीं

डाॅ.कफिल लिखते हैं कि मैं 10 अगस्त 2017 को छुट्टी पर था। मेरे विभागाध्यक्ष ने इसकी अनुमति दी थी। छुट्टी पर होने के बावजूद मैं अस्पताल में अपना कर्तव्य निभाने पहुंचा। क्या ये मेरा गुनाह है?
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