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जिस बेटे की चाह में समाज बेटियों को कोख में ही मार डाल रहा, वही बेटियां मां-बाप के बुढ़ापे की लाठी बन नजीर पेश कर रही हैं। जब बेटों ने मां को उसकी हाल पर छोड़ा तो दो बेटियों ने जिम्मेदारी उठाई। मां की मौत के बाद अंतिम संस्कार करने बेटे नहीं पहुंचे तो बेटी ने ही सारी रस्म निभाई।
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समाज को आइना दिखाने वाली यह कहानी गोरखपुर के पीपीगंज की है। तिघरा गांव के रहने वाले रामवृक्ष व उनकी पत्नी सरस्वती ने बड़े ही अरमान के साथ तीन बेटों व दो बेटियों को पाल पोषकर बड़ा किया। पूरे अरमान के साथ उनका शादी-विवाह किया। बेटियां अपने घर चली गई और बेटे भी अपनी गृहस्थी में रम गए। उम्र ढलने के साथ रामवृक्ष व सरस्वती का शरीर भी धीरे धीरे जवाब देने लगा। दोनों अपनी ही देखभाल में अक्षम होने लगे। रामवृक्ष की पत्नी सरस्वती बीमार रहने लगी, धीरे धीरे उसकी आंखों की रोशनी कम होती गई। एक वक्त ऐसा आया कि मां सरस्वती को दिखना बंद हो गया। जब इलाज की बात आई तो बेटों ने हाथ खड़े कर दिए। जिस अरमान के साथ तीन तीन बेटों को लालन पालन किया था वह मां-बाप की बुढ़ापे की लाठी नहीं बन सके।
उधर, माता-पिता की हालत के बारे में जब बेटियों को जानकारी हुई तो दोनों ने मदद करने की ठानी। दोनों बेटियां शांति व कुसुम जितना बन पड़ता वह करती। गांववालों की मानें तो शांति की आर्थिक स्थिति अधिक बेहतर होने की वजह से वह रुपये-पैसे से भी मां-पिता की मदद करतीं। चूंकि, दूसरी बेटी कुसुम के पति का पहले ही देहांत हो चुका था, इसलिए वह मां-बाप की सेवा में अधिक समय देने लगी। करीब दो साल पहले रामवृक्ष की मौत के बाद कुसुम अपनी मां सरस्वती की देखभाल के लिए यहीं रहने लगी।
बीते रविवार को बुजुर्ग सरस्वती की मौत हो गई। बेटी ने मां के दिवंगत होने की सूचना अपने भाइयों को भेजी। लेकिन कोई भाई मां का अंतिम दर्शन करने तक नहीं पहुंचा। बताया जा रहा है कि बेटियों ने ही मां के अंतिम संस्कार का इंतजाम किया। छोटी बेटी ने मां को मुखाग्नि दी।
Published on:
25 Dec 2019 08:21 pm
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