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बचपन की दोस्ती ने बदल दिया मित्र का जीवन, अब अपने पैरों पर चलेगा सर्जन

वक्त पडऩे पर उसकी आर्थिक मदद करने के लिए तुरंत आगे आया, जिससे बचपन का दोस्त अपने पैरों पर चलने लायक हो गया।

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गुना. एक ही गांव में खेलकूद कर बढ़े हुए दोस्तों में से एक दोस्त भले ही विकास की सीढिय़ां अधिक चढ़ गया, लेकिन उसने अपने दोस्त को नहीं भूला, वक्त पडऩे पर उसकी आर्थिक मदद करने के लिए तुरंत आगे आया, जिससे बचपन का दोस्त अपने पैरों पर चलने लायक हो गया। यह मामला गुना जिले का है, जहां एक दोस्त के कूल्हे की हड्डी गल जाने से वह बिस्तर से हिल भी नहीं पा रहा था, लेकिन दोस्त की मदद और आयुष्मान कार्ड का लाभ मिलने से उसे नया जीवन मिल गया है।


आयुष्मान योजना जरूरतमंद व्यक्ति के लिए कितने काम की योजना है, इसके एक नहीं बल्कि कई उदाहरण समय-समय पर सामने आ चुके हैं। ताजा मामला कुंभराज निवासी सर्जन बेरवा का सामने आया है। जिसकी कूल्हे की हड्डी गल चुकी थी। कोरोना के प्रकोप के चलते वह किसी सरकारी अस्पताल में भी नहीं जा पा रहा था। किसी बड़े अस्पताल में इलाज कराने की परिवार की आर्थिक स्थिति नहीं थी। ऐसे में उसके पास घर पर ही पड़े रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

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ऐसी संकट की घड़ी में गांव के ही रहने वाले एक व्यक्ति ने रेंजर मुंगावली लक्ष्मण सिंह मीना को फोन कर जानकारी देते हुए बताया कि उनके बचपन के मित्र को सहयोग की जरूरत है। जो बचपन में साथ में क्रिकेट मैच के दौरान फील्डिंग में लगा रहता था। दोस्त ने बताया कि वह पिछले लगभग दो वर्ष से अपने कूल्हे की हड्डी गल जाने की वजह से अपने घर पर ही सड़ रहा था। वह कोरोना की वजह से अस्पताल भी नहीं जा पाया था। इसी दौरान उसे जानकारी लगी है कि उसका इलाज आयुष्मान योजना के तहत ही संभव है। जिसके लिए वह 200 रुपए लेकर अपने गांव झारेडा से बाइक पर लिफ्ट लेकर कुंभराज आया। यहां से वह जिला अस्पताल गुना गया। जहां कोई धाकड़ डॉक्टर मिले, उन्होंने आयुष्यमान कार्ड बनवा दिया। उन्होंने आश्वासन दिया कि उसका किसी भी अस्पताल में ऑपरेशन हो जाएगा और वह अपने पैरों पर आराम से चलने लग जाएगा। लेकिन उसे फिर भी कुछ पैसे की व्यवस्था करना पड़ेगा। जिससे कि वह एक यूनिट बॉटल खून खरीद सके।

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जिसके लिए आप थोड़े से पेसे पहुंचा दो। रेंजर मीना ने उससे फोन नंबर मांगकर तुरंत अपने बचपन के मित्र से फोन कर संपर्क किया और एक अन्य मित्र के हाथों उसको गुना में ही नगद सात हजार रुपए दिलाए। शुरू में तो उसके गरीब पिता ने सात हजार रुपए लेने से मना किया कि उन्हें सात हजार रुपए की जरूरत नहीं है। केवल तीन हजार रुपए दे दीजिए। उसमें एक बॉटल खून आ जाएगा। रेंजर मीना ने उसे समझाया कि कई चीजों में पैसे की जरूरत पड़ती है, इसलिए वह यह पैसा रख लें। पैसा वापसी की चिंता न करें। वह रुपए लेकर उन्होंने एक बोतल खून खरीदा एवं अपने इलाज चिकित्सा के लिए गुना में स्थित मीनाक्षी हॉस्पिटल पहुंचे। जहां पर उनका ऑपरेशन हुआ और किसी अन्य प्रकार का कोई खर्चा नहीं हुआ। रेंजर का वह मित्र आज अपने पैरों पर चल पा रहा है। जो कि पहले घसिटकर चलता था। वह अब अपने पैरों पर खड़ा है। रेंजर मीणा ने बताया कि अपनी प्रगति होने पर हम लोगों को अपने बचपन के साथियों को नहीं भूलना चाहिए। मित्रता में ऊंच-नीच, गरीबी-अमीरी को महत्व नहीं देना चाहिए।