ऐसे शुरू हुई सिखों की दिवाली
मुगल बादशाह जहांगीर ने सिखों के छठे गुरु,गुरु हरगोविंद साहिब को ग्वालियर के किले में कैद किया था,जहां पहले से ही 52 हिन्दू राजा कैद में रखे गए थे। जब गुरु जी किले में आए तो सभी राजाओं ने उनका सम्मान किया। गुरु हरगोविंद साहिब की ये इस प्रसिद्धि से जहांगीर को झटका लगा और साईं मियां मीर की बात मानते हुए जहांगीर ने उन्हें छोडऩे का फैसला सुनाया, लेकिन गुरु हरगोविंद साहिब ने अकेले रिहा होने से मना कर दिया और 52 राजाओं की रिहाई की बात कही। इतना ही नहीं अंत में जहांगीर को गुरुजी की बात मानना पड़ी और कार्तिक की अमावस्या यानि की दीपावली को उन्हें 52 राजाओं सहित रिहा किया गया।
सिख इस कार्तिक की अमावस्या को दाता बंदी छोड दिवस के रूप में मनाते हैं। वहीं जैन समाज द्वारा दीपावली,महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। महावीर स्वामी को भी इसी दिन (कार्तिक अमावस्या) को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अत अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णत: भिन्न है।
हिन्दू श्रीराम की वापिसी पर मनाते है त्योहार
दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या भी दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व यानि की दीपावली के रूप में मनाया जाता है।