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पति के जिंदा रहते ‘पत्नी का प्रॉपर्टी’ में हक नहीं, लेकिन नहीं कर सकते ‘बेदखल’

MP News: अदालत ने कहा कि बहुएं पति के जीवनकाल में ससुराल की संपत्ति में सहभाजक (भागीदार) नहीं मानी जातीं, लेकिन उन्हें वैवाहिक घर में रहने का कानूनी और मौलिक अधिकार प्राप्त है।

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फोटो सोर्स: पत्रिका

फोटो सोर्स: पत्रिका

MP News: हाईकोर्ट की एकल पीठ ने एक अहम आदेश देते हुए स्पष्ट किया है कि बहुओं को उनके वैवाहिक घर से बेदखल नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि बहुएं पति के जीवनकाल में ससुराल की संपत्ति में सहभाजक (भागीदार) नहीं मानी जातीं, लेकिन उन्हें वैवाहिक घर में रहने का कानूनी और मौलिक अधिकार प्राप्त है।

जस्टिस जीएस अहलुवालिया ने सुनवाई के दौरान कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत पुत्र और पुत्री ही सहभाजक होते हैं, बहुएं नहीं, लेकिन, बहुओं का अपने पति के जीवनकाल में वैवाहिक घर में रहने का अधिकार सुरक्षित है।

क्या है मामला…

प्रीति शर्मा व पूजा शर्मा ने अपने ससुराल पक्ष के खिलाफ वाद दायर कर दावा किया कि उन्हें उनके वैवाहिक घर से जबरन निकाले जाने की कोशिश की जा रही है। दोनों बहनों ने आरोप लगाया कि सास-ससुर और पति के दबाव में उन्हें घर से निकालने की योजनाएं बनाई जा रही हैं। उन्होंने अदालत से स्थायी निषेधाज्ञा की मांग करते हुए कहा कि वे अपने वैवाहिक घर में रही हैं और उन्हें वहां से हटाना अवैधानिक होगा।

सास सुमन शर्मा ने इसके खिलाफ अर्जी लगाई थी। तर्क था कि बहुएं सहभाजक नहीं हैं, इसलिए उन्हें संपत्ति में कोई अधिकार नहीं है। अर्जी को निचली अदालत ने खारिज कर दिया। इसे चुनौती देते हुए सास ने हाईकोर्ट में सिविल पुनरीक्षण दायर किया। सास सुमन की याचिका का विरोध करते हुए अधिवक्ता आरके सोनी ने तर्क दिया कि मकान को बेचना चाहते हैं। इसलिए संपत्ति से बेदखल किया जा रहा है।

बहुओं के अधिकारों की रक्षा आवश्यक

हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि बहुओं के अधिकारों की रक्षा आवश्यक है, उन्हें वैवाहिक घर में शांति से रहने दिया जाना चाहिए। अदालत ने दोहराया कि बिना विधिक प्रक्रिया अपनाए किसी महिला को उसके वैवाहिक घर से बाहर नहीं किया जा सकता।