
Mobile Addiction in Children
Mobile Addiction in Children: मोबाइल में हर वक्त नजरें गढ़ाने वाले अब बीमारों की गिनती में आ चुके हैं। मेडिकल साइंस में इन्हें मोबाइल एडिक्ट माना जा रहा है। जिन लोगों में मोबाइल का चस्का ज्यादा है चिकित्सकों की नजर में उनमें लत गंभीर मानी जाती है। ऐसे मरीजों को भर्ती करने तक की नौबत रहती है। मोबाइल एडिक्ट (लत) वैसे तो हर उम्र के लोग हो रहे हैं, बच्चों में इसका ज्यादा असर सामने आना चिंता की बात है।
जिन बच्चों के हाथ में मोबाइल ज्यादा वक्त रहता है उनके बर्ताव और खानपान में दूसरे बच्चों की तुलना में अंतर मिल रहा है। इसका दूसरा पहलू पुलिस की नजर में लोगों को अपराधी तक बना रहा है।
मनोचिकित्सक डा. कमलेश उदेनिया कहते हैं मोबाइल पर ज्यादा वक्त बिताना शारीरिक और मानसिक तौर पर बीमार कर रहा है। मोबाइल के इस्तेमाल की भी शराब, गांजे और स्मैक की तरह लत लग रही है। हर वक्त मोबाइल पर चिपके रहने वालों को मोबाइल एडिक्ट कहा जाता है। ऐसे रोगियों को मानसिक तौर पर बीमार मानकर उसका इलाज होता है। मरीज को भर्ती तक करना पड़ता है। मोबाइल एडिक्शन में हर उम्र के रोगी शामिल हैं। चिंता की बात है कि इनमें बच्चों की गिनती ज्यादा हो रही है। आए दिन माता पिता ऐसे बच्चों को इलाज के लिए लाते हैं।
जटार साहब की गली (लक्ष्मीगंज) निवासी शिवकुमार शर्मा का कहना है कुछ साल पहले तक बच्चे स्कूल से घर लौटकर मोबाइल में टाइम बिताते थे, लेकिन अब तो स्कूल और कोचिंग में भी मोबाइल से पढाई का चलन शुरू हो गया। छुट्टी के दिनों में टीचर भी ऑनलाइन क्लासेस ले रहे हैं। बच्चों में एक दूसरे के साथ स्क्रीन शेयर कर पढाई की होड़ मची है। ऐसे में बच्चों के हाथ से कैसे मोबाइल छीने। मोबाइल इस्तेमाल का टाइम कैसे तय करें।
साइबर सेल डीएसपी संजीव नयन शर्मा कहते हैं मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले अनजाने में कई बार गलत ऐप और खेलों से जुड़ जाते हैं। सोशल मीडिया पर जाने अनजाने ऐसी हरकतें कर देते हैं, जो उन्हें अपराधी तक बना रही हैं। इन पर लगाम कसने के लिए सामाजिक स्तर पर कसावट की जरूरत है। अभिभावकों को समय समय पर बच्चों के मोबाइल को चैक करना चाहिए।
मनोचिकित्सकों की नजर में मोबाइल पर ज्यादा वक्त बिताने वालों में चिड़चिड़ापन, गुस्सा ज्यादा रहता है। मोबाइल के शौकीन एक जगह ही बैठकर वक्त काटते हैं। ऐसे बच्चे और युवाओं आऊट डोर (बाहरी गतिविधियां) खत्म हो जाती हैं। इनमें शारीरिक तौर पर अंदरूनी बीमारियां और अकादमिक क्षमता खत्म होती है।
मनोचिकित्सक कहते हैं, बच्चों को मोबाइल में चस्का लगाने के लिए माता पिता भी काफी हद तक जिमेदार हैं बच्चे जब छोटे होते हैं तो माता पिता उन्हें खुश करने के लिए खुद मोबाइल थमाते हैं।
Published on:
28 Mar 2025 10:31 am
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