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30 साल बाद ‘सरकारी नौकरी’ की उम्मीद नहीं, हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका

MP News: राज्य सरकार ने 27 जून, 1995 को निजी स्कूल का अधिग्रहण कर लिया और 131 पदों पर कर्मचारियों के अवशोषण का आदेश दिया।

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(फोटो सोर्स: AI Image)

(फोटो सोर्स: AI Image)

MP News:मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने एक अध्यापक की सरकारी सेवा में अवशोषण (अब्जॉर्प्शन) की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति आशीष श्रोती ने फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका दायर करने में अत्यधिक देरी की है और वह एक 'दर्शक' (फेंस सिटर) की तरह व्यवहार करते हुए केवल तभी अदालत आया जब उसके जैसे अन्य लोगों को राहत मिल गई।

ये है पूरा मामला

याचिकाकर्ता ब्रजराज सिंह चौहान श्री हजारेश्वर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, श्योपुर कला में उप-प्राचार्य के पद पर कार्यरत थे। राज्य सरकार ने 27 जून, 1995 को इस निजी स्कूल का अधिग्रहण कर लिया और 131 पदों पर कर्मचारियों के अवशोषण का आदेश दिया।

चूंकि सरकार द्वारा स्वीकृत स्टाफिंग पैटर्न में उप-प्राचार्य का कोई पद नहीं था, इसलिए याचिकाकर्ता का अवशोषण नहीं हो सका। इसके बाद लंबी कानूनी लड़ाई हुई, जिसमें एक चरण पर स्क्रीनिंग कमेटी ने 24 जून, 2013 को याचिकाकर्ता को लेक्चरर (गणित) के पद के लिए योग्य पाया था। हालांकि, अंततः 08 जून, 2015 को राज्य सरकार ने पदों की अनुपलब्धता और आवश्यक योग्यता न होने का हवाला देते हुए उनके अवशोषण से इनकार कर दिया।

अदालत के मुख्य तर्क

-देरी (डिले एंड लैचेज): अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता को 2015 में ही अपने दावे के खारिज होने की जानकारी थी, लेकिन उन्होंने उस आदेश को चुनौती देने में लगभग 7 साल की देरी की। वह 2022 में तब याचिका लेकर आए जब 2021 में उनके जैसे कुछ अन्य लोगों को अदालत से राहत मिली। अदालत ने कहा कि ऐसे 'दर्शक' जो दूसरों के लड़ने का इंतजार करते हैं और सफलता मिलने पर अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं, उन्हें राहत देने से बचना चाहिए।

-पदों की उपलब्धता: अदालत ने कहा कि मूल रूप से स्वीकृत 131 पद पहले ही भरे जा चुके हैं और याचिकाकर्ता जिले के दूसरे स्कूलों में रिक्त पदों पर अवशोषण का दावा नहीं कर सकते।

-इक्विटी का अधिकार क्षेत्र (डिस्क्रीशनरी रिलीफ): अदालत ने कहा कि भले ही कानूनी तौर पर याचिकाकर्ता का पक्ष मजबूत हो, लेकिन अनुच्छेद 226 के तहत यह एक इक्विटेबल (न्यायसंगत) अधिकार क्षेत्र है। 1995 के बाद से लगभग 30 वर्षों तक सेवा में न रहने और इतनी लंबी अवधि के बाद अवशोषण का आदेश देने से बचना चाहिए।