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बाढ़ के बाद हाइवे पर तंबू गाड़कर रहने को मजबूर ग्रामीण, सर्वे टीम बोली- ‘कितने जानवर मरे, दिखाने होंगे शव’

हाईवे पर तंबू गाढ़कर रह रहे बाढ़ पीड़ित कोई पूछने वाला नहीं।

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बाढ़ के बाद हाइवे पर तंबू गाड़कर रहने को मजबूर ग्रामीण, सर्वे टीम बोली- 'कितने जानवर मरे, दिखाने होंगे शव'

ग्वालियर/ मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के डबरा-भितरवार के लोगों को हालही में आई बाढ़ ऐसा जख्म दे गई कि, इससे उबरने में पता नहीं कितना समय लगेगा। उनपर आए हालात का कारण सिर्फ बाढ़ ही होती, तो शायद ये भोले-भाले लोग इसे कुदरत की करनी मानकर भूलने का प्रयास भी करते। लेकिन, बाढ़ में पूरे के पूरे तबाह हुए ये लोग न सिर्फ कुदरत के मार झेलकर चुके हैं, बल्कि जिम्मेदार भी अब इन भूखे बेसहारा लोगों पर सितम करने में कमी नहीं कर रहा। जी हां, हम बात कर रहे हैं, डबरा के चांदपुर गांव की, जिसे एक तरफ तो हालही मं आई बाढ़ ने तहस-नहस कर दिया। एक तरफ तो प्रशासन की ओर से इनके रहने के लिये शरणार्थी केप की व्यवस्था की गई है, लेकिन हकीकत में एक बड़ी आबादी सर पर छत का साया न होने पर नेशनल हाईवे नं. 44 पर साड़ी और पन्नी का तंबू गाढ़कर अपना जीवन गुजार रहे हैं।


इसी बीच हम इस बात को भी याद रखें कि, प्रभावित इलाकों में हालात अभी भी सामान्य नहीं हुए हैं और न ही बारिश का सीजन खत्म हुआ है। ऐसे में पन्नी और साड़ी से बने तंबू में वो आगे खुद को किस तरह सुरक्षित रख सकेंगे, इसका जवाब शायद कोई जिम्मेदार नहीं दे सकेगा। इन बाढ़ पीड़ितों पर सिर्फ इतना ही समस्याओं का पहाड़ टूटा होता, तो शायद जब भी इनपर दुखों की इंतहा ही मानी जाती, लेकिन कमाल तो ये है कि, अब तक किसी भी जिम्मेदार की ओर से इन पीड़ितों को राहत सामग्री तक उपलब्ध नहीं कराई गई।

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बता दें कि, 1-2 अगस्त की दरमियानी रात भारी बारिश के कारण डबरा के चांदपुर गांव में सिंध, पार्वती और नोन नदी उफान पर आ गई थी। पूरा गांव टापू में तब्दील हो गया था। यहां बने करीब 580 मकान पूरी तरह पानी में डूब गए थे, इसमें से 260 कच्चे और पक्के मकान तो बाढ़ के प्रभाव में आकर ढह गए। इसी के बाद से इस गांव के कई परिवार नेशनल हाईवे नंबर- 44 पर जीवन गुजारने को मजबूर हैं। यहां कई परिवारों के साथ छोटे-छोटे मासूम बच्चे भी हैं। इन बच्चों के साथ साथ खुद की जान को लेकर भी यहां ग्रामीणों को गुजरने वाली तेज रफ्तार गाड़ियों का खतरा बना रहता है।


हाईवे पर तंबू गाड़ कर रह रहे चांदपुर गांव के ग्रामीणों के हालात अपने आप में शासन के वादों और तत्काल राहत पहुंचाने के दावों की पोल भी खोल रहे हैं। मीडिया द्वारा जब उनसे राहत सामग्री के बारे में सवाल किया गया, तो गांव के लोगों ने बड़ी मायूसी के साथ जवाब दिया कि, अब तक सिर्फ एक बार कोई 10 किलो आटा देकर गया है, लेकिन हमें इस बारे में नहीं पता कि, वो प्रशासन की ओर से दिया गया या कोई समाज सेवी। फिलहाल, बाढ़ प्रभावित अधिकतर इलाकों में देश-प्रदेश के समाजसेवी बाढ़ पीड़ितों की मदद कर रहे हैं। तो वहीं, प्रशासन अब तक उनके पास सर्वे के लिए भी नहीं पहुंचा है। गांव के लोगों का कहना है कि, अब तक प्रभावित लोगों का सर्वे ही नहीं किया गया, तो राहत क्या पता कब तक मिलेगी।

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इलाके में बाढ़ के कारण मची तबाही को 15 दिन हो रहे हैं। इसके बाद भी अब तक उन घोषणाओं को भी अमली जामा नहीं पहनाया गया, जो खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान करके गए थे, अबतक उनमें से एक घोषणा अब तक धरातल पर नहीं आई। प्रशासन सर्वे नहीं करा सका है। कुछ ग्रामीण तो ये भी कह रहे हैं कि, पिछले दिनों एक सर्वे टीम आई थी, लेकिन वो उन पशुओं के शव मांग रही थी, जो बाढ़ के पानी में बह गए। ग्रामीणों ने कहा कि, अब हम इतने दिन बाद उन शवों को ढूंढकर कहां से लाएं, कोई हमें ये तो बताए। इस मुद्दे को चांदपुर गांव के दौरे पर आए पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने भी उठाया था। उन्होंने कहा था कि, सर्वे करने वाले मरे हुए जानवरों के शव मांग रहे हैं। बाढ़ पीड़ितों के साथ इससे बड़ा मजाक और क्या होगा।

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