27 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

तानसेन की नगरी में मिला था ‘तानसेन अलंकरण’, बताया था जीवन का यादगार पल

2004 में तानसेन अलंकरण से सम्मानित हुए थे प्रख्यात संतूर वादक पं.शिव कुमार शर्मा...>

2 min read
Google source verification
shiv.png

ग्वालियर। प्रख्यात संतूर वादक पं.शिव कुमार शर्मा को तानसेन की नगरी ग्वालियर से विशेष लगाव था। यूं तो उनका ग्वालियर आगमन कई बार हुआ लेकिन 2004 में तानसेन अलंकरण से सम्मानित किए जाने पर वे काफी खुश थे। इसके बाद 2009 में आइटीएम यूनिवर्सिटी में हुए आइटीएम संगीत सम्मेलन में भी प्रस्तुति देने ग्वालियर आना हुआ। ऐतिहासिक नगरी ग्वालियर से जुड़े उनके संस्मरण शहर के प्रबुद्धजनों ने पत्रिका प्लस से साझा किए।

ओपन थियेटर में प्रस्तुति का अनुभव नया

आइटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के प्रो-चांसलर दौलत सिंह चौहान ने बताया कि 2009 में आइटीएम संगीत सम्मेलन में प्रस्तुति देने आए पं.शिव कुमार शर्मा की दो प्रस्तुतियां थीं। दूसरी प्रस्तुति से पहले लोग बैठे हुए थे और मैं उन्हें ग्रीन रूम तक लेकर पहुंचा। तब उन्होंने कहा कि मैंने कई जगहों पर प्रस्तुतियां दी हैं लेकिन ओपन एम्फीथियेटर में प्रस्तुति देने का आज मेरान अनुभव नया ही होगा। इसके साथ ही जब वे संतूर वादन की प्रस्तुति दे रहे थे तो उसमें नवाचार के लिए अपने हाथों की हथेलियों का भी उपयोग कर रहे थे। उसी समय साउंड के रिबब में डिर्स्टबेंस आ रहा था, तब मैंने खुद जाकर साउंड सिस्टम को ठीक किया था।

मेरे गुरु से काफी अच्छे संबंध थे

वरिष्ठ शास्त्रीय गायक पं.उमेश कंपूवाले ने बताया कि पं.शिव कुमार शर्मा काफी सरल इंसान थे। मेरा मानना है कि संतूर को वही आगे लेकर आए हैं। अभी तक यह सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री में ही बजता था, उसे स्टेज पर लेकर वही आए थे। पं.शर्मा संतूर के पूरक हो गए थे। मेरे गुरु पंडित राजन-साजन मिश्र से उनके काफी अच्छे संबंध थे। उन्होंने कई बार उनके साथ कार्यक्रम भी किए थे। वो जब भी ग्वालियर आते थे उनसे मुलाकात हुआ करती थी। शास्त्रीय संगीत के बारे में उनसे काफी कुछ सीखने को मिलता था।

वाह-वाह का शोर और ताली बजाना नहीं था पसंद

वरिष्ठ सितार वादक श्रीराम उमड़ेकर ने बताया कि वो कई बार यहां आए थे। संतूर को वही शास्त्रीय संगीत में लेकर आए थे। वैसे तो उनका स्वभाव काफी अच्छा था लेकिन कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुति के दौरान हमेशा गंभीरता से संतूर बजाते थे। एकाग्रता भंग ना हो इसके लिए वो दर्शकों को वाह-वाह और ताली बजाने से मना कर दिया करते थे। वो हमेशा शांति से सुनने के लिए बोलते थे। एक बार भोपाल के रविंद्र भवन में मेरी बहन की बेटी श्रुति अधिकारी जो उनकी शिष्या है, उसके कार्यक्रम में भी आए थे। कार्यक्रम के बाद उनसे घर पर भी मुलाकात की थी।

शासकीय माधव संगीत महाविद्यालय की प्रभारी प्राचार्य डॉ.वीणा जोशी ने बताया कि वो हमारे महाविद्यालय में प्रस्तुति देने आए थे। इस दौरान पारिवारिक माहौल में यहां पूरे स्टाफ के साथ मिले थे। पं.शर्मा जिंदादिल कलाकार तो थे ही वे खुले मन से आध्यात्म से भी जुड़े थे।