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विद्युत शवदाह गृह की ट्रॉली टूटने से रेक के बीच में फंसा शव, बांस से धकाकर भट्टी में फैंका

क्रियाक्रम में शामिल हुए परिवार के दो सदस्यों ने जब अपने भाई के शव के साथ हुई दुर्गति को देखा, तो रोते बिलखते हुए कहा कि, उनके भाई के साथ जो हुआ, ऐसा बर्ताव तो कोई जानवर के साथ भी नहीं कर सकता।'

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विद्युत शवदाह गृह की ट्रॉली टूटने से रेक के बीच में फंसा शव, बांस से धकाकर भट्टी में फैंका

ग्वालियर/ मध्य प्रदेश में जहां एक तरफ कोरोना वायरस ( coronavirus ) की चपेट में आकर मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है, वहीं प्रदेश के ग्वालियर ( Gwalior News ) में संक्रमण का शिकार होकर जान गंवाने वाले युवक के शव के साथ प्रशासनिक सिस्टम द्वारा की गई अमानवियता ने इंसानियत को तार तार करके रख दिया। कोरोना पीड़ित के शव के साथ ऐसा बर्ताव किया गया, जिसे बयान कर पाना भी काफी तकलीफ देह है। कोरोना पॉजिटिव ( Corona Positive ) मृतक के क्रियाक्रम में शामिल हुए परिवार के दो सदस्यों ने जब अपने भाई के शव के साथ हुई दुर्गति को देखा, तो रोते बिलखते हुए कहा कि, उनके भाई के साथ जो हुआ, ऐसा बर्ताव तो कोई जानवर के साथ भी नहीं कर सकता।'

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भाइयों ने रोते रोते सुनाई पूरी दास्तां

दरअसल, शहर के सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में 14 जून को भर्ती हुए 42 वर्षीय राजकुमार नामक युवक ने बुधवार की सुबह दम तोड़ दिया। गाइडलाइन के तहत अंतिम संस्कार विद्युत शवदाह गृह में किया जाना था। अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए मृतक के भाई रजनीश और राहुल को क्रियाक्रम में शामिल होने की अनुमति दी गई। परिजन के पास सुबह आठ बजे अस्पताल से फोन आया कि, आपके मरीज की संक्रमण से मौत हो गई है। ऐसी परिस्थिति में सिर्फ परिवार के दो सदस्यों को मुक्तिधाम पहुंचने की अनुमति होगी। नियमों को मानते हुए परिवार ने दिल पर पत्थर रखते हुए मृतक के दोनो भाइयों को मुक्तिधाम भेज दिया। लेकिन, मुक्तिधाम में मृतक के शव के साथ हुए सुलूक ने दोनो भाइयों को झकझोर कर रख दिया है।

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दो घटनाओं ने परिजन को झकझोर दिया

मृतक के भाई राहुल का कहना है कि, तय समय से काफी देर बाद जैसे तैसे अस्पताल प्रबंधन की ओर से शव को मुक्तिधाम पहुंचाया गया। यहां आकर पता चला कि, शव को विद्युत शवदाह गृह तक ले जाने के लिए एंबुलेंस वाले स्ट्रेचर ही नहीं लाए हैं, जिसके चलते एंबुलेंस या विद्युत शवदाह गृह का कोई भी कर्मचारी शव को एंबुलेंस से निकालने को ही तैयार नहीं था। इसके बाद शव को ट्रॉली में रखकर भट्टी में डालना था, जब ट्रॉली का पटला टूट जाने के कारण शव ट्रॉली की रेक में फंस गया, जहां के मुक्तिधाम कर्मचारियों द्वारा शव को बुरी तरह बांसों से धकाकर भट्टी में फैंका गया।


स्ट्रेचर नहीं लाए, शव उठाने को भी नहीं हुए राजी

राहुल के मुताबिक, अस्पताल से शव एम्बूलेंस में रख दिया। उनके साथ तीन कर्मचारी भी मुक्तिधाम आए, लेकिन मुक्तिधाम पहुंचकर यह लोग शव उठाकर शवदाह गृह में रखने को राजी नहीं थे। वजह थी, अस्पताल से एंबुलेंस स्ट्रेचर लेकर ही नहीं चला था। करीब आधे घंटे तक शव एम्बूलेंस में ही रखा रहा, लेकिन उसे उठाकर मुक्तिधाम तक ले जाने को एंबुलेंस का कोई भी कर्मचारी राजी नहीं था। काफी मिन्नत की, नगर निगम के अधिकारी भी मौके पर आ गए, लेकिन वो भी कर्मचारियों को एंबुलेंस से शव निकलवाने को राजी नहीं कर पाए। इसके बाद दोनों भाईयों ने ही एम्बुलेंस से शव को निकाला, उनके साथ दो कर्मचारी भी साथ हो लिये।

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टोका तो अभद्रता पर हो गए उतारु

राहुल ने बताया कि, स्ट्रेचर नहीं था, जिसके चलते दोनों भाइयों ने शव को उठाया। इस दौरान दौरान एम्बुलेंस के कर्मचारियों से शव को ठीक से थामने का अनुरोध किया तो, वो गुस्से में आकर अभद्रता पर उतारू हो गए। किसी को भी हमारी पीड़ा पर तरस नहीं आया।


बांसों से धकाकर शव को भट्टी में डाला

इसके बाद जैसे तेसे हम शव को लेकर विद्युत शवदाह गृह की ट्रॉली पर पहुंचे तो, वो पहले से ही बेहद खस्ता हाल थी। प्लाईवुड पर पतले फट्टे लगे थे, जबकि उसपर कोई मजबूत लकड़ी के तख्ते होने चाहिए थे। जैसे ही शव को उस ट्रॉली पर रखकर आगे बढ़ाया, तो वो टूट गई। इसमें भी निगम कर्मियों को बार बार आगाह करने के बावजूद उन्होंने लापरवाही बरतने में ही बेहतरी समझी। नतीजा ये हुआ कि, जैसे ही रेक टूटी तो शव रेक में बुरी तरह फंस गया। हालांकि, उस समय इलेक्ट्रिक मशीन चालू नहीं थी, जिसके चलते शव को आसानी से उठाकर निकाला जा सकता था और ट्रॉली के रेक को ठीक करके दौबारा शव उसपर रखकर क्रियाक्रम किया जा सकता था, लेकिन कर्मचारियों ने हमारे लाख कहने के बावजूद भी शव को बुरी तरह बांस से धकेलकर भट्टी में डाल दिया।

'मानवीय संवेदनाओं को किया गया तार-तार'

मृतक के भाई का कहना है कि, इस पूरी घटना ने मानवीय संवेदनाओं को तार-तार कर दिया। ये सब देखना हमारे लिए बेहद शर्मनाक था, लेकिन सिर्फ इसलिए कुछ नहीं बोल सके क्योंकि, जरा सी समझाइश देने पर कर्मचारी क्रियाक्रम करने से ही इंकार कर रहे थे। भाई का क्रियाक्रम हो जाए, इसलिए आंखों के सामने सब देखने के बावजूद सहन करना हमारी मजबूरी थी।

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'भाई के साथ जो सुलूक हुआ उसे कभी नहीं भुल सकते'

राहुल ने पत्रिका को बताया कि, हमारा परिवार तो भाई की मौत से पहले ही काफी दुखी था, लेकिन हमें नहीं पता था कि, जैसे जैसे हम किर्याक्रम के लिए आगे बढ़ेंगे, खासतौर पर हम दो भाइयों के ऊपर दुखों का और भी बड़ा पहाड़ टूटेगा। उन्होंने कहा कि, जो सुलूक भाई के शव के साथ हुआ है उसे हम कभी नहीं भुला सकते। उन्होंने कहा कि, ऐसा बर्ताव तो कोई जानवरों के साथ भी नहीं करता होगा, जो अस्पताल से लेकर विद्युत शवदाह गृह तक मौजूद जिम्मेदारों ने किसी इंसान के शव के साथ किया।