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Missing Case: 55 दिन बाद मिले लापता भाजपा नेता, बोले-पुलिस को सबक सिखाने के लिए खुद छिपा था

Missing BJP Leader Found After 55 Days: 55 दिनों तक रहस्यमय ढंग से लापता रहे भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष प्रीतम सिंह किसान आखिरकार लखनऊ में मिले। पुलिस ने उन्हें एक मकान से बरामद किया। पूछताछ में उन्होंने खुद के जानबूझकर गायब होने और पुलिस को सबक सिखाने का दावा किया, जिससे मामला और सनसनीखेज हो गया।

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Hamirpur Missing Case (फोटो सोर्स : WhatsApp News Group)

Hamirpur Missing Case (फोटो सोर्स : WhatsApp News Group)

Hamirpur Missing Case: उत्तर प्रदेश की राजनीति और पुलिस-प्रशासन को 55 दिनों तक उलझाए रखने वाला रहस्य आखिरकार सुलझ गया। भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष प्रीतम सिंह किसान, जो 18 अक्टूबर से लापता बताए जा रहे थे, शुक्रवार देर रात लखनऊ से बरामद कर लिए गए। चौंकाने वाली बात यह रही कि वह किसी अपहरण या अनहोनी का शिकार नहीं हुए थे, बल्कि एक मकान में छिपकर रह रहे थे। पुलिस पूछताछ में उन्होंने दावा किया कि वह “हमीरपुर पुलिस को सबक सिखाने” के लिए जानबूझकर गायब हुए थे। इस खुलासे के बाद पूरे प्रकरण ने नया मोड़ ले लिया है।

55 दिनों बाद सामने आया सच

हमीरपुर पुलिस अधीक्षक डॉ. दीक्षा शर्मा ने आधिकारिक तौर पर पुष्टि की कि पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष प्रीतम सिंह किसान को लखनऊ के दुबग्गा क्षेत्र से बरामद किया गया है। सूचना के आधार पर जब पुलिस टीम ने एक मकान में दबिश दी, तो वह बाथरूम में छिपे मिले। पुलिस को उन्हें बाहर निकालने के लिए बाथरूम का गेट तक तोड़ना पड़ा। इसके बाद उन्हें तत्काल राठ कोतवाली लाया गया और शनिवार सुबह कड़ी सुरक्षा के बीच हमीरपुर सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया।

कोर्ट ने 16 दिसंबर तक पुलिस सुपुर्दगी में भेजा

सीजेएम कोर्ट के न्यायाधीश विनय कुमार ने मामले की सुनवाई के बाद प्रीतम सिंह को 16 दिसंबर तक पुलिस की सुपुर्दगी में रखने का आदेश दिया है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है, जहां 16 दिसंबर को अगली सुनवाई होनी है। इसी वजह से पुलिस को निर्देश दिए गए हैं कि निर्धारित तिथि पर प्रीतम सिंह को हाईकोर्ट में पेश किया जाए।

वृद्धाश्रम में रखने का निर्णय

कोर्ट में बयान दर्ज होने के बाद पुलिस ने प्रीतम सिंह किसान को हमीरपुर मुख्यालय स्थित एक वृद्धाश्रम में रखने की व्यवस्था की है। पुलिस का कहना है कि यह निर्णय उनकी उम्र, स्वास्थ्य और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। एसआई शिव सहाय ने बताया कि अदालत के आदेशों के अनुपालन में आगे की कार्रवाई की जाएगी।

कैसे शुरू हुआ पूरा विवाद

पूरा मामला 18 अक्टूबर की रात से जुड़ा है। उस दिन राठ-हमीरपुर हाईवे पर स्थित प्रीतम सिंह किसान के निजी पेट्रोल पंप पर भुगतान को लेकर विवाद हुआ था। सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची और भाजपा नेता को पूछताछ के लिए थाने ले गई। अगले दिन 19 अक्टूबर की सुबह भाजपा पदाधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस ने उन्हें उनके बेटे के सुपुर्द कर दिया। इसके बाद वह अचानक लापता हो गए।

परिजनों के आरोप और पुलिस का पक्ष

प्रीतम सिंह के लापता होने के बाद परिजनों ने आरोप लगाया था कि पुलिस हिरासत में लिए जाने के बाद ही वह गायब हुए हैं। वहीं पुलिस का लगातार कहना था कि पूछताछ के बाद उन्हें सुरक्षित परिवार को सौंप दिया गया था। इस विरोधाभास ने मामले को और गंभीर बना दिया। स्थानीय राजनीति में हलचल मच गई और प्रशासन पर भी सवाल उठने लगे।

हाई कोर्ट तक पहुंचा मामला

27 अक्टूबर को प्रीतम सिंह किसान के परिजनों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉर्पस) याचिका दाखिल की। हाईकोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए पुलिस से विस्तृत रिपोर्ट तलब की और खोज अभियान तेज करने के निर्देश दिए। इसके बाद पुलिस की चार विशेष टीमें गठित की गई, जो लगातार प्रीतम सिंह की तलाश में जुटी रहीं।

पुलिस की सघन तलाश

पुलिस ने मोबाइल लोकेशन, कॉल डिटेल रिकॉर्ड, बैंक लेन-देन और संभावित ठिकानों की जांच की। 31 अक्टूबर को पेट्रोल पंप परिसर में बने एक कमरे का ताला तोड़कर तलाशी भी ली गई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। 8 दिसंबर की सुनवाई में हाईकोर्ट ने एसपी को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया और स्पष्ट निर्देश दिया कि 16 दिसंबर तक प्रीतम सिंह को पेश किया जाए या विस्तृत हलफनामा दाखिल किया जाए।

12 दिसंबर की रात मिली सफलता

लगातार दबाव और जांच के बीच 12 दिसंबर की रात पुलिस को लखनऊ के दुबग्गा क्षेत्र में प्रीतम सिंह के छिपे होने की सूचना मिली। टीम ने तत्काल कार्रवाई करते हुए मकान में दबिश दी और 55 दिनों से लापता चल रहे भाजपा नेता को बरामद कर लिया। इस गिरफ्तारी के साथ ही पूरे प्रकरण से जुड़ा रहस्य सामने आ गया।

“पुलिस को सबक सिखाने” का दावा

पुलिस सूत्रों के अनुसार प्रारंभिक पूछताछ में प्रीतम सिंह ने कहा कि वह जानबूझकर गायब हुए थे। उनका दावा है कि वह हमीरपुर पुलिस के रवैये से नाराज थे और उन्हें “सबक सिखाने” के लिए यह कदम उठाया। हालांकि पुलिस इस बयान की सत्यता की जांच कर रही है और इसे कानूनी रूप से परखने की प्रक्रिया जारी है।

राजनीतिक हलकों में हलचल

भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष के इस तरह अचानक गायब होने और फिर सामने आने से राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है। विपक्ष जहां पुलिस और प्रशासन पर सवाल उठा रहा है, वहीं सत्ताधारी दल के भीतर भी इस प्रकरण को लेकर असहजता देखी जा रही है। स्थानीय स्तर पर यह मामला लंबे समय तक चर्चा में रहने की संभावना है।