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Jaggery Price Drop: गुड़ के दाम औंधे मुंह गिरे, किसानों की उम्मीदें टूटी; गन्ने की मेहनत अब लागत भी पूरी नहीं कर पा रही

Gur Wholesale Market: पश्चिम यूपी में गुड़ के दामों में आई रिकॉर्ड गिरावट से किसानों और कोल्हू संचालकों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। गन्ने की अधिक रिकवरी, बढ़ती आपूर्ति और गिरती मांग ने बाजार को अस्थिर कर दिया है। हापुड़ समेत कई जिलों में गुड़ के भाव 1300 रुपये प्रति क्विंटल तक नीचे आ गए हैं।

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पश्चिम यूपी में गुड़ के दामों में 1300 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट, गन्ने की अधिक रिकवरी ने बढ़ाई किसानों की चिंता   (फोटो सोर्स : Whatsapp News Group) 

पश्चिम यूपी में गुड़ के दामों में 1300 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट, गन्ने की अधिक रिकवरी ने बढ़ाई किसानों की चिंता   (फोटो सोर्स : Whatsapp News Group) 

Jaggery Prices Crash in Western UP: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सर्दियों की दस्तक के साथ गुड़ और शक्कर के कारोबार में तेजी आने की उम्मीद की जाती है, लेकिन इस बार स्थिति उल्टी दिख रही है। मंडियों में गुड़ के दाम अचानक गिरकर किसानों और कोल्हू संचालकों की चिंता बढ़ा रहे हैं। हालात यह हैं कि पिछले महीने तक जो गुड़ 4200-4500 रुपये प्रति क्विंटल तक बिक रहा था, वहीं अब दाम 1300 रुपये तक गिरकर 2900–3000 रुपये पर आ गए हैं। इस अप्रत्याशित गिरावट ने विशेष रूप से हापुड़, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मेरठ और बुलंदशहर जैसे गुड़ बेल्ट के किसानों की कमर तोड़ दी है।
गन्ने की अधिक रिकवरी बनी बड़ी वजह

गुड़ के दामों में भारी गिरावट की प्रमुख वजह इस साल कई राज्यों में गन्ने की अधिक रिकवरी बताई जा रही है। विशेषकर हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में मिलों को अपेक्षा से अधिक चीनी की रिकवरी मिल रही है। इसके चलते बाजार में गुड़, शक्कर और शीरा तीनों की उपलब्धता बढ़ गई है। जब आपूर्ति अधिक और मांग स्थिर हो, तो दाम गिरने तय हैं और यही इस बार गुड़ बाजार में देखने को मिल रहा है। पश्चिम यूपी में खुद भी इस साल गन्ना उत्पादन बहुत अच्छा है। मौसम अनुकूल रहते हुए न केवल गन्ने का वजन बढ़ा है, बल्कि रिकवरी भी पिछले वर्षों की तुलना में अच्छी मानी जा रही है। इससे गुड़-कोल्हू उद्योग में बनाए जा रहे उत्पादों की बाजार में अधिकता देखने को मिल रही है, जिसके परिणामस्वरूप दाम नीचे आते जा रहे हैं।

हापुड़ में 218 कोल्हू-क्रेशर संचालित, पर मुनाफा होता दिख नहीं रहा

हापुड़ जिला पारंपरिक रूप से गुड़ उत्पादन का एक बड़ा केंद्र माना जाता है। जिले में करीब 218 कोल्हू और क्रेशर संचालित होते हैं, जहां प्रतिदिन लाखों रुपये का गुड़ तैयार होता है। यह गुड़ पश्चिम यूपी के अलावा राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और दिल्ली तक भेजा जाता है। लेकिन इस वर्ष कोल्हू संचालकों को अपनी लागत निकालना मुश्किल हो रहा है। कोल्हू संचालकों का कहना है कि गन्ने की कीमतें बढ़ी जरूर हैं,श्रमिकों की मजदूरी भी बढ़ी है,डीजल और बिजली के खर्च अलग हैं,लेकिन गुड़ के दाम जैसे ही बाजार में नीचे आए, पूरा समीकरण बिगड़ गया। एक कोल्हू संचालक का कहना है कि “हम गन्ना 350 रुपये प्रति क्विंटल में खरीद रहे हैं, जबकि बाजार में गुड़ 3000 रुपये तक आ गया है। इतने दाम में तो लागत भी मुश्किल से निकल पाती है।

किसानों पर दोहरी मार-गन्ना भी सस्ता, गुड़ भी सस्ता

दूसरी तरफ, किसान भी दोहरी मार झेल रहे हैं। एक ओर शुगर मिलों द्वारा भुगतान में देरी और कटौती की खबरें हर साल सामने आती हैं, दूसरी ओर गुड़ के दाम गिरने से कोल्हू संचालक गन्ने के दाम घटाने की बात करने लगे हैं। किसानों का कहना है कि गन्ना तैयार है, खेत खाली करने हैं, लेकिन दामों में अनिश्चितता के चलते संकट गहरा रहा है। एक किसान ने कहा कि अगर गुड़ 3000 रुपये की दर से बिकेगा तो कोल्हू वाले हमसे गन्ना कैसे महंगा खरीदेंगे, ऊपर से फसल तैयार है, देरी करेंगे तो नुकसान अलग। इस स्थिति ने किसानों के सामने आर्थिक संकट खड़ा कर दिया है।

गुड़ की गुणवत्ता भी बनी एक वजह

बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि शुरुआती दिनों में गुड़ की गुणवत्ता पूरी तरह सधती नहीं। हल्की बारिश, नमी और मौसम में उतार–चढ़ाव गुड़ के रंग को प्रभावित करते हैं। ऐसे में हल्का काला या कम गुणवत्ता वाला गुड़ अपेक्षित दाम नहीं ला पाता। इसके चलते शुरुआती हफ्तों में दाम नीचे रहते हैं। लेकिन इस बार गिरावट असाधारण है और सामान्य परिस्थितियों से कहीं अधिक।

गन्ने की लागत बढ़ी, मुनाफा कम हुआ

पिछले एक साल में यूरिया, डीएपी और अन्य खादों के दाम बढ़े, डीजल 95–100 रुपये लीटर पहुंचा,सिंचाई की लागत बढ़ी, मजदूरी प्रतिदिन 350–450 रुपये हो चुकी है। इन सभी परिस्थितियों ने किसान की लागत में भारी बढ़ोतरी कर दी है। लेकिन बिक्री के समय उनके उत्पाद के दाम आधे रह जाएँ, तो नुकसान होना तय है।

कई राज्यों में चीनी उत्पादन बढ़ा-गुड़ बाजार पर असर

भारत दुनिया का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक देश है। इस साल चीनी का उत्पादन भी अनुमान से अधिक बताया जा रहा है। जब चीनी मिलें ज्यादा उत्पादन करती हैं, तो गुड़ और खांड की मांग कम हो जाती है। यही वजह है कि बाजार में गुड़ की खपत कम और आपूर्ति अधिक हो गई है। विशेषज्ञ रवि कुमार  का कहना है कि एक ओर सरकारी स्तर पर चीनी उद्योग को बढ़ावा मिलता है, दूसरी ओर गुड़ उद्योग अक्सर परंपरागत ढांचे में ही फंसा रह जाता है। इस असंतुलन का असर गुड़ बाजार पर साफ देखा जा सकता है।

कई कोल्हू बंद होने की आशंका

हापुड़, मेरठ और मुजफ्फरनगर के कई क्रेशर संचालक पहले ही कह चुके हैं कि यदि दाम नहीं बढ़े तो सीजन के बीच में ही कोल्हू बंद करने पड़ेंगे। इससे न सिर्फ हजारों मजदूर प्रभावित होंगे, बल्कि किसानों की बड़ी मात्रा में गन्ना फसल खड़ी रह जाएगी। संचालकों का कहना है कि जब दाम ही नहीं मिल रहे, तो नुकसान में कोल्हू चलाने का क्या फायदा। 

क्या कहता है मंडी विभाग

मंडी विभाग और कृषि विशेषज्ञ रवि कुमार का मानना है कि नवंबर–दिसंबर में कई बार दाम गिर जाते हैं, लेकिन जनवरी से धीरे–धीरे स्थिरता आने लगती है। हालांकि, इस बार गिरावट रिकॉर्ड स्तर की है, जिससे किसान और व्यापारी दोनों चिंतित हैं।

जनवरी से हो सकता है सुधार

व्यापारियों का अनुमान है कि जैसे-जैसे ठंड बढ़ेगी, गुड़ की मांग भी बढ़ेगी। दिसंबर के मध्य से जनवरी-फरवरी के बीच गुड़ का उपयोग, मिठाइयों, विवाह समारोहों, लड्डू बनाने, दक्षिण भारत की रसोई,और विदेशों में निर्यात सब में बढ़ जाता है।
इससे दामों में 500–800 रुपये का उछाल आ सकता है।