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फाइब्रॉइड्स : यूट्रस की मांसपेशियों में गांठ का बनना, जानें इसके बारे में अहम बातें

यूट्रस के आसपास अलग-अलग जगह पर फायब्राइड्स के बनने को विभिन्न नामों से जाना जाता है।

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Vikas Gupta

Aug 20, 2017

Fibroids in Uterus

यूट्रस के अंदर या आसपास बनने वाली मांसपेशियों के ट्यूमर को फाइब्रॉइड्स कहते हैं। यह अंगूर के आकार के एक या अनेक संख्या में भी हो सकते हैं। फाइब्रॉइड्स गर्भाशय की ऐसी कैंसर रहित गांठें हैं जो अक्सर प्रसव के दौरान दिखाई देती हैं। क्योंकि इस दौरान प्रमुख हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरॉन सामान्य से अधिक मात्रा में रिलीज होते हैं। 0.2 प्रतिशत मामलों में इन ट्यूमर में कैंसर की आशंका रहती है। यूट्रस के आसपास अलग-अलग जगह पर फायब्राइड्स के बनने को विभिन्न नामों से जाना जाता है।

इंट्राम्यूरल फाइब्रॉइड्स
इसमें यूट्रस की सतह पर फाइब्रॉइड्स बन जाते हैं। इसके रोगी सबस ज्यादा हैं। फाइब्रॉइड्स धीरे-धीरे बढक़र गर्भ के आकार को विकृत करने लगते हैं। इस वजह से ब्लीडिंग काफी होती है।

पेडन्कुलेटेड फाइब्रॉइड्स
यूट्रस की बाहरी सतह पर गांठें बनना है। बच्चेदानी के जिस हिस्से में यह बनता है वह बड़ा दिखता है। यूट्रस के सेल्स के साथ इनके बढऩे से पेंडन्कुलेटेड फाइब्रॉइड्स बनते हैं।

सबम्यूकस फाइब्रॉइड्स
इसमें यूट्रस की आंतरिक सतह में गांठें बनने लगती हैं। ये ट्यूमर अन्य प्रकार की गांठों से अलग हैं। इनके बढऩे से अनियमित माहवारी होने व महिला को गर्भधारण में दिक्कत आती है।

यह हैं लक्षण
महिला को पीरियड्स के दौरान पेट में मरोड़ और तेज दर्द होता है। साथ ही अत्यधिक रक्तस्त्राव,लंबे समय तक मासिक धर्म चलना आदि दिक्कतें होती हैं। कुछ मामलों में लक्षण नजर नहीं आते जो स्थिति को गंभीर बना देते हैं।

क्या हो सकते हैं कारण
चिकित्सकों का दावा है कि भारत में हर आठवीं महिला को फाइब्रॉइड्स की समस्या है। इसके मुख्य कारण हैं-
यह समस्या उन महिलाओं में अधिक होती है जो बड़ी उम्र तक अविवाहित रहती हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि एक उम्र विशेष पर शरीर जब बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार होता तब कई हार्मोनल बदलाव होते हैं। ऐसे में जब शरीर बच्चे को जन्म नहीं दे पाता है तो यह समस्या सामने आती है। जो महिलाएं लंबे समय तक गर्भवती नहीं होती उनके यूट्रस में ऐसी गांठें बनने लगती हैं। इसका अहम कारण बदलती अनियमित जीवनशैली और तनाव है।

प्राकृतिक उपायों को अपनाएं
फाइब्रॉइड्स को प्राकृतिक तरीके से ठीक करने में ऐसे खाद्य पदार्थों को डाइट में शामिल करना चाहिए जो इसके आकार को सिकोड़ दें। इनसे लिवर अत्यधिक एस्ट्रोजन को शरीर से बाहर निकालने लगता है जिससे हार्मोन बैलेंस होते हैं और गांठ बनने की दिक्कत नहीं होती।

ब्रॉकली : फाइबरयुक्तब्रॉकली में एक विशेष एंजाइम होता है जो ट्यूमर की ग्रोथ को रोकने में मददगार होता है।
बादाम : इसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड होते हैं जो यूट्रस की लाइनिंग को ठीक करते हैं। ज्यादातर फाइब्रॉइड्स यहीं पर होते हैं।
हल्दी : यह सूजन को कम कर लिवर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालती है। लिवर में विषैले पदार्थ रहने पर अत्यधिक एस्ट्रोजन को बाहर नहीं निकाल पाता और हार्मोन बैलेंस की समस्या पैदा होती है।
कच्ची सब्जियां : इनमें फाइबर अधिक होता है, जो शरीर में हार्मोन को बैलेंस करता हैं। कच्चे लहसुन में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो ट्यूमर को बढऩे से रोकते हैं।

सूरजमुखी के बीज : इनमें काफी फैट व फाइबर होता है जो फाइब्रॉइड्स को बनने से रोकने के साथ आकार भी घटाते हैं।

जांच और इलाज
अल्ट्रासाउंड या एमआरआई कराने पर इस रोग की जानकारी मिलती है। ऐसे में डॉक्टरी सलाह से नियमित दवाएं लें। जो युवतियां गर्भवती होना चाहती हैं उनमें फाइब्रॉइड्स के आकार को कम करने के लिए हार्मोंस के इंजेक्शन दिए जाते हैं।
गंभीर अवस्था में सर्जरी से फायब्राइड्स या जरूरत पडऩे पर पूरा यूट्रस निकाल दिया जाता है।
न्यू ट्रीटमेंट : नई तकनीक के तहत अब यूट्रस से छेड़छाड़ किए बिना भी फाइब्रॉइड्स को निकाला जा सकता है। इनमें मायोलिसिस (लेजर रिमूवल), मायोमेक्टॉमी (सर्जिकल रिमूवल), यूट्राइन ऑर्टरी एंबोलाइजेशन (नॉन सर्जिकल ट्रीटमेंट-फोम का इंजेक्शन धमनियों में लगाते हैं व फाइब्रॉइड्स में होने वाली ब्लड सप्लाई को काट दिया जाता है)शामिल है। बिना सर्जरी वाले ट्रीटमेंट में रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन में एनर्जी का इस्तेमाल कर ट्यूमर खत्म करते हैं।