
Gangaajal nozzle spray: हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार किसी भी धार्मिक कार्य की शुरुआत में शुद्धि के लिए गंगाजल को काम में लिया जाता है। गंगाजल में गंधक की मात्रा होती है, इसलिए यह कभी खराब नहीं होता है। साथ ही कुछ भू-रासायनिक क्रियाएं भी गंगाजल में होती रहती हैं। इसलिए गंगाजल को बेहद पवित्र माना जाता है। कोरोना की पहली लहर के समय यह देखा गया कि गंगा किनारे रहने वाले लोगों पर इसका प्रभाव न के बराबर था। जिसके बाद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के डॉक्टरों ने तो रिसर्च करके गंगाजल से एक नोजल स्प्रे भी बना दिया। डॉक्टरों का दावा है कि इस नोजल स्प्रे के इस्तेमाल से कोरोना को मात दी जा सकती है।
कोरोना को हराने वाली यह नोजल स्प्रे महज 20 रुपये की लागत से तैयार हुई है। गंगाजल में पाया जाने वाला 'वायरोफेज' कोरोना संक्रमण को रोकने में मददगार है। इलाहाबाद हाई कोर्ट में दाखिल याचिका पर न्यायालय ने ICMR और एथिकल कमेटी से 6 हफ्ते में जवाब मांगा है। कोर्ट की ओर से नोटिस दिए जाने के बाद BHU के डॉक्टर बेहद उत्साहित हैं और उनका दावा है कि यह कोरोना वायरस के डेल्टा प्लस वेरियंट पर भी कारगर है।
गंगाजल में दवा?
बीएचयू के न्यूरोलॉजी विभाग के सीनियर डॉक्टर और उनकी टीम ने कोरोना की पहली लहर के समय गंगाजल से नोजल स्प्रे तैयार करके दावा किया था कि रोजाना चार पंप स्प्रे लेने से कोरोना छूमंतर हो जाएगा और कभी होगा ही नहीं। नोजल स्प्रे की 20 रुपये बताई गई।
रोक दी गई थी रिसर्च
टीम के पास संसाधन का अभाव होने और एथिकल कमेटी के मना करने पर यह शोध आगे नहीं बढ़ सकी। जिसके बाद टीम के वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण गुप्ता ने जनहित याचिक दाखिल कर दी। इस याचिक पर हाई कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए ICMR और भारत सरकार के एथिकल कमेटी को नोटिस भेजकर 6 हफ्ते में दावे को लेकर जवाब मांगा है। दावे में यह प्रपोज किया गया था कि क्या गंगा में पाए जाने वाले फेज वायरस को कोविड के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है?
फेज वायरस का इस्तेमाल
न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर वीएन मिश्रा के मुताबिक फेज वायरस का इस्तेमाल पहले से होता आया है। जॉर्जिया में फेस इंस्टीट्यूट है और वहां के लोग दवा से ज्यादा फेज का इस्तेमाल करते हैं। यह वायरस एक स्टेबलिश थेरेपी है और गंगा में हाई क्वालिटी के फेज मिलते हैं। तो फेज का इस्तेमाल करने में क्या बुराई है। गंगाजल का नोजल स्प्रे डेल्टा प्लस में भी कारगर है क्योंकि यह हर तरह के बैक्टीरिया और वायरस पर अटैक करके उसे खत्म कर देता है।
इस कारण से लगी रोक
रिसर्च के लिए एथिकल कमेटी बीएचयू के समक्ष पूरी बात राखी गई और पेशेंट पर ट्रायल करने के लिए अनुमति मांगी गई। लेकिन दो बार इजाजत मांगने के बावजूद अनुमति नहीं मिली। उनका तर्क था कि एनिमल और लैब में प्रयोग करिए। लेकिन जब कोरोना संक्रमण जानवरों में होता ही नहीं है तो उनमें कहां से इस्तेमाल होगी?
Published on:
03 Jul 2021 01:15 pm
बड़ी खबरें
View Allस्वास्थ्य
ट्रेंडिंग
लाइफस्टाइल
