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शरीर में निर्माणसभी एंटीबॉडीज शरीर में जन्मजात नहीं होते। मां के गर्भनाल (प्लेसेंटा) से बच्चे को कुछ ही रोगों के विरुद्ध लडऩे वाले एंटीबॉडीज मिलते हैं। ऐसे में जो समस्या मां को रही हो उसके खिलाफ काम कर रहे एंटीबॉडीज बच्चे के शरीर में आ सकते हैं।
एक्टिव : ऐसे एंटीबॉडीज जिन्हें शरीर खुद ही बना लेता है।
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आमतौर पर होने वाले किसी भी रोग के एक प्रोटीन को लेकर उसी के लिए टीका (वैक्सीन) बना लिया जाता है और मेडिसिनल प्रक्रिया के जरिए शरीर में इंजेक्ट करते हैं।
नवजात शिशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है इसलिए उसे टीके लगाए जाते हैं ताकि अक्सर शिशु को प्रभावित करने वाले रोगों के कीटाणु उसे बार-बार परेशान न करें। ये टीके बच्चे को बड़ी उम्र तक रोगों से सुरक्षित रखते हैं। साथ ही उनकी रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता को भी बढ़ाते हैं।
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यह शरीर के खुद के प्रोटीन होते हैं जो कई बार स्वयं की एंटीबॉडीज को ही बाहरी तत्त्व मानने लगते हैं। इन्हीं की वजह से आर्थराइटिस, रुमेटाइड आर्थराइटिस और जोड़ों से जुड़ी समस्याएं होती हैं इसलिए इन्हें ऑटो-इम्यून डिजीज भी कहते हैं।
बैक्टीरियल, वायरल जनित रोग, दूषित खानपान, सांस के माध्यम या त्वचा के संपर्क से भी बाहरी कीटाणु शरीर में प्रवेश कर कई बीमारियों का कारण बनते हैं।