
HIV cases in India states (photo- freepik)
HIV Cases in India States: बिहार के सीतामढ़ी जिले से HIV को लेकर एक बेहद चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। मीडिया रिपोर्ट्स और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जिले में हजारों लोग HIV के साथ जी रहे हैं, जिससे यह इलाका राज्य का एक हाई-लोड HIV सेंटर बन गया है। हालात ऐसे हैं कि स्थानीय स्वास्थ्य व्यवस्था पर भारी दबाव पड़ रहा है। सीतामढ़ी सदर अस्पताल में बने ART सेंटर के आंकड़ों के अनुसार, साल 2012 से अब तक करीब 7,400 से 8,000 HIV मरीज यहां रजिस्टर हो चुके हैं। चिंता की बात यह है कि हर महीने 40 से 60 नए मामले सामने आ रहे हैं, यानी संक्रमण अभी भी रुक नहीं पाया है।
इन रजिस्टर्ड मरीजों में से करीब 5,000 लोग नियमित इलाज के लिए हर महीने मुफ्त दवाइयां लेने ART सेंटर पहुंचते हैं। मरीजों की इतनी बड़ी संख्या को देखते हुए स्वास्थ्य अधिकारियों ने सीतामढ़ी को आधिकारिक तौर पर ‘हाई-लोड सेंटर’ घोषित किया है।
इस संकट का सबसे दुखद पहलू है बच्चों का संक्रमित होना। आंकड़ों के मुताबिक, 18 साल से कम उम्र के 400 से ज्यादा बच्चे HIV पॉजिटिव पाए गए हैं। इनमें बड़ी संख्या स्कूल जाने वाले बच्चों की है। डॉक्टरों का कहना है कि ज्यादातर मामलों में बच्चों को यह संक्रमण जन्म के समय माता-पिता से मिला, जिसे मेडिकल भाषा में मां से बच्चे में संक्रमण (PPTCT) कहा जाता है। यह साफ संकेत देता है कि गर्भवती महिलाओं की HIV जांच और समय पर इलाज में अभी भी बड़ी कमी है।
बढ़ते मामलों को देखते हुए जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने कुछ कदम उठाए हैं। गांव-गांव जागरूकता अभियान, फ्री HIV टेस्टिंग कैंप, ज्यादा प्रभावित इलाकों जैसे डुमरा, रनिसैदपुर और परिहार पर खास फोकस कर रही है। साथ ही सरकार संक्रमित लोगों को इलाज के साथ आर्थिक मदद भी दे रही है। वयस्क मरीजों को 1,500 प्रति माह, HIV संक्रमित बच्चों को 1,000 प्रति माह दे रही है।
सीतामढ़ी सिर्फ एक जिला है, लेकिन पूरे भारत में HIV चिंता का विषय है। NACO के 2022 के अनुमान के मुताबिक, भारत में HIV-positive लोग करीब 24.67 लाख हैं। सबसे ज्यादा मामलों वाले तीन राज्य हैं।
महाराष्ट्र- सबसे बड़ा HIV बोझ वाला राज्य
आंध्र प्रदेश- बड़ी संख्या में HIV-positive लोग
कर्नाटक- तीसरे नंबर पर उच्च संख्या
ये तीनों राज्यों में HIV के मामलों का बोझ राष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा है।
HIV का फैलाव अभी भी तेजी से रुक नहीं पा रहा है। इसके पीछे कई वजहें हैं जैसे सामाजिक भेदभाव, जागरूकता की कमी, सही समय पर जांच नहीं होना और गर्भवती महिलाओं के लिए परीक्षण की कम कवरेज।
Published on:
13 Dec 2025 01:47 pm
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