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CORONA VACCINE TRUTH : कोरोना वैक्सीन को लेकर आपके मन में भी होंगे ये सवाल, सच्चाई ये है..

-टीके में माइक्रोचिप की अफवाह पूरी तरह निराधार है, क्योंकि यह सुई के जरिए इंजेक्ट नहीं हो सकती।

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टीका प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूती देगा

एक वर्ष पहले महामारी का प्रकोप था, लेकिन बचाव के उपाय नहीं थे। अब वैज्ञानिकों ने दिन-रात मेहनत के बाद वैक्सीन तो तैयार कर ली। लेकिन टीकाकरण विरोधी समूह इसके लिए भ्रम फैला रहे हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, जानिए ऐसे ही मिथक और सच्चाई-

मिथक : कुछ टीके दूसरों की तुलना में बेहतर हैं
सच्चाई : यह मिथक या भ्रम अब भी है कि इस टीके से दूसरा टीका बेहतर है। इसी के चलते पिछले दिनों डेट्रायट के मेयर माइक डग्गन ने जॉनसन एंड जॉनसन की 62 हजार वैक्सीन लौटाते हुए कहा कि उनके शहर को सर्वश्रेष्ठ टीका ही चाहिए। इन टीकों की प्रभावी दर में थोड़ा अंतर हो सकता है, लेकिन सभी एक ही सिद्धांत पर काम करते हैं। वायरस से लडऩे में शरीर की कोशिकाओं को प्रतिरोधक क्षमता देते हैं।

मिथक : स्वस्थ युवाओं को आवश्यकता नहीं
सच्चाई: टीके पर संदेह करने वालों का तर्क है कि स्वस्थ व युवाओं को टीके की आवश्यकता नहीं है। यह सच है कि कोरोना से युवाओं को जान का जोखिम कम है, लेकिन यह गंभीर असर दिखा सकता है। फरवरी में प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आया कि 18 से 39 वर्ष के वयस्कों में कोरोना के गंभीर परिणाम कई दिन रह सकते हैं। टीका प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूती देगा, जो आपको स्वस्थ रखेगी।

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मिथक : टीकों में असुरक्षित तत्व हैं
सच्चाई : सोशल मीडिया पर दावा किया गया कि लोगों को टै्रक करने के लिए टीकों में माइक्रोचिप लगाई गई है। न्यू ऑरलियन्स के कैथोलिक अभिलेखागार ने तो यह कहते हुए जॉनसन एंड जॉनसन का टीका नहीं लगवाने का आग्रह किया, इसमें गर्भपात के बाद भ्रूणों की सेल लाइन का उपयोग किया गया है। जबकि यह निराधार है। माइक्रोचिप की बात भी असंभव है, क्योंकि यह सुई के जरिए इंजेक्ट नहीं हो सकती।

मिथक : एमआरएनए टीके डीएनए बदल देंगे
सच्चाई : एंटी वैक्सीन समूहों ने दावा किया है कि मैंसेजेर आरएनए यानी एमआरएनए टीके जीन को संसोधित करके या उनके डीएनए को बदलकर बांझपन या ऑटोइम्यून विकार पैदा कर सकते हैं। इन दावों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। टीके में नैनोपार्टिकल्स के जरिए दिया जाने वाला एमआरएनए हमारे जीनोम में प्रवेश नहीं करता। इससे किसी प्रकार का आनुवांशिक खतरा या बदलाव संभव नहीं है।

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मिथक : टीके जल्दी तैयार किए गए हैं, सुरक्षा पर संदेह
सच्चाई : ये सच है कि कोरोना के टीके कम समय में तैयार हुए हैं। लेकिन पूरी प्रक्रिया अपनाई गई है, ट्रायल हुए हैं, इसलिए संदेह की गुंजाइश नहीं है।