
Police and Paramilitary Forces
नई दिल्ली। दिल्ली हिंसा में पत्थरबाजी के दौरान शहीद हुए पुलिस कॉन्स्टेबल रतनलाल ( Ratanlal ) का परिवार धरने पर बैठ गया है। परिवार का कहना है कि जब तक रतनलाल को शहीद ( Martyr ) का दर्जा नहीं दिया जाएगा तब तक वो उनका अंतिम संस्कार नहीं करेंगे। इसके साथ ही एक बार फिर से ये बहस तेज़ हो गई है कि केंद्र सरकार 'शहीद' को किस तरह परिभाषित करती है।
आमतौर पर कहा जाता है कि शहीद की असल में सही परिभाषा क्या है इसके लिए कहीं कोई तय तहरीर नहीं है। आपको बता दें कि काफी लंबे अरसे से पैरामिलिट्री फोर्सेज़ ( Paramilitary Forces ) के जवानों को पेंशन नहीं दी जाती है और न ही उन्हें आतंकवादी कार्रवाई के दौरान जान गंवाने पर ‘शहीद’ का दर्जा दिया जाता है।
साल 2013 में राज्यसभा सांसद किरणमय नंदा ने इसी सिलसिले में सरकार से पूछा भी था कि अर्धसैनिक बल के जवान जिनकी मौत अपना फ़र्ज़ निभाने के दौरान होती है, उन्हें सरकार शहीद का दर्जा क्यों नहीं देती? क्या वो सेना, वायु सेना या नौसेना से नहीं होते है, ऐसा क्यों किया जाता है?
जिसके जवाब में कहा गया था कि सरकार किसी जवान के साथ किसी तरीके का भेदभाव नहीं करती, हालांकि ये भी माना गया था कि रक्षा मंत्रालय के पास कहीं भी 'शहीद' शब्द की कोई सटीक परिभाषा नहीं है। सेना और अर्ध सैनिक बलों को मिलने वाली सुविधाओं में गहरे अंतर की बात कही थी।
कुछ वक्त पहले दिल्ली के एक आरटीआई ( RTI ) कार्यकर्ता गोपाल प्रसाद ( Gopal Prasad ) ने केंद्र सरकार से आरटीआई के ज़रिये जवाब मांगा था कि सरकार 'शहीद' किसे मानती है, जिस पर चौंकाने वाला जवाब ये आया था कि गृह मंत्रालय ने शहीद को कहीं भी परिभाषित नहीं किया है।
गोपाल प्रसाद ने मंत्रालय से ये भी पूछा था कि एक जैसा काम कर रहे सेना और अर्द्धसैनिक बलों की मौत के हालात में क्या सिर्फ सेना में तैनात जवानों को ही शहीद कहलाए जाने का हक है? उन्होंने कहा कि अर्द्धसैनिक बलों के ऐसे जवानों को सिर्फ मृतक क्यों करार दिया जाता है?
दिसंबर 2017 में भारत सरकार ने केंद्रीय सूचना आयोग को बताया था कि सरकार सेना, अर्धसैनिक बल या पुलिस के मामले में ‘शहीद’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करती है। रक्षा मंत्रालय ने किसी को शहीद कहने के लिए आज तक कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं किया।
अनौपचारिक तौर पर तो उन्हें शहीद कहा जाता है लेकिन शहीद को मिलने वाली सुविधाएं नहीं मिलती। बॉर्डर पर दुश्मन, आतंकवादियों और नक्सलियों के खिलाफ इस लड़ाई में सिर्फ सेना ही नहीं शामिल नहीं है। बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ सहित सभी पैरामिलिट्री फोर्स शामिल हैं।
लड़ाई के दौरान जान गंवाने पर ‘शहीद’ का दर्जा सिर्फ सेना के जवानों को ही मिलता है। शहीद के दर्जे का हक पाने के लिए पैरामिलिट्री फोर्स के जवान कोर्ट में अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर आम जनता के बीच में से भी अब दंगों के दौरान मारे जाने वाले जवानों के लिए शहीद का दर्जा दिए जाने की मांग की जा रही है।
क्यों की जाती है शहीद के दर्जे की मांग
दरअसल इसे कई लोग मनोविज्ञान से जुड़ा मसला मानते है, और साथ ही परिवार के भविष्य से जोड़कर भी देखते है। सामान्यत लोगों को ऐसा लगता है कि ‘शहीद’ का तमगा मिलने से उनके परिवार के लिए आने वाली ज़िंदगी थोड़ी आसान हो जाएगी, लेकिन ऐसा हो जाता है, इसके पुख्ता प्रमाण नहीं है।
सरकारी गजट के रिकॉर्ड में न सही, लेकिन आम बोलचाल की भाषा में तो सैनिकों को शहीद कह ही दिया जाता है। मगर कई मामलों में पैसा और सुविधाएं मिलने में काफी वक्त लगता है। ऐसे कई मामले देखने को मिले जहां शहीदों के परिजनों को कई मुसीबतें झेलनी पड़ी।
शहीद का दर्जा मिलने पर मिलती हैं ये सुविधाएं
शहीद का दर्जा मिलने के साथ ही मिलती हैं जवान के परिवार को कुछ अतिरिक्त सुविधाएं मुहैया कराई जाती है। जमीन या मकान, पेट्रोल पम्प या गैस एजेंसी, शहीद की पत्नी को पूरा वेतन, शहीद के परिवार वालों को रेल और हवाई किराए में 50 प्रतिशत छूट और राज्य सरकार की ओर से आर्थिक मदद और सरकारी नौकरी सहित कुछ अतिरिक्त सुविधाएं मिलनी शुरु हो जाती हैं।
देश के लिए आवाज उठाने वाले, असैन्य संघर्ष करने वालों की यदि अप्राकृतिक मौत होती है तो उनके रिश्तेदार उसके लिए शहीद का दर्जा मांगने लगते हैं। असल हकीकत तो यह है कि जो सेना में रहते हुए शहीद होते हैं, उनके परिवार को शहीद की सेवानिवृत्ति तक का वेतन, पेंशन के तौर पर भरण-पोषण के लिए दिया जाता है।
इसके अलावा राज्य सरकार की ओर से सम्मान देते हुए वित्तीय मदद भी की जाती है। परिवार के जीवन-यापन और अन्य सुविधाओं के मद्देनजर पेट्रोल पंप आवंटन या आवासीय भूखंड आदि भी उपलब्ध करवा दिया जाता है। इसलिए कई लोग का मानना है कि ऐसी ही सुविधाओं की वजह से परिवार शहीद के दर्जे की मांग उठाते हैं।
Updated on:
26 Feb 2020 01:24 pm
Published on:
26 Feb 2020 11:41 am
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