साल 2016 में बन गई थी कोरोना वैक्सीन! लापरवाही की वजह से बंद हुआ था रिसर्च
कहा जा रहा है कि कोरोना के गंभीर मरीज़ों को यह प्लाज्मा दिए जाने के 72 घंटे में ही उनके लक्षण खत्म होने लगे और हालत में सुधार भी हुआ। इसे कान्वलेसंट प्लाज्मा थैरेपी कहते हैं।
वहीं कोरोना के रोखथाम के लिए भी उम्मीद की एक किरण दिखी है। एक शोध में दावा किया जा रहा है कि समुद्र में पाई जाने वाली लाल काई से कोरोना को फैलने से रोका जा सकता है। ये शोध रिलायंस (Reliance researchers) की तरफ किया गया है।
शोध में दावा किया गया है कि समुद्र में पाई जाने वाली लाल काई (Marine red algae) से निकले जैविक रसायन का उपयोग सैनिटरी आइटम्स पर किया जाए तो कोरोना को रोका जा सकता है। सैनिटरी आइटम्स का मतलब जिसका हम रोजाना इस्तेमाल करते हैं। जैसे सिंक, टॉइलेट, टंकी इत्यादी।
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रिलायंस के रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर में काम कर रहे वैज्ञानिकों ने बताया है कि लाल काई (Marine red algae) से निकले जैविक रसायन की कोटिंग पाउडर तैयार कर के इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे कोरोना के रोकथाम में मदद मिल सकती है।