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जानिए एक ऐसे किसान की कहानी जिसने अपनी बंजर भूमि से कमाए लाखों रुपए

झारखंड के किसान ने बंजर भूमि से कमाए लाखों 5 हजार खर्च कर मिला 50 लाख दिहाड़ी मजदूरी कर कभी पालते थे घरवालों का पेट

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जानिए एक ऐसे किसान की कहानी जिसने अपनी बंजर भूमि से कमाए लाखों रुपए

नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ( APJ Abdul Kalam ) ने कहा था सपना वह नहीं जो हम नींद में देखते हैं, बल्कि सपना वो है जो आपको सोने नहीं देता। कलाम की ये लाइने झारखंड के सदमां गांव के किसान ( jharkhand farmer ) गांसु महतो ने पूरी तरह चरितार्थ की हैं। । उनका सपना था कि वह अपनी बंजर खेती को उपजाऊ बनाए और ये बात उन्हें रातभर सोने नहीं देती थी। खुली आंखों से देखा उनका यह सपना पूरा भी हुआ। उन्होंने अपने बंजर खेत को इस कदर उपजाऊ बनाया कि आज उनका खेत सोना उगल रहा है।

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तीन भाईयों में सबसे बड़े गांसु

तीन भाईयों में सबसे बड़े गांसु महतो ने बताया कि उनके पिता के पास 9 एकड़ जमीन थी। जमीन से होने वाली उपज उनके पूरे परिवार को 6 महीने तो भर पेट खाना देती थी। लेकिन 6 महीने बीतते ही उनके परिवार के सामने भरण-पोषण की समस्या आ जाती थी। इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने बारवीं पास होने के बाद अपनी शिक्षा रोकने का निश्चय किया और अतिरिक्त पैसे के लिए मजदूरी करने लगे।

दिहाड़ी मजदूरी कर पाला घर वालों का पेट

बात 1991 कि है जब वह 18 साल के थे तो वह रांची में दिहाड़ी मजदूरी करते थे। वह मजदूरी से दिन भर 50 रूपए कमाते थे। मजदूर के रूप में तीन साल काम करने के बाद वह अपनी बंजर भूमि पर लौट आए।

बंजर जमीन से कमाए थे 1.2 लाख रुपए

गांसु ने अपनी बंजर जमीन ( Wasteland ) पर धान उगाया। इसके बाद उन्होंने शिमला मिर्च लगाईं जिसके एवज में उन्हे 1.2 लाख रूपए मिले। इस सफलता के बाद उन्होंने खेती में कई तरह के प्रयोग किए। वह अपनी फसलों के सुधार के लिए कई किसानों से भी मिले।

5000 से हुई 50 लाख तक कमाई

2015 में उन्हें कृषि मित्र से मिलने का मौका मिला, जो उनके गांव के किसानों की मदद करते थे। उन्होंने गांसु को सुझाव दिया कि वे छत्तीसगढ़ जाएं और वहां 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हों। वहां जाने के लिए लगभग 5000 रुपए खर्च करने थे जो उस समय बड़ी रकम हुआ करती थी।

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लेकिन उन्होंने यह मौका नहीं छोड़ा और वह वहां पहुंच गए। जिसका नतीजा है कि आज वे उन 5000 हजार की बदौलत 50 लाख तक की कमाई कर रहे हैं । प्रशिक्षण शिविर में उन्होंने जैविक खेती शुरू करने के गुर सीखे। प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से उनका सबसे बड़ा भ्रम टूटा कि बंजर भूमि उपजाऊ नहीं हो सकती।

अब वह अपनी बंजर भूमि पर खेती कर लाखों की कमाई कर रहे हैं और अपने परिवार का छह महीने नहीं बल्कि पूरे साल अच्छे से भरण पोषण करते हैं।