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हंसने का नाम हैं जिंदगी, खुश रहिए और खिलखिला कर हंसिए

आपाधापी के दौर में गायब हो गई हंसी

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nirmala bhandari

NIRMALA BHANDARI

आपाधापी के इस दौर में मनुष्य अवसाद एवं चिंताग्रस्त अधिक रहने लगा हैं और ऐसे में हंसी गायब होती जा रही है। हंसने के लिए क्लबों का सहारा लेना पड़ रहा है तो कई कॉमेडी सीरियल देखकर हंसने के प्रयास में लगे हैं। आम जीवन में हंसी का स्थान लगभग कम हो गया है। समूचे विश्व में मई महीने के पहले रविवार को विश्व हास्य दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। विश्व हास्य दिवस का मकसद देश-दुनिया में बढ़ रहे तनाव एवं अवसाद को दूर कर हंसने-मुस्कुराने पर जोर देना है। इसके प्रति जागरुकता बढ़ाना है। विश्व हास्य दिवस की लोकप्रियता हास्य योग आंदोलन के माध्यम से पूरी दुनिया में फैल गई। हास्य में सकारात्मक और शक्तिशाली भावना छिपी रहती हैं जो व्यक्ति को ऊर्जावान और संसार को शांतिपूर्ण बनाती हैं।

हंसी और खुशी से बड़ी कोई दूसरी शक्ति नहीं
दुनिया में हंसी और खुशी से बड़ी कोई भी दूसरी शक्ति नहीं है। ये शक्तियां इंसान को बड़े-बड़े खौफ से बचा लेती हैं। हंसी एक दर्द निवारक दवा है। हंसना सेहत के लिए भी जरूरी माना गया है। हंसना एक शानदार कसरत भी है। इससे सेहत संबंधी कई समस्याएं दूर हो जाती हैं। दिल मजबूत होता है। तनाव घटता है। सुकून की नींद आती है। हंसने से चेहरे की मांसपेशियों का व्यायाम होता है। मौजूदा प्रतिस्पर्धा के इस दौर में जहां एक-दूसरे से आगे निकलने की हौड़ में भी हम हंसना भूलते जा रहे हैं। आजकल महानगरों में हास्य क्लब खुल चुके हैं। कई योग केन्द्रों पर भी हास्य की क्रियाएं करवाई जाती हैं। एक दौर में राजा-महाराजाओं के दरबार में भी विदूषक व बहुरुपिया रूप बदलकर या चुटुकुले सुनाकर लोगों को हंसाते थे।

हमारे अन्दर होती हैं खुशी
हुब्बल्ली प्रवासी राजस्थान के पाली मूल की निर्मला भंडारी कहती हैं, पहले संयुक्त परिवार का चलन अधिक था। ऐसे में भरा-पूरा परिवार का साथ मिलने से माहौल हंसी-मजाक का अधिक रहता था। आजकल एकल परिवार का चलन बढऩे लगा है। ऐसे में हंसी लगभग गायब हो चुकी है। अपनी पर्सनल लाइफ पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा है। पहले के दौर में बड़े-बुजुर्गों के समझाने का तरीका भी हास-परिहास की तरह होता था। हंसी-खुशी का माहौल अधिक मिलता था। आजकल परिवार सिमटते जा रहा है। इसका सीधा असर हंसी-मजाक पर भी पड़ा है। कई बार ऐसा भी होता है कि आदमी अन्दर से तो दुखी होता है लेकिन बनावटी हंसी होती है। इसके साथ ही आजकल लोग हंसना इसलिए भूल गए क्योंकि सब यह समझने लगे हैं कि हंसी या खुशी कहीं बाहर से आती है। जबकि खुशी हमारे अन्दर होती है। जब तक हम खुद अपने आप से खुश नहीं होंगे तब तक हमें न तो कोई और खुशी दे सकता है और न ही कोई हंसा सकता है।