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न्याय से पहले बर्बरता के आरोपी दोषमुक्त

जागरुकता का अभाव और समाज के दबाव में पीड़ितों ने बदला मन। आदिवासी बहुल इलाकों से विशेष रिपोर्ट

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हरिनाथ द्विवेदी
इंदौर, आदिवासी जिले आलीराजपुर में महिला को पेड़ पर लटकाकर सरेआम पिटाई के दिल दहलाने वाले.
मामले में अब पीड़िता का 'मन' बदल गया है। उसने आरोपियों को निर्दोष करार देते हुए पुलिस को आवेदन सौंपा है। ऐसा ही आवेदन धार के टांडा से सामने आया है। यहां दो युवतियों को सरेआम डंडे से पीटा गया था। इन्होंने तो आवेदन में पुलिस पर भी मानसिक पीड़ा देने का आरोप लगाया है। आवेदन की प्रति महिला आयोग, डीजीपी, एडीजीपी व पुलिस को भेजी गई है।

घटनाओं के वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने आरोपियों को जेल भेज दिया है। अब पुलिस को पीड़ितों
ने ही आवेदन दिया है कि जो वीडियो वायरल हुए, उसमें वे नहीं हैं। पुलिस ने उन्हें बरगला कर केस दर्ज कराया है। आवेदन मिलने के बाद पुलिस हैरान है। पुलिस को कोर्ट में चालान पेश करना है, लेकिन पीड़ित और गवाह कोर्ट के बाहर आरोपों से मुकरने लगे हैं। कोर्ट में पेशी के बाद वे पक्षाद्रोेही बनकर गवाही देंगे। ऐसे में आरोपियों के कोर्ट से छूट जाने की संभावना है।

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वीडियो हुए थे वायरल
2 जुलाई को आलीराजपुर में विवाहिता को पेड़ से लटकाकर पीटने का वीडियो वायरल हुआ था। पुलिस ने मामले में पिता और दो भाइयों के गिफ्तार किया था। मारपीट करने वाले कुल 6 लोगों पर केस दर्ज किया था।धार जिले के टांडा के पीपलवा गांव में 4 जुलाई को मामा के बेटों से बात करने पर दो लड़कियों के बेरहमी से पीटा गया। वीडियो वायरल होने पर धाराएं बढ़ाकर सात लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

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111 मामलों में पीड़िताएं आरोपों से मुकरीं
झाबुआ में भी महिलाओं से जुड़े गंभीर अपराधों में बड़ी संख्या में पीड़ित ही पक्षाद्रोही हो रहे हैं। झाबुआ में डेढ़ साल में जिला न्यायालय में महिला संबंधी अपराधों से जुड़े ऐसे 111 मामलों में पीड़िता और परिजन आरोपों से मुकर गए हैं। धारा 354 (शील भंग), पॉक्सो एक्ट, बलात्कार जैसे मामलों में पीड़ितों ने कोर्ट में आरोपियों को पहचानने से इनकार कर दिया।

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सबसे बड़ी वजह भांजगड़ी
आलीराजपुर वन स्टॉप सेंटर की प्रभारी सुमित्रा खेड़े ने बताया कि महिलाएं जब हमारे पास रहती हैं तो उन्हें अधिकारों के बारे में बताया जाता है, लेकिन यहां से जाते ही उन्हें समाज और परिवार के साथ रहना पड़ता है। उनके दबाव में वे टूट जाती हैं। आदिवासी समाज में प्रचलित भांजगड़ी भी एक बड़ी वजह है। यहां पंचायत ही बैठकर आरोपियों पर दंड तय कर देती है।