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कांटे की टक्कर: इस विधानसभा में 20 साल से है BJP का कब्जा, मुस्लिम मतदाता की संख्या है ज्यादा

इंदौर। विधानसभा क्षेत्र इंदौर-5 पर भाजपा की लंबे समय पर पकड़ कायम है। पिछले चार विधानसभा चुनाव यानी 20 साल से यह सीट भाजपा के पास है, जबकि कांग्रेस की कोशिश कब्जा जमाने की है।

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मध्यप्रदेश चुनाव 2023

पिछले चार बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से महेंद्र हार्डिया मैदान में उतरे और हर बार जीत हासिल की। इस विधानसभा में सबसे अधिक मुस्लिम मतदाता हैं, जिससे मुकाबला कांटे का रहता है। कई बार हार-जीत का अंतर काफी कम रहा है। 2023 के चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस ने प्रत्याशी घोषित नहीं किए हैं।

2018 में कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल हारे

2018 का विधानसभा चुनाव में मुकाबला कड़ा रहा। महज 1,133 मतों से भाजपा यह सीट जीत पाई थी। 13 उम्मीदवार मैदान में थे। भाजपा के महेंद्र हार्डिया को 117,836 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल के खाते में 116,703 वोट गए थे। तीसरे नंबर पर बसपा के उम्मीदवार डोंगर सिंह गोयल रहे, जिन्हें 1,422 वोट मिले। अन्य उम्मीदवारों को एक हजार से भी कम वोट मिले। इंदौर-5 सीट पर कुल 3,74,032 मतदाता थे, जिसमें पुरुष मतदाता 1,93,949 और महिला मतदाता 1,80,068 थीं।

सामाजिक-आर्थिक ताना बाना

इस विधानसभा क्षेत्र के कई वार्ड मुस्लिम बहुल हैं, लेकिन चार विधानसभा चुनावों में भाजपा जीती है। विधानसभा में काफी स्लम एरिया होने के साथ ही बायपास, एमआइजी क्षेत्र की कुछ पॉश कॉलोनियां और पलासिया क्षेत्र की कई कॉलोनियां भी आती हैं। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या काफी अधिक होने के कारण कई बार दोनों ही पार्टियों के राजनीतिक समीकरण इस क्षेत्र में बिगड़ जाते हैं। इस क्षेत्र में प्रसिद्ध खजराना गणेश मंदिर है, जहां दर्शन करने के लिए लोग बड़ी संख्या में आते हैं।

इंदौर-5 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र

1977 सुरेश सेठ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1980 सुरेश सेठ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1985 सुरेश सेठ स्वतंत्र
1990 अशोक शुक्ला भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1993 भंवर सिंह शेखावत भारतीय जनता पार्टी
1998 सत्यनारायण पटेल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
2003 महेंद्र हार्डिया भारतीय जनता पार्टी
2008 महेंद्र हार्डिया भारतीय जनता पार्टी
2013 महेंद्र हार्डिया भारतीय जनता पार्टी
2018 महेंद्र हार्डिया भारतीय जनता पार्टी

ऐसा रहा राजनीतिक इतिहास

1977 में यह सीट कांग्रेस के सुरेश सेठ के पास थी। वे 19७7 और 1980 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने तो 1985 में निर्दलीय चुने गए। 1990 में कांग्रेस ने अशोक शुक्ला की जीत के साथ फिर से वापसी की, लेकिन 1993 में बीजेपी के भंवर सिंह शेखावत ने कांग्रेस के अशोक शुक्ला को हराकर यह सीट जीत ली। 1998 में कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल ने भंवर सिंह शेखावत को हराकर यह सीट फिर से कांग्रेस की झोली में डाल दी। 2003 के चुनाव में भाजपा ने महेंद्र हार्डिया को टिकट दिया और सत्यनारायण पटेल को बड़े मतों के अंतर से हराकर इस सीट को भाजपा की झोली में डाल दिया। फिर तब से यह सीट लगातार भाजपा के पास ही बनी हुई है।