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तालाब में डूबे दो सगे भाई, एकसाथ उठी अर्थी तो रो पड़ा पूरा गांव, एक ही चिता पर अंतिम संस्कार

- दो किशोर भाइयों की अर्थियां एकसाथ उठीं तो हर शख्स की आंख में आंसू थे - शव घर पहुंचे तो मचा हाहाकार

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इंदौर

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Hussain Ali

Aug 21, 2019

तालाब में डूबे दो सगे भाई, एकसाथ उठी अर्थी तो रो पड़ा पूरा गांव, एक ही चिता पर अंतिम संस्कार

तालाब में डूबे दो सगे भाई, एकसाथ उठी अर्थी तो रो पड़ा पूरा गांव, एक ही चिता पर अंतिम संस्कार

सांवेर. तालाब में डूबने से रविवार को हुई दो सगे भाइयों की मौत के बाद शवों को जब पोस्टमॉर्टम करवाकर सांवेर में गृहग्राम चित्तौड़ा ले जाया गया तो घर में कोहराम मच गया। दो किशोर भाइयों की अर्थियां एकसाथ उठीं तो हर शख्स की आंख में आंसू थे। दोनों भाइयों का दाह संस्कार एक ही चिता पर किया गया।

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रविवार दोपहर चित्तौड़ा में अशोक दुबे की बेटी शिवानी के तीज के व्रत के उद्यापन कार्यक्रम में समाज के रिवाज के अनुसार तालाब पर नहाने के दौरान उनके भाई मदन दुबे के बेटे कमलेश (20) और हरीश (18) की तालाब में डूब जाने से मौत हो गई थी, जबकि मृतकों की चाची व चचेरे भाई कांता पति अशोक दुबे (45) और बेटा केवल (28) भी डूबे तो थे किन्तु उन्हें अचेतावस्था में बाहर निकाल लिया गया था।

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शव घर पहुंचे तो मचा हाहाकार

उक्त दोनों भाइयों के शव अगले दिन पोस्टमॉर्टम के लिए सांवेर के सरकारी अस्पताल में रखे थे, फिर भी गांव के दो किशोरवय बच्चों की मौत की खबर चित्तौड़ा गांव में रविवार रात को ही हो गई थी। तब से ही पूरे गांव में शोक छा गया था। दुबे परिवार में तो कोहराम ही मचा हुआ था। सोमवार को जब दोनों भाइयों के शव घर पहुंचे तो घर में हाहाकार मच गया जबकि गांव में सन्नाटा पसर गया। दोनों भाइयों की अर्थी एक साथ उठी तो पत्थर दिल भी पिघलकर कर रो पड़े। श्मशान में दोनों भाइयों की एक ही चिता बनाकर अंतिम संस्कार किया गया।

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श्मशान के बुरे हाल, न शेड न जाने का रास्ता

चित्तौड़ा ग्राम पंचायत के सचिव कमलेश पंडित ने बताया कि मृतक भाइयों के परिजनों को शासन की ओर से अंत्येष्टि सहायता के तहत दस हजार रुपए तत्काल प्रदान कर दिए गए। पंचायत की ओर से चार लाख की सहायता के लिए प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा जा रहा है। इधर गांव के आत्माराम सिसौदिया ने बताया कि गांव में श्मशान की बड़ी विकट स्थिति है। श्मशान तक जाने का रास्ता नहीं होने से कीचड़ में से निकल कर जाना पड़ा। दाह संस्कार के लिए बने चबूतरे पर शेड के नाम पर केवल एंगल खड़े हैं। ऊपर के चद्दर उड़ गए हैं अर्थात खुले आसमान तले अंत्येष्टि की गई। गनीमत रही कि बारिश नहीं हो रही थी, वरना दाह संस्कार मुश्किल हो जाता।