इंदौर जिसे होलकर राजवंश के इंदूर के नाम से जाना-पहचाना जाता है। यहां के होलकर राजवंश में गणपति बैठाने की परंपरा बालगंगाधर तिलक से भी पहले की है। माना जाता है कि 200 साल से होलकर राजवंश लगातार अपने महल में गणपति की स्थापना करते आए हैं। यहां पांच दिन के गणेश बैठाने का विधान है। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि होलकर के महाराज तुकोजीराव द्वतीय ( 1844 से 1886) ने अपने महल में गजानन बैठाने की अभूतपूर्व पंरपरा शुरु की थी। पांच दिन गणपति की पूजा अर्चना करने के बाद उन्हें बावड़ी में विसर्जित किया जाता। यहां महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि कभी इन बावड़ियों से ही पूरे इंदौर की प्यास बुझाई जाती थी। इसलिए गणपति को विसर्जित करते समय यह प्रार्थना की जाती कि भीषण गर्मी में भी यह बावड़िया सूखे नहीं। इन्हीं बावड़ियों के कारण मशहूर था “मालवा धरती गहन-गंभीर पग-पग रोटी, डग-डग नीर।”
राजवंश के शुरुआती दौर में गणपति की राजवाड़ा के गणेश हाल में प्रतिष्ठित की जाती थी। राजवाड़ा के इस प्रांगण का नाम गणेश हॉल यहा प्रति वर्ष गणपति स्थापना के कारण ही पड़ा था। अब वर्तमान समय में गणपति की स्थापना होलकर राजवंश के कुलदेवता के मंदिर मल्हार मार्तंड में होती है। इस साल भी मल्हार मार्तंड में गणपति की स्थापना की गई। यहां पांच दिन के गणपति के साथ ही महालक्ष्मी की स्थापना भी की गई थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महालक्ष्मी (ज्येष्ठा और कनिष्ठा) गणेशजी की बहन हैं जो साल में तीन दिन के लिए अपने भाई से मिलने आती हैं। गणपति के दूसरे दिन बुधवार को महालक्ष्मी को विभिन्न पकवानों का भोग लगाया गया। माता की गोद भरी जाएगी। तीसरे दिन माता की विदाई होगी। मान्यताओं के मुताबिक तीन दिनों में माता तीन रूप बदलती हैं। पहले दिन महालक्ष्मी प्रसन्न मुद्रा में दिखाई देती हैं। दूसरे दिन होठों पर लतिका व मुख पर तेज रहता है। तीसरे दिन विदाई के कारण उदासी का भाव नजर आता है। राजवंश के गणपति के अगले दिन महालक्ष्मी की धूमधाम से पूजा की जाती है।
होलकर राजवंश के गणपति जब सिर में पगड़ी धारण कर गाजे-बाजे के साथ शहर के गलियों से निकले तो सड़क पर दर्शनालुओं का तांता लग गया। शहर के हद्य स्थल राजवाड़ा से पालकी में सवार गजानन ने अपने भक्तों को दर्शन दिए। मंगलवार को गणेशोत्सव का पांचवा दिन था। होलकर राजवंश में पांच दिन के गणपति बैठाने की रीति है इसलिए पांचवे दिन गणपति का वसर्जन विधी-विधान से हुआ। मंगलवार को आड़ा बाजार से पालकी में विराजित कर लाव-लश्कर के साथ गणेशजी को राजबाड़ा, सराफा. नृसिंह बाजार होते हुए छत्रीबाग लेकर पहुंचे। वहां महाराजा हरीराव होलकर की छत्री के समीप बावड़ी में विसर्जन किया गया। इस मौके पर होलकर परिवार के सदस्य मौजूद रहे।
गणेश विसर्जन तिथि
4 सितंबर, 2017 को चतुर्दशी तिथि सुबह 12:14 बजे शुरू होगी
चतुर्दशी तिथि 5 सितंबर, 2017 को 12:41 बजे समाप्त हो जाएगी
गणेश विसर्जन का शुभ मुहूर्त
सुबह का मुहूर्त (चार, लाभ, अमृत) – 09:32 बजे- 14:11 अपराह्न
दोपहर का मुहूर्त (शुभ) = 15: 44 बजे- 17:17 बजे
शाम का मुहूर्त(प्रयोग) = 20:17 अपराह्न – 21: 44 बजे
रात का मुहूर्त (शुभ, अमृत, चार) = 23:11 बजे