काजी समझाइश दे सकते हैं लेकिन उनके फैसलों को कानूनी बाध्यता के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता- हाईकोर्ट ने जनहित याचिका में आदेश देते हुए कहा कि शरीयत के आधार पर लिए गए फैसलों को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती है. कोर्ट ने कहा कि दो पक्षों में सुलह समझौते के लिए काजी समझाइश दे सकते हैं लेकिन उनके फैसलों को कानूनी बाध्यता के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
यह भी पढ़ें : कोरोना का खतरनाक साइड इफेक्ट, हर तीसरा बच्चा प्रभावित, जानिए क्या कह रहे डॉक्टर्स

शरीयत के आधार पर फैसलों को लेकर हाईकोर्ट में 3 साल पूर्व दायर जनहित याचिका पर आदेश-मुस्लिम समाज में विवाह सहित अन्य मामलों में निराकरण के लिए शरीयत के आधार पर अनेक फैसले लिए जाते रहे हैं. शरीयत के आधार पर लिए गए ऐसे ही एक मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी. शरीयत के आधार पर फैसलों को लेकर हाईकोर्ट में 3 साल पूर्व दायर जनहित याचिका पर ये आदेश दिए गए हैं.
यह भी पढ़ें : भारत मेें मिला ओमिक्रॉन का सबसे तेजी से फैलने वाला स्ट्रेन, बच्चे हो रहे शिकार जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस राजेंद्र कुमार वर्मा ने सुनाया फैसला - जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस राजेंद्र कुमार वर्मा की पीठ ने यह फैसला सुनाया है. कोर्ट में सन 2018 से ये याचिका विचाराधीन थी.
यह भी पढ़ें : ओमिक्रोन का ये है सबसे पहला लक्षण, दिखे तो तुरंत हो जाएं सावधान इस संबंध में एडवोकेट हरीश शर्मा और संजय के. पाराशर ने बताया कि खजराना निवासी आदित्य पलवाला ने पत्नी से विवाद के बाद छावनी मस्जिद के काजी द्वारा दिए गए निर्णय को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इस मामले में जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस राजेंद्र कुमार वर्मा की पीठ ने यह फैसला सुनाया है.