
Patrika Raksha Kavach Abhiyan: प्रमोद मिश्रा. इन दिनों साइबर क्राइम तेजी से बढ़ गया है। ओटीपी फ्रॉड से लेकर डिजिटल अरेस्ट जैसे तरीकों से आए दिन करोड़ों रुपए की ठगी हो रही है। बदमाश एक बैंक खाते से राशि तुरंत 100 से ज्यादा बैंक खातों में पहुंचा देते हैं, लेकिन बैंकों का सिस्टम अलर्ट नहीं कर पाता।
साइबर एक्सपर्ट भी मानते हैं कि बैंक की सुरक्षा खामियों में सुधार हो जाए तो ठगी की राशि 50 प्रतिशत तक बचाई जा सकती है। साइबर अपराधों के लिए ग्राहकों का डेटा लीक होने से लेकर तुरंत खाते ब्लॉक नहीं करने में बैंक की लापरवाही कई बार सामने आती है।
पुलिस के पास 20 लाख रुपए की साइबर ठगी का मामला पहुंचा, तुरंत जांच शुरू की। राशि जिस खाते में ट्रांसफर हुई, उसे ट्रैक कर लिया। बैंक से जानकारी लेने के दौरान राशि निकल गई। अफसरों को विश्वास था कि बैंक खाताधारक का नामपता मिलते ही गैंग की घेराबंदी कर लेंगे। जानकारी मिली कि खाता फर्जी दस्तावेज से खुला था। ऐसे में खाताधारक का पता नहीं चला और पुलिस जांच ही ब्लॉक हो गई।
रिजर्व बैंक के मुताबिक साल 2023-24 के दौरान बैंक फ्रॉड की घटनाओं में इजाफा हुआ है। इस दौरान रिपोर्ट किए गए धोखाधड़ी के मामलों की संख्या 36,075 थी, जो वित्तीय वर्ष 2021-22 के 9,046 मामलों से लगभग 300% अधिक है। हालांकि, इसमें शामिल राशि 45,358 करोड़ रुपए से गिरकर 13,930 करोड़ रुपए रह गई।
धोखाधड़ी में निजी बैंक आगे आरबीआई ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि पिछले तीन वर्षों में निजी क्षेत्र के बैंकों ने सबसे अधिक धोखाधड़ी की सूचना दी। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों मेें धोखाधड़ी की राशि अधिक रही।
सरकार ने हाल ही लोकसभा में दिए एक उत्तर में बताया कि एनसीआरबी के प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, 2022 की अवधि के लिए साइबर धोखाधड़ी के तहत दर्ज मामलों का विवरण इस प्रकार है।
क्रेडिट/डेबिट कार्ड 1665
एटीएम 1690
ऑनलाइन धोखाधड़ी 6491
ओटीपी धोखाधड़ी 2910
अन्य 4714
अगर धोखाधड़ी की संख्या की स्थिति देखें तो, यह ज्यादातर डिजिटल भुगतान (कार्ड या इंटरनेट) में हुई है। यह वित्त वर्ष 2023-24 में बढ़कर 29,082 हो गई, जो 2020-21 में 2,677 थी।
- बैंकों से डेटा लीक होकर ठगों तक पहुंच रहा।
- ठगी की राशि बैंकों में जाती है। नोडल अफसर न होने से खाते की जानकारी मिलने में देरी हो रही।
- खाता खोलने में लिए जाने वाले दस्तावेज की कई बार जांच नहीं होती। विशेषज्ञ कहते हैं, मोबाइल कंपनियोंं की तरह बैंक सत्यापन क्यों नहीं करते।
-निष्क्रय खातों में बड़ी राशि जमा होने पर सिस्टम एकिटव नहीं होता।
- ठग करंट व इंडस्ट्रियल खाते किराए पर लेकर राशि जमा कराते हैं। इस पर बैंकों की निगरानी नहीं।
-- ठगी की राशि भेजने पर तुरंत खाता लॉक होना चाहिए, पर बैंक का एक्सपर्ट अफसर नहीं होने से ऐसा नहीं हो पाता।
--बैंक संदिग्ध खातों की सूचना पुलिस को नहीं देते। ऐसा हो तो खाता पहले ब्लॉक हो सकता है।
लोकसभा में सरकार ने बताया, 15 नवंबर 2024 तक 6.69 लाख+सिम, 1.32 लाख अंतरराष्ट्रीय आइएमइआइ भारत सरकार ने ब्लॉक किया है।
रिजर्व बैंक ने बताया, संख्या के लिहाज से ठगी मुख्य रूप से डिजिटल भुगतान (कार्ड भुगतान और इंटरनेट) में हुई। मूल्य के हिसाब से धोखाधड़ी मुख्य रूप से लोन पोर्टफोलियो में दर्ज की थी।
बैंक अधिकारी संदिग्ध लेन-देन ग्राहक की शिकायत या जांच एजेंसी की मदद से रोक सकते हैं। बैंक अफसरों को ट्रेनिंग दी जा सकती है। कई बार ठग धोखाधड़ी की राशि तुरंत एक खाते से कई खातों में ट्रांसफर कर देते हैं। बैंकों को ऐसे सॉफ्टवेयर से लैस होना पड़ेगा, जिससे एक खाते से राशि अन्य खातों में ट्रांसफर होते ही अलर्ट मिले और वे ब्लॉक कर दें। ठगी की राशि ठग निष्क्रिय खातों में भेजें तब भी सिस्टम अलर्ट दें। ज्यादा राशि के लेनदेन पर भी बैंक अलर्ट दे, उसे ब्लॉक करें।
-राकेश जैन, साइबर एक्सपर्ट
वैसे तो राष्ट्रीयकृत बैंकों ने सिस्टम में सुधार किया है, अधिकतर जगह अलर्ट सिस्टम है। खाते खोलने में लापरवाही सामने आती है। नए खातों पर तो सतर्कता है लेकिन निष्क्रिय खाते शुरू करने के मामलों में दस्तावेज की सही जांच नहीं होती। ठग इसका ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। बैंक थर्ड पार्टी स्टाफ पर निर्भर हैं। वे ई-केवाइसी व सत्यापन कर रहे हैं। इसके लिए बैंक अपना स्टाफ रखे। ट्रेनिंग देकर स्टाफ को अपडेट रखें, तब वे साइबर अपराध रोकने व राशि लॉक करने में मददगार साबित होंगे।
-प्रदीप शर्मा, रिटायर्ड सीनियर बैंक मैनेजर
बैंकिंग सिस्टम में तकनीकी खामियों के कारण अपराध नहीं रुक रहे। अधिकतर बैंक इंश्योरेंस पॉलिसी भी बेचते हैं। कई मामलों में इस सेक्शन से ग्राहकों का डेटा लीक हुआ है। इसे रोकने होगा। ठग तकनीक से अपराध कर रहे हैं, लेकिन बैंक नए सॉफ्टवेयर इस्तेमाल नहीं कर रहे। इस कारण गड़बड़ी का अलर्ट नहीं मिलता। ठगों के खाते ब्लॉक नहीं हो पाते। साइबर सिक्योरिटी टीम को ट्रेंड नहीं करने से कई मामलों में समय पर रिस्पॉन्स नहीं मिलता और पैसा निकल जाता है।
-चातक वाजपेयी, साइबर एक्सपर्ट
Updated on:
13 Dec 2024 10:29 am
Published on:
13 Dec 2024 10:27 am
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