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इंदौर के हिंगोट युद्ध में 1 दर्जन से ज्यादा लोग घायल, एक दूसरे पर गोले दागने की अनोखी परंपरा

Indore Hingot Yudh : दीपावली के दूसरे दिन इंदौर जिले के गौतमपुरा में परंपरा के नाम पर कलंगी व तुर्रा दल के बीच हिंगोट युद्ध हुआ। इसमें 15 से ज्यादा योद्धा व दर्शक घायल हो गए। करीब डेढ़ घंटे तक चले इस युद्ध में हजारों लोग इंदौर, उज्जैन, धार, देवास सहित दूर-दूर से देखने पहुंचे।

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Many injured in the famous Hingot battle in Gautampura in Indore

Many injured in the famous Hingot battle in Gautampura in Indore

Indore Hingot Yudh : दीपावली के दूसरे दिन इंदौर जिले के गौतमपुरा में परंपरा के नाम पर कलंगी व तुर्रा दल के बीच हिंगोट युद्ध (Indore Hingot Yudh )हुआ। करीब डेढ़ घंटे तक चले इस युद्ध में हजारों लोग इंदौर( Indore), उज्जैन, धार, देवास सहित दूर-दूर से देखने पहुंचे। प्रदेश में गौतमपुरा ही एक ऐसी जगह है जहां परंपरा के नाम पर इस तरह का युद्ध होता है। हालांकि इसमें करीब 15 से ज्यादा योद्धा व दर्शक घायल हो गए।

वहीं, इस मर्तबा मंच नहीं लगने से लोगों को युद्ध(Indore Hingot Yudh ) देखने की पर्याप्त जगह मिली। स्टेडियम क्षेत्र में 25 फीट ऊंची जाली लगाई गई थी, ताकि दर्शकों को किसी प्रकार की हानि ना पहुंचे। युद्ध के मैदान में सुरक्षा को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने करीब 300 से अधिक जवानों को व्यवस्था सौंपी थी। साथ ही पुलिस के आला अधिकारी भी मौके पर डटे रहे।

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वर्षों से चली आ रही परंपरा

गौतमपुरा को गौतम ऋषि की नगरी माना जाता है। वर्षो से चला आ रहा भाईचारे से खेले जाने वाला रोमांचकारी हिंगोट युद्ध(Indore Hingot Yudh ) बिना प्रचार-प्रसार के होता है। प्रदेश के कई शहरों से हजारों दर्शक हिंगोट युद्ध देखने पहुंचे। इसमें खेलने वाले अधिकतर योद्धाओं को चोट पहुंची। एसडीएम रवि वर्मा ने बताया, 15 लोगों को चोट आई है।

शाम से रात तक चला युद्ध

दोपहर में ही युद्ध देखने अन्य शहरों से दर्शकों का आवागमन शुरू हो गया। युद्ध देखने का उत्साह इतना था कि पूरा हिंगोट(Indore Hingot Yudh ) मैदान दर्शकों से भर गया। हिंगोट युद्ध वाले दोनों दल के योद्धा ढोल-धमाकों के साथ जुलूस के रूप में पहुंचे। शाम करीब 5 बजे सिर पर साफा, हाथ में ढाल, अग्निबाण से भरा झोला कंधे पर लटकाए योद्धा मैदान पर उतरे तो दर्शक रोमांचित हो गए। शुरुआत में 50 से 60 योद्धा आमने-सामने थे। करीब एक घंटे की परंपरा के बाद रात 7.30 बजे हिंगोट युद्ध रोका गया।